अगर आप दिल्ली में रहते हैं तो मानकर चलिए कि आप दुनिया की सबसे जहरीली हवा पी रहे हैं. कोरोनाकाल में थोड़ी राहत मिलने के बाद इस साल फिर दिल्ली दुनिया की स्मोग राजधानी बन गई. सिर्फ दिल्ली ही नहीं, भारत के उत्तरी मैदानी इलाकों में भी कई शहर इसी स्थिति में थे. दिल्ली में रहने वाले दो करोड़ लोगों के लिए यह प्रदूषण बड़ी दिक्कत है. सबसे बड़ा सवाल ये है कि हर साल दिल्ली पूरी दुनिया की सबसे जहरीली हवा फेंकने वाला शहर क्यों बन जाता है. आखिर क्यों इस जगह पर इतना स्मोग पैदा होता है. (फोटोः गेटी)
ब्लूमबर्ग की खबर के अनुसार साल 2019 में भारत में प्रदूषित हवा की वजह से 16.7 लाख लोगों की मौत हुई है. यह एक बड़ी आपदा है जिसे प्रशासन ठीक करने में लगी है लेकिन यह काम आसान नहीं दिख रहा है. लॉकडाउन हटते ही गाड़ियों की संख्या में तेजी से इजाफा. कोयला आधारित उद्योगों का फिर से शुरु होना. निर्माण कार्यों से उठने वाले धूलकण और दिल्ली के आसपास के राज्यों में पराली (Stubble) को जलाना, इसका प्रमुख कारण है. (फोटोः पीटीआई)
पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में परानी जलाने से दिल्ली-NCR का आसमान धुंधला और जानलेवा हो जाता है. इन राज्यों में प्रतिबंध भी लगाया गया है लेकिन उसके बाद भी पराली जलाया जाता है. किसान खेतों में आग लगाकर सफाई करते हैं ताकि सर्दियों में फिर से फसल लगा सकें. उत्तर भारत में यह समस्या बेहद आम है. खासतौर से सर्दियों के मौसम में. इस बात का प्रमाण तो अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) भी देती है. (फोटोः रॉयटर्स)
नासा ने अपनी वेबसाइट पर भारत में वायु प्रदूषण को लेकर एक खबर डाली है. जिसमें बताया गया है कि कैसे नवंबर के महीने में भारत का आसमान धुंधला होता जाता है. साथ ही उसमें यह भी दिखाया गया है कि कहां-कहां पराली जलाया जा रहा है. नासा ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि पंजाब और हरियाणा के किसानों को पराली जलाना एक बेहद सस्ता और जल्दी पूरा होने वाला काम लगता है. ताकि वो अगली फसल के लिए खेतों को तैयार कर सकें. लेकिन इसकी वजह से इंडो-गैंगेटिक प्लेन्स यानी गंगा के मैदानी इलाकों में नवंबर और दिसंबर के महीनों भयानक प्रदूषण होता है. (फोटोः NASA)
NASA ने बताया कि इस साल बारिश की वजह से भारत में पराली जलाने की शुरुआत काफी देर से हुई थी. नासा के सुओमी एनपीपी सैटेलाइट (Suomi NPP Satellite) ने उत्तर भारत की 11 नवंबर की तस्वीर ली. उसने इस तस्वीर में भारत में पंजाब-हरियाणा के ऊपर घने गहरे बादल देखे जो दिल्ली की तरफ बढ़ रहे थे. यह तस्वीर विजिबल इंफ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सुईट (VIIRS) से ली गई. इसके बाद इसकी पुष्टि के लिए कलर तस्वीर ली गई. (फोटोः रॉयटर्स)
