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मौसम की मार, एयर पॉल्यूशन और गार्बेज संकट... क्लाइमेट क्राइसिस कैसे हम इंडियंस की जिंदगी बदल रहा?

भारत बदल रहा है. हमारा जीवन भी. इसे बदल रहा है मौसम, कचरा और वायु प्रदूषण. बेहद बुरी तरह से हो रहा है बदलाव. ये खतरनाक है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (CSE) की सालाना रिपोर्ट 'स्टेट ऑफ इंडियाज़ एनवायरमेंट' तो यही कह रही है. रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे हमारा जीवन हम ही खराब कर रहे हैं. जानिए कैसे...

भारत में जलवायु संकट तेजी से बढ़ता जा रहा है. इसकी वजह से हमारी उम्र घटती जा रही है.  भारत में जलवायु संकट तेजी से बढ़ता जा रहा है. इसकी वजह से हमारी उम्र घटती जा रही है.
ऋचीक मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 24 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 1:39 PM IST

बेकार कचरा प्रबंधन. बढ़ता वायु प्रदूषण और लगातार आ रही घनघोर प्राकृतिक आपदाएं. ये हमारे देश का हुलिया और हमारा जीवन सब बदल रहे हैं. वो भी खतरनाक तरीके से. भारत में पिछले साल यानी 2022 में 1 जनवरी से लेकर 31 अक्टूबर तक 304 दिन होते हैं. इनमें से 271 दिन मौसम खराब ही रहा है. वो भी एक्सट्रीम लेवल पर. 

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इस एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स (Extreme Weather Events) की वजह 2952 लोगों की जान चली गई. 18.1 लाख हेक्टेयर जमीन पर लगी फसल बर्बाद हो गई. एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स यानी मौसम संबंधी भयानक घटनाएं या आपदाएं. सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया में इंसानों द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण और उत्सर्जन की वजह से जलवायु संकट आया है. इससे 2003 से 2022 के बीच विश्व में 504 भयानक एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स हुए हैं.  

इन 504 इवेंट्स में 71 फीसदी इंसानों की वजह से पैदा की गई कंडिशन से हो रहा है. अब आप ही बताइए कि आप मौसम की दुहाई देते हैं. प्रदूषण पर बोलते हैं. लेकिन इन्हें सुधारने का प्रयास नहीं करते. सिर्फ यही नहीं. 

देश में गर्मी में तापमान तेजी से बढ़ता जा रहा है. ऐसे में लोगों को पानी की किल्लत हो रही है. (फोटोः अंकित कुमार/इंडिया टुडे)

खराब मौसम और आपदाओं से हिल गया पूरा भारत

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अगर सिर्फ पिछले साल की बात करें तो 2022 में 107 देशों में 298 एक्सट्रीव वेदर इवेंट्स हुए हैं. इनकी वजह से 11,786 लोगों की जान गई है. अब सिर्फ भारत की बात करते हैं. किस मौसम में कितने एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स आए, और उनसे क्या असर हुआ, कितने लोगों की मौत हुई. कितनी फसलें खराब हुईं. किस राज्य की हालत पस्त रही है.

मध्य भारत में 937 मौतें, मध्यप्रदेश सबसे ज्यादा प्रभावित

भारत के मध्य इलाके में यानी गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में 1 जनवरी से 31 अक्टूबर 2022 के बीच 198 दिनों तक खतरनाक मौसम था. मध्यप्रदेश सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य रहा. कुल मिलाकर इन इलाकों में 937 लोगों की मौत हुई. 1.36 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर लगी फसलें खराब हो गईं. 

देश के कई इलाके सूखे की मार भी झेल रहे हैं. बारिश कम होने की वजह से. (फोटोः गेटी)

पूर्व-उत्तरपूर्व भारत में 799 मौतें, असम की हालत रही खराब 

पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्यों में 191 दिनों तक एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स होते रहे. यानी खराब मौसम का सामना करते रहे. यहां बिहार, झारखंड, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और मेघालय हैं. खराब मौसम की वजह से 799 लोगों की मौत हुई. 2.85 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर लगी फसलें खराब हुईं. सबसे बुरी हालत असम की रही. 

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इन राज्यों ने सबसे ज्यादा दिन किया खराब मौसम का सामना

उत्तर और उत्तर-पश्चिम राज्यों यानी जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान ने सबसे ज्यादा 216 दिनों तक खराब मौसम का सामना किया है. इनमें सबसे ज्यादा बुरी हालत उत्तर प्रदेश की रही. यहां पर खराब मौसम और आपदाओं की वजह से 849 लोगों की मौत हुई. 3.11 लाख हेक्टेयर जमीन पर लगी फसलें खराब हो गईं.

वायु प्रदूषण की वजह से हर साल भारत में लाखों लोगों की जान जा रही है. उम्र कम हो रही है. (फोटोः मंदार देवधर/इंडिया टुडे)

दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा बुरी हालत रही कर्नाटक की 

अगर दक्षिण भारत की बात करें तो तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में खराब मौसम के कुल 145 दिन थे. सबसे बुरी हालत कर्नाटक की रही. इन राज्यों में 367 लोगों की मौत हुई और 10.73 लाख हेक्टेयर जमीन पर लगी फसलें खराब हुईं. 

बेकार कचरा प्रबंधन... 53% कचरे का ट्रीटमेंट ही नहीं होता 

हमारे देश में कचरा प्रबंधन (Waste Management) की स्थिति भी बहुत खराब है. भारत में निकल रहा 53 फीसदी कचरे का ट्रीटमेंट नहीं होता. देश में हर दिन 1.5 लाख टन सॉलिड कचरा निकलता है. इसमें से आधे से ज्यादा कचरे का ट्रीटमेंट ही नहीं हो पाता. इन्हें डंप कर दिया जाता है. अगर मात्रा की बात करें तो इसे बांट सकते हैं. 53 फीसदी में से 23 फीसदी कचरा ट्रीट नहीं होता. 27 फीसदी को डंप कर दिया जाता है. 3 फीसदी कचरा तो उठाया ही नहीं जाता. यानी जहां पड़ा है, वहीं पड़ा रहेगा. 

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देश के ज्यादातर शहरों में आपको इस तरह के कचरे के पहाड़ देखने को मिल जाएंगे. (फोटोः एएफपी)

वायु प्रदूषण से 5 साल घट रहा है भारतीयों का जीवन

साल 2020 में ही यह बात पुख्ता हो गई थी कि भारतीय अपनी पूरी उम्र से औसत चार साल 11 महीने खो रहे हैं. वजह है वायु प्रदूषण. दिल्ली वालों का जीवन तो 10 साल कम हो चुका है. देश के 43.4 फीसदी लोग यानी 59 करोड़ लोग तो अपने जीवन का 5 साल से ज्यादा समय खो चुके हैं. यानी ये इतने पहले मरेंगे. इस मामले में सबसे कम नुकसान लद्दाख के लोगों का हुआ है. वहां के लोगों के जीवन में सिर्फ 4 महीने का अंतर आया है. 

ग्रामीण इलाके में भी लोग खो रहे अपनी उम्र 

सिर्फ शहरों की ही बात नहीं है. ग्रामीण भारत में भी लोग अपनी उम्र का बड़ा हिस्सा खो रहे हैं. गांवों में उम्र खोने का औसत शहरी इलाकों से ज्यादा है. शहर में लोग चार साल 11 महीने की उम्र खो रहे हैं. जबकि ग्रामीण इलाकों में पांच साल दो महीने उम्र खो रहे हैं.   

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