
18 दिसंबर 2023 की सुबह साढ़े 11 बजे के पास 4.0 तीव्रता का भूकंप आया. फिर लद्दाख के जंस्कार में पौने चार बजे 5.5 तीव्रता का भूकंप आया. चार बजे किश्तवाड़ में 4.8 पैमाने का दूसरा भूकंप. इसके बाद चीन में 6.2 रिक्टर पैमाने का भूकंप. 24 घंटे में तीनों देशों में भूकंप आया. तीनों देशों में भूकंप का केंद्र हिमालय या उसके आसपास था.
मार्च में अफगानिस्तान में आए 6.6 तीव्रता के भूकंप के बाद पूरा दक्षिण एशिया कांप गया था. भूकंप के झटके तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान, भारत, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान और किर्गिस्तान में महसूस हुए. इसके बाद देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के साइंटिस्ट ने चेतावनी दी थी कि हिमालय में किसी भी समय बड़ा भूकंप आ सकता है.
क्या सच में हिमालय में कोई बड़ा भूकंप आने वाला है? इस पर वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अजय पॉल ने बताया कि हिमालय में कभी भी बड़ा भूकंप आ सकता है. अफगानिस्तान में आए भूकंप की गहराई बहुत ज्यादा थी. इसलिए उसका असल बहुत बड़े इलाके में देखा गया. हम भूकंप के सिस्मिक जोन 5 में हैं. भूकंप से पहले उसके आने की भविष्यवाणी मुश्किल है. जब टेक्टोनिक प्लेट्स से एनर्जी रिलीज होती है. तब भूकंप आता है.
चीन में 118 लोगों की मौत, 6 हजार से ज्यादा घर क्षतिग्रस्त
चीन में 118 लोगों की मौत हो चुकी है. 580 से ज्यादा लोग जख्मी हुए हैं. 6381 से ज्यादा घर टूट गए हैं. या क्षतिग्रस्त हो गए हैं. चीन में 6.2 तीव्रता के भूकंप के बाद 32 और झटके आए. कुछ झटके 4 तीव्रता तक के थे. भारत में जंस्कार में आए भूकंप या पाकिस्तान में धरती हिलने से नुकसान तो नहीं हुआ. लेकिन उत्तरी चीन के कई पहाड़ी इलाके कांप गए.
भूस्खलन की वजह से कई गांव आधे कीचड़ में धंस गए हैं. ये भूकंप हिमालय के किंगहाई और तिब्बतन प्लैट्यू के टेक्टोनिक प्लेटों के एक्टिव होने से आया. चीन का ये इलाका बेहद सर्दी वाला है. यहां बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है. भूकंप के बाद लोगों को ठंड से बचाना चुनौती है. वैज्ञानिकों ने पहले भी चेतावनी दी थी कि हिमालय भूकंप के मामले में नाजुक है.
प्रेशर रिलीज होने पर आते हैं भूकंप, प्लेटों पर बहुत दबाव
पाकिस्तान से लेकर भारत के उत्तर-पूर्व के राज्यों तक हिमालय की पूरी बेल्ट में भूकंप का आना सामान्य घटना है. जब ज्यादा मात्रा में भूकंप आते हैं, तो मतलब ये निकलता है कि टेक्टोनिक प्लेट्स के बीच मौजूद प्रेशर छोटी-छोटी मात्रा में रिलीज हो रहा है. हिमालय में हजारों फॉल्ट लाइन्स हैं. इनमें होने वाली हल्की हलचल भी भारत को हिला देती है.
हिंदूकुश पर भूकंप, 10 मिनट में हिल जाएगी दिल्ली
अगर हिंदूकुश या हिमालय पर 5 या उससे ज्यादा तीव्रता का भूकंप आता है, तो उसकी पहली लहर मात्र 5 से 10 मिनट में दिल्ली की धरती को हिला देगी. यह निर्भर करता है भूकंप की गहराई पर. अगर भूकंप की गहराई कम है, जैसे हाल-फिलहाल में नेपाल, तुर्की या पाकिस्तान में आए थे. तो झटका कम देर के लिए लेकिन जल्दी महसूस होगा. अगर गहराई ज्यादा है, जैसा 21 मार्च 2023 की रात अफगानिस्तान में आया, तो दिल्ली की जमीन ज्यादा देर तक कांपती रहेगी. ये जरूरी नहीं दिल्ली-NCR में भी रिक्टर पैमाने पर उसकी तीव्रता पांच ही रहे. वह कम होती चली जाती है.
भारतीय प्लेट हर साल 15-20 मिमी चीन की ओर खिसक रही
असल में इंडियन टेक्टोनिक प्लेट हर साल 15 से 20 मिलिमीटर तिब्बतन प्लेट की तरफ बढ़ रहा है. इतना बड़ा जमीन का टुकड़ा किसी अन्य बड़े टुकड़े को धकेलेगा, तो कहीं न कहीं तो ऊर्जा स्टोर होगी. तिब्बत की प्लेट खिसक नहीं पा रही हैं. इसलिए दोनों प्लेटों के नीचे मौजूद ऊर्जा निकलती है. ये ऊर्जा छोटे-छोटे भूकंपों के रूप में निकलती है, तो उससे घबराने की जरुरत नहीं है. जब तेजी से ऊर्जा निकलती है तो बड़ा भूकंप आता है.
हिंदूकुश-हिमालय में 7 तीव्रता का भूकंप, तो दिल्ली का क्या होगा?
आमतौर पर 7 तीव्रता का भूकंप दो तरह का नुकसान करता है. पहला होता है एपिसेंट्रल डैमेज यानी जहां भूकंप का केंद्र है उसके 50 से 70 किलोमीटर की रेंज में. ये भूकंप की मुख्य लहर की वजह से होता है. यहां मुख्य लहर तेजी से चारों तरफ फैलना शुरू करती है. इसे सरफेस वेव कहते हैं. ये 200 से 400 km तक चली जाती हैं. कई बार दूरी बढ़ जाती है. अगर हिंदूकुश में इतनी तीव्रता का भूकंप आता है, तो दिल्ली में तबाही तय है. क्योंकि सरफेस वेव दो-तीन मंजिले की इमारतों को तो नहीं गिराती. अगर वो कमजोर न हो तो. सरफेस वेव से 15 मीटर से ऊंची इमारतों को नुकसान पहुंचता है.
हिमालय में आ चुके हैं 8 तीव्रता के भूकंप
12 जून 1897 में असम में, 4 अप्रैल 1905 में कांगड़ा में, 14 जनवरी 1934 को बिहार-नेपाल भूकंप और 15 अगस्त 1950 में असम में भूकंप. यानी दिल्ली के आसपास हिमाचल, उत्तराखंड या पाकिस्तान के किसी इलाके में तीव्र भूकंप आता है तो दिल्ली-NCR की ऊंची इमारतें ताश के पत्तों की तरह गिर जाएंगी.