नासा के मार्शल स्पेस फ्लाइट सेंटर में स्थित यूनिवर्सिटीज स्पेस रिसर्च एसोसिएशन के साइंटिस्ट पवन गुप्ता ने कहा कि इसके अलावा नासा ने उसी दिन की वह तस्वीर भी ली, जिसमें कहां-कहां पराली जलाई जा रही है. इसमें पता चला कि उत्तरी पाकिस्तान, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के इलाकों में पराली जलाई जा रही है. पाकिस्तान, पंजाब और हरियाणा में पराली जलाए जाने की वजह से निकलने वाला धुंआ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की ओर बढ़ता है. (फोटोः NASA)
पवन ने बताया कि सिर्फ सैटेलाइट तस्वीर से ही नहीं. दिल्ली और आसपास के इलाकों में भी प्रदूषण का स्तर ग्राउंड स्टेशन पर काफी ज्यादा दर्ज किया गया था. अमेरिकी दूतावास में लगे सेंसर्स ने बताया था कि 11 और 12 नवंबर को वायु प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा था. जिसकी वजह से सैकड़ों लोग सांस संबंधी दिक्कतों से जूझ रहे हैं. दिल संबंधी बीमारियां हो रही हैं. दमा के मरीजों के लिए इस समय दिल्ली सबसे ज्यादा खतरनाक स्थान है. (फोटोः पीटीआई)
ऐसा नहीं है कि सिर्फ पराली जलाना ही स्मोग का प्रमुख कारण है. नवंबर के महीने में राजस्थान के थार रेगिस्तान से उड़कर आने वाले धूल के कण भी दिल्ली-NCR के आसमान को धुंधला कर देते हैं. इसके अलावा गाड़ियों का चलना, औद्योगिक प्रदूषण, निर्माण कार्य, कचरा जलाना, खाना पकाना जैसी घटनाएं भी वायु प्रदूषण को तेजी से बढ़ाती हैं. इनसे पार्टिकुलेट मैटर तो बढ़ते ही हैं, साथ ही अन्य प्रदूषणकारी तत्वों की मात्रा में इजाफा होता है. (फोटोः पीटीआई)
सिर्फ इंसानी गतिविधियां ही नहीं, बल्कि खराब मौसम भी प्रदूषण बढ़ाने में मदद कर रहे हैं. तिब्बत से आने वाली सर्द हवा की वजह से तापमान कम होता है. यह हवा जब गंगा के मैदानी इलाकों में आती है तो धुएं से मिलती है. इसके बाद गर्म हवा के बीच प्रदूषणकारी तत्व फंस जाते हैं. जो सतह से ज्यादा ऊपर नहीं होते. फिर ये हिमालय से लेकर विंध्य की पहाड़ियों के बीच तैरते रहते हैं. (फोटोः गेटी)
नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के वैज्ञानिक हिरेन जेठवा ने बताया कि इस समस्या का एक ही इलाज है. वह है हरियाली. अगर हर साल हरियाली की मात्रा बढ़ाई जाए तो दिल्ली-NCR समेत उत्तर भारत के कई इलाके सर्दियों में प्रदूषणमुक्त हो सकते हैं. हिरेन ने बताया कि हमारी सैटेलाइटन Aqua MODIS ने जब 11-12 नवंबर को पराली जलाने की घटना को रिकॉर्ड किया तो पता चला कि पंजाब-हरियाणा में सिर्फ 17 हजार जगहों पर पराली जलाई जा रही थी. Aqua MODIS साल 2002 से जमीन पर कुछ भी जलाए जाने की जानकारी जमा कर रहा है. (फोटोः रॉयटर्स)
उधर, पवन गुप्ता ने कहा कि VIIRS के डेटा के अनुसार 16 नवंबर तक पंजाब में 74 हजार जगहों पर पराली जलाई गई थी. साल 2016 में सबसे ज्यादा 85 हजार जगहों पर पराली जलाए जाने का रिकॉर्ड है. सैटेलाइट के डेटा को देखिए तो पता चलेगा कि पंजाब में यह आंकड़ा लगातार बना हुआ है. हरियाणा में किसानों ने पराली जलाना कम किया है. यहां पर 2012-19 की तुलना में साल 2020 में 45 फीसदी की गिरावट आई थी. लेकिन इस साल यहां पर भी तेजी आई है. (फोटोः रॉयटर्स)