
हर साल ग्लेशियर के कुल वॉल्यूम के करीब 2 प्रतिशत बर्फ के नुकसान के लिए, ग्लेशियोलॉजिस्ट 'एक्सट्रीम' (Extreme) शब्द का इस्तेमाल करते थे. इस साल स्विट्ज़रलैंड (Switzerland) के ग्लेशियरों (Glaciers) ने अपनी औसत 6.2 प्रतिशत बर्फ खो दी है, ये बेहद खतरनाक स्थिति है.
जब सर्दियों में बर्फ गिरती है, और फिर बाद में गर्मियों में नहीं पिघलती है, तो यह ग्लेशियर के द्रव्यमान में जुड़ती जाती है. ऐसे ही कुछ सालों में, गुरुत्वाकर्षण हावी हो जाएगा और ग्लेशियर नीचे की ओर बढ़ना शुरू कर देंगे.
इस गर्मी से पहले ऐल्प्स पर, पिछली सर्दियों में बहुत सीमित बर्फबारी हुई. इसलिए ग्लेशियर आने वाली गर्मियों के लिए ठीक से तैयार नहीं थे. बसंत में प्राकृतिक वायुमंडलीय मौसम पैटर्न, सहारा की धूल को यूरोप तक ले गए और अल्पाइन लैंडस्केप को ढक लिया. धूल बर्फ की तुलना में ज्यादा सौर ऊर्जा अवशोषित करती है, इसलिए अब नारंगी रंग की बर्फ पहले से ज्यादा तेजी से पिघल रही है.
इसके बाद आई एक हीटवेव से पूरे यूरोप में रिकॉर्ड तोड़ तापमान दर्द किया गया. ब्रिटेन के कुछ हिस्सों में पारा पहली बार 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया. समुद्र तल से 1,620 मीटर ऊपर होने के बावजूद ऐल्प्स के स्विस विलेज का तापमान 33 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था.
पिछली बार सबसे ज्यादा ग्लेशियर 2003 में पिघले थे. तब यूरोप में हीटवेव ने कम से कम 30,000 लोगों की जान ले ली, इनमें से फ्रांस में 14,000 से ज्यादा लोग थे. उस साल पूरे स्विट्जरलैंड में 3.8 प्रतिशत ग्लेशियर बर्फ पिघल गई थी.
इस साल, पहली बार, गर्मियों में की जाने वाली स्कीइंग बंद कर दी गई. गाइड्स ने ऊंची चट्टानों पर जाना बंद कर दिया. जमी हुई जमीन जो चट्टानों को एक साथ बांधती है वह पिघल रही थी और चट्टानें लगातार गिर रही थीं.
1972 में अल्पाइन ग्लेशियर प्रोजेक्ट शुरू किया गया था. इसके अंतर्गत 50 सालों तक, हर साल ग्लेशियर पर अभियान चलाए गए. इस प्रोजेक्ट के पांच दशकों में, गोर्नर ग्लेशियर और फाइंडेल ग्लेशियर क्रमशः 1,385 मीटर और 1,655 मीटर पीछे हट गए हैं.
स्विट्ज़रलैंड में इन ग्लेशियर से पिघले हुए पानी का इस्तेमाल बिजली बनाने के लिए किया जाता है. पिघलने वाले ग्लेशियर सूखे के समय, कम वर्षा की भरपाई करने में मदद करते हैं, जलाशयों को भरते हुए, बिजली की आपूर्ति करते हैं.
ग्लेशियर किस हद तक पिघल गया है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि यह किस ऊंचाई पर स्थित है, ग्लेशियर कितने भारी मलबे से ढका है. साथ ही कई स्थानीय जलवायु कारक भी हो सकते हैं.
हालाँकि, हाल ही में प्रकाशित शोध से पता चला है कि ऑस्ट्रियाई ग्लेशियरों ने भी 2022 में इतनी बर्फ खोई है जितनी पिछले 70 सालों में भी नहीं खोई. इसलिए यह बिल्कुल साफ है कि 2022 में बर्फ गंभीर रूप से पिघली है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि एक ही पीढ़ी के अंदर-अंदर कई और ग्लेशियर पूरी तरह से तबाह हो सकते हैं.