मलेरिया (Malaria) से हर साल करीब सवा छह लाख लोग मारे जाते हैं. इससे चार गुना ज्यादा बीमार होते हैं. मलेरिया का नाम आते ही इंसान सारा का सारा दोष मच्छरों पर मढ़ देता है. लेकिन ये नहीं सोचता कि मलेरिया इंसानों तक कैसे पहुंचा? सामान्य जवाब होगा कि मच्छरों से...लेकिन मच्छर तो सिर्फ माध्यम है. आइए समझते हैं कि आखिर इस 100 साल पुराने रहस्य का खुलासा कैसे हुआ? (फोटोः गेटी)
असल में इंसानों को होने वाले मलेरिया से संबंधित दो पैरासाइटों ने अफ्रीकन वानर (African Apes) को संक्रमित कर दिया. उनकी जांच के दौरान पता चला कि कैसे मलेरिया का पैरासाइट इंसानों को संक्रमित करने आया. इसके बाद 100 साल से रहस्य बना हुआ यह सवाल सुलझ गया. बात ये है कि मलेरिया का पैरासाइट प्लाजमोडियम (Plasmodium) विचित्र है. न तो यह वायरस है, न ही बैक्टीरिया...बल्कि यह पौधों से ज्यादा करीब है. (फोटोः गेटी)
प्लाजमोडियम की छह प्रजातियां इंसानों को संक्रमित करती हैं. इसके अलावा कई और ऐसी प्रजातियां है जो अपने पूरे जीवनकाल में किसी न किसी स्तनधारी, सरिसृप और पक्षियों का खून जरूर पीते हैं. इसके बाद ये किसी न किसी कीड़े जैसे मच्छरों के माध्यम से इंसानों तक आते हैं. इंसानों को संक्रमित करने वाले प्लाजमोडियम आमतौर पर किसी अन्य कशेरुकीय (Vertebrates) को संक्रमित नहीं करते. यही सवाल वैज्ञानिकों को परेशान कर रहा था. (फोटोः गेटी)
इंसानों को संक्रमित करने वाली प्रजातियों में सबसे ज्यादा खतरनाक है प्लाजमोडियम फाल्सीपैरम (P. falciparum). यह इंसानों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. इसकी वजह से ही सबसे ज्यादा लोगों की मौत भी होती है. वहीं, प्लाजमोडियम मलेरी (P. Malariae) के प्रति वैज्ञानिकों की जागरुकता बेहद कम रही. इनके बारे में Nature Communications जर्नल में रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई थी. (फोटोः गेटी)
प्लाजमोडियम मलेरी (P. Malariae) इकलौता ऐसा मलेरिया पैरासाइट है, जिसके बारे में सबसे ज्यादा जानकारी हासिल है. इसी से संबंधित 100 साल पुराने रहस्य का खुलासा अब हुआ है. कहानी ये है कि साल 1920 में प्लाजमोडियम मलेरी (P. Malariae) से ठीक मिलता-जुलता पैरासाइट चिम्पैंजी के खून में मिला था. इसका मतलब ये है कि क्या इंसानों और वानरों को ये पैरासाइट संक्रमित करता है. क्योंकि वानरों को संक्रमित करने वाले पैरासाइट का नाम है प्लाजमोडियम नोलेसी (P. knowlesi). (फोटोः गेटी)
वैज्ञानिकों को लगा कि ये प्लाजमोडियम नोलेसी वानरों को संक्रमित करता होगा. फिर आ गया प्लाजमोडियम ब्रासिलिएनम (P. brasilianum). यह पैरासाइट अमेरिका में बंदरों को संक्रमित कर रहा था. यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग की साइंटिस्ट डॉ. लिंड्से प्लेंडरलीथ ने अपने बयान में कहा कि इतना कन्फ्यूजन हो गया था कि हमने प्लाजमोडियम मलेरी (P. Malariae) की वानरों में पाई जाने वाली सभी अन्य प्रजातियों से तुलना की. फिर पता चला कि वानरों को तीन अलग प्रजातियां संक्रमित कर रही हैं. (फोटोः गेटी)
प्लाजमोडियम सिलेटम (P. Celatum) चिम्पैंजी, गोरिल्ला और बोनोबोस वानरों को संक्रमित करता है. यह इंसानों में पाए जाने वाले प्लाजमोडियम पैरासाइट से जेनेटिकली अलग है. वहीं, प्लाजमोडियम फाल्सीपैरम (P. falciparum) सिर्फ गोरिल्ला को संक्रमित करता है. इनमें से ही किसी पैरासाइट का वानरों के शरीर में म्यूटेशन हुआ. जो बदलते हुए प्लाजमोडियम मलेरी (P. Malariae) बन गया. (फोटोः गेटी)
प्लाजमोडियम ब्रासिलिएनम (P. brasilianum) प्लाजमोडियम मलेरी से टूटकर बना हुआ लगता है. यह इंसानों से लेकर बंदरों तक, सभी को संक्रमित करता है. जब यह अमेरिका पहुंचा तो इंसानों से बंदरों में गया. यह समय उस समय का था, जब अमेरिका में गुलामों की प्रथा चलती थी. इसने तेजी से बंदरों की 30 प्रजातियों को संक्रमित किया. (फोटोः गेटी)
प्लाजमोडियम मलेरी (P. Malariae) को लेकर साइंस के लोगों के बीच रुचि कम थी, क्योंकि इससे होने वाली बीमारी के लक्षण हल्के थे. स्टडी रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर लिखा गया है कि यह पैरासाइट अचानक से विकसित हो सकता है, या फिर सदियों तक अपके शरीर में संक्रमण पैदा कर सकता है. जरूरी नहीं कि बीमार पड़ने से पहले आपको मच्छर काटे. (फोटोः गेटी)
डॉ. लिंड्से प्लेंडरलीथ ने एक बयान में कहा कि हमने प्लाजमोडियम मलेरी (P. Malariae) का विस्तार से अध्ययन किया. पता चला कि यह वानरों और इंसानों दोनों को संक्रमित करने में सक्षम है. इसकी स्टडी से कई तरह के फायदे हो सकते हैं. वानरों और इंसानों को मलेरिया से बचाया जा सकता है. लेकिन जरूरी है कि हम बाकी मलेरिया पैरासाइट की प्रजातियों का अध्ययन करें. ताकि लोगों की आसमयिक मौतें न हों. (फोटोः गेटी)