पत्थरों पर अक्सर सोने की तरह चमकने वाले हिस्से दिख जाते हैं. कुछ लोग उसे संभालकर रखते हैं...कारण उन्हें खुद भी नहीं पता होता. बस यूं ही...क्योंकि सुंदर लगता है. आखिरकार इन पत्थरों पर ये सोने की परत या हिस्से आते कहां से हैं? क्या ये सच में सोना होता है? इसे गोल्ड वेन्स (Gold Veins) कहते हैं, यानी सोने की नसें. वैज्ञानिकों ने इनके बनने की प्रक्रिया और भूगर्भीय वजह खोज ली है. आइए जानते हैं कि कैसे पत्थरों में ये सोने की नसें बनती हैं? (फोटोःFB/नेशनल जियोलॉजिस्ट)
नई रिसर्च में पता चला है कि पत्थरों में मिलने वाली ये नसें कई श्रेणियों की होती हैं. उच्च गुणवत्ता वाली नसों में सोने के नैनोपार्टिकल्स से बने गुच्छे होते हैं, जो बेहद कीमती होते हैं. कई बार ये पत्थर लोगों को मालामाल कर देते हैं, तो कई बार कुछ नहीं मिलता. वैसे सबसे बड़ी हैरानी की बात ये है कि ये सोने की परतें, गुच्छे या नसें जो भी पत्थरों में मिलती हैं, ये बनती है धरती की दरारों और परतों में. जहां गर्म लावा का बहाव होता है. यानी मैग्मा का. (फोटोःगेटी)
धरती के नीचे बहने वाला गर्म लावा सोने के अयस्क को पूरा पिघला नहीं पाता. इसलिए ये पत्थरों में कभी नसों की तरह, कभी गुच्छे की तरह...मतलब हर आकार में दिखाई देते हैं. ये जो गर्म लावा अलग-अलग धातुओं को पिघलाकर बहता है उसे हाइड्रोथर्मल फ्लूड (Hydrothermal Fluid) कहते हैं. ये फ्लूड ही धरती की अलग-अलग सतहों तक पहुंच कर जब सूखता है तो इससे पत्थर बनते हैं. इन्हीं पत्थरों के अंदर अलग-अलग तरह के धातुओं का जमावड़ा होता है. इसमें सोना भी शामिल है. (फोटोःFB/जीएस माइनिंग कंपनी)
हाल ही में प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडेमी ऑफ साइंसेज (PNAS) में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार पत्थरों में ये नसें सोने के नैनोपार्टिकल्स से बनती हैं. इसमें हाइड्रोथर्मल फ्लूड और कोलाइडल फ्लूड्स (अलग-अलग धातुओं के पिघला हुआ रूप) आपस में मिलता है. तब ये सोने की नसें और गुच्छे पत्थरों में दिखाई देते हैं. मॉन्ट्रियल स्थित मैक्गिल यूनिवर्सिटी में पृथ्वी विज्ञान के शोधकर्ता डन्कन मैक्लीश ने बताया कि पहली बार ये जानकारी सामने आई है कि कोलाइडल फ्लूड्स जब हाइड्रोथर्मल फ्लूड्स से मिलते हैं तब उनके ठंडा होने पर ऐसे सोने की नसों वाले पत्थर बनते हैं. (फोटोःगेटी)
सोने की नसों वाले पत्थर खननकर्ताओं के लिए खूबसूरत सपना होता है. क्योंकि ये पत्थर जिसे मिलते हैं वह मालामाल हो जाता है. ऐसे पत्थरों में मिलने वाला सोना उच्च श्रेणी का होता है. क्योंकि हाइड्रोथर्मल फ्लूड्स में 10 से 30 हिस्सा प्रति बिलियन गोल्ड होता है. यानी बेहद दुर्लभ स्थिति में बनी सोने की नसें. इसलिए इनकी कीमत आम सोने से काफी ज्यादा होती है. (फोटोःFB/नेचर एंड एडवेंचर ट्रैवल)
डन्कन मैक्लीश ने बताया कि आर्थिक भूगर्भशास्त्रियों के साथ एक बड़ी दिक्कत ये है कि ये खनन कंपनियों के लिए काम तो करते हैं लेकिन ऐसे सोने की नसों वाले पत्थरों की सही जानकारी नहीं रखते. अगर वो इन पत्थरों में जमे सोने की गुणवत्ता और उत्पत्ति को नहीं समझेंगे तो वो इसका खनन और पत्थरों में से सोना निकालने की तकनीक पर सही तरीके से काम नहीं कर पाएंगे. (फोटोःगेटी)
मैक्लीश और उनके साथियों ने सोने की नसों की उत्पत्ति की जांच करने के लिए ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (TEM) की मदद ली. TEM से इलेक्ट्रॉन्स की एक किरण निकलती है जो स्पेसिमेन से टकराने के बाद उसकी तस्वीर बनाती है. यह कई नैनोमीटर्स छोटे सोने के कणों को खोज लेती है. मैक्लीश और उनकी टीम ने ब्रिटिश कोलंबिया में स्थित ब्रूसजैक गोल्ड डिपोजिट से मिले सोने की नसों वाले पत्थर की स्टडी की थी. यह पत्थर 4 इंच व्यास का है. (फोटोःगेटी)
डन्कन मैक्लीश ने देखा कि पत्थर के अंदर 1 से 5 नैनोमीटर आकार के सोने के सूक्ष्म कण हैं. जहां पर बड़े गुच्छे या नसें बनी हैं, वहां पर सोने के कणों का आकार 30 से 150 नैनोमीटर है. 100 नैनोमीटर यानी कोरोनावायरस के आकार के बराबर. एक नैनोमीटर DNA के आधे हिस्से के व्यास के बराबर होता है. मैक्लीश ने बताया कि भूगर्भीय इकोसिस्टम में सोना चारों तरफ फैला हुआ है, लेकिन ये इतने सूक्ष्म आकार में होता है कि किसी को पता नहीं चलता. (फोटोःगेटी)