
बस 51 साल और... चांद पर इंसानी बस्ती बनी होगी. इंसान वहां बच्चे पैदा कर सकेंगे. यानी साल 2075 तक. यह अंदाजा लगाया है कुछ अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के समूह ने. इस समूह का मानना है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव के दक्षिण-पश्चिम में मौजूद हेन्सन क्रेटर में नील आर्मस्ट्रॉन्ग इंटरनेशनल लूनर बेस होगा. यह क्रेटर चांद के साउथ पोल से 30 km दूर है.
यहां पर चीन के इलेक्ट्रिकल इंजीनियर लियु मी और अमेरिकी एस्ट्रोनॉमर डेविड स्कॉट चतुर्थ छह पहियों वाले प्रेशराइज्ड फ्यूल सेल से चलने वाले लूनर कार में घूमेंगे. उनके घूमने का इलाका हेन्सन क्रेटर ही होगा. क्योंकि घूमने के साथ उन्हें वहां पर इंटरनेशनल लूनर बेस का ख्याल भी रखना होगा. उसकी मेंटेनेंस करनी होगी. धरती से संपर्क बनाए रखना होगा.
इस लूनर बेस से 50 किलोमीटर दूर शैकेल्टन क्रेटर में लूनर क्रेटर रेडियो टेलिस्कोप बनाया जाएगा. जो अंतरिक्ष, चंद्रमा और धरती के बीच कम्यूनिकेशन स्थापित करेगा. शैकेल्टन क्रेटर का नजारा बहुत कुछ अफ्रीका के पहाड़ी इलाकों जैसा दिखता है. इतना ही नहीं, कई ऐसे गोल आकार के कैंप होंगे, जिसके अंदर ग्रीनहाउस गैस बनाए जाएंगे.
सोलर पैनल से लेंगे ऊर्जा, कम्यूनिकेशन स्थापित करेंगे
सौर ऊर्जा से चलने वाले थ्रीडी प्रिटिंग रोबोट्स होंगे. जो इन कैंप्स के चारों तरफ फूलने-पिचकने वाले मॉड्यूल बनाएंगे. ताकि इन कैंप्स को छोटे उल्कापिंडों और रेडिएशन से बचाया जा सके. इससे थोड़ी ही दूरी पर सोलर पैनल्स लगाए जाएंगे. ताकि लूनर बेस में जीवन की रक्षा करने वाले यंत्रों को बिजली मिल सके. साथ ही वायरलेस सिस्टम चालू रखा जा सके.
धरती से अलग ग्रह पर पैदा होगी इंसान की नई प्रजाति
ये सब होगा लेकिन अगले 50 सालों के अंदर. एक्सपर्ट्स का मानना है कि इतने समय में चांद पर इंसान एक लूनर स्टेशन बना लेगा. जहां लगातार एस्ट्रोनॉट्स रहेंगे. या फिर कम समय में आते-जाते रहेंगे. सबसे हैरान करने वाली संभावना तो ये जताई जा रही है कि 2075 में चांद पर इंसान अपने बच्चे भी पैदा कर सकेंगे. ये वो पहले इंसान होंगे जो बिना धरती मां की गोद में सर्वाइव करने वाली इंसानी प्रजाति होगी. वह भी किसी अन्य ग्रह पर.
60 के दशक में चंद्रमा राजनीतिक लक्ष्य था
इटली के स्पेस पॉलिसी एडवाइजर जियुसेप रीबाल्डी कहते हैं कि अब वो दिन दूर नहीं है जब चांद पर इंसानी बस्ती बनेगी. वह भी हमेशा के लिए. स्थाई तौर पर. रीबाल्डी कहते हैं कि 1960 के दशक में चंद्रमा एक राजनीतिक लक्ष्य था. उस समय अमेरिका और सोवियत संघ में एक प्रतियोगिता चल रही थी. लेकिन जब अमेरिका वहां पहुंचा तो कई तरह की उम्मीदें जग गईं. कई तरह के नए विचार आने लगे. अब नई तकनीक आ चुकी है. नए यान आ चुके हैं.
Chandryaan-1 ने की चांद पर पानी की खोज
1969 से 1972 के बीच चांद पर छह क्रू मिशन भेजे गए. 12 अमेरिकी एस्ट्रोनॉट्स ने चंद्रमा पर चहलकदमी की. वहां से मिट्टी और पत्थर के 380 किलोग्राम सैंपल लेकर आए. जिनकी आजतक स्टडी हो रही है. बात करते हैं साल 2012 की जब भारत के Chandrayaan-1 ने चंद्रमा पर बर्फीले पानी की खोज की. वह भी ऐसे इलाके में जहां सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती. इतनी ज्यादा मात्रा में बर्फीला पानी मौजूद है कि कई सालों तक इंसान इस्तेमाल कर सकते हैं.
चांद पर पानी मिलना, अंतरिक्ष में सोना मिलने जैसा
चंद्रमा पर पानी की खोज ने ही स्थाई इंसानी बस्ती या बेस बनाने के आइडिया को मजबूत बनाया. चांद के जिन गड्ढों में बर्फीला पानी है, वहीं पर इंसान अपने बस्ती बनाएगा. या उसके आसपास ताकि पानी का इस्तेमाल करके बेस को चला सके. सर्वाइव कर सके. रीबाल्डी ने कहा कि चांद पर पानी मिलना यानी अंतरिक्ष में सोना मिलने जैसा है.
पानी से बनेगा ऑक्सीजन और रॉकेट फ्यूल
रीबाल्डी कहते हैं कि अगर आपको वहां पानी मिल रहा है तो आप उससे ऑक्सीजन बना सकते हैं. रॉकेट के लिए ईंधन बना सकते हैं. अब सिर्फ देशों की स्पेस एजेंसियां ही नहीं बल्कि निजी कंपनियां भी इस काम में मदद कर रही हैं. उनके अपने प्रोजेक्ट हैं चांद को लेकर. चांद पर लैंडर और रोवर भेजने की होड़ लग गई है, ताकि ज्यादा प्रयोग हो सकें.
Chandrayaan-3 ने खोले कई नए राज
अमेरिका, सोवियत संघ, भारत के बाद 2013 में चीन भी इस रेस में शामिल हुआ. पहले युतू रोवर बेजा. फिर युतू-2 को चांद के अंधेरे वाले हिस्से में भेजा गया. 2023 में भारत ने Chandrayaan-3 को दक्षिणी ध्रुव के नजदीक भेजकर इतिहास रच दिया. विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने कई एक्सपेरिमेंट किए. ये भी बताया कि वहां पानी है.
दो दिन बाद जापान भी पहुंच रहा है चांद पर
जापान अपने SLIM मिशन के साथ चांद पर लैंड करने वाला है. उम्मीद है कि दो दिन बाद यानी 19 जनवरी को स्लिम चांद पर लैंड करेगा. अगर सबकुछ सही रहा तो ये सभी देश मिलकर चांद पर स्थाई इंसानी बस्ती या बेस बना लेंगे. ये ठीक उसी तरह का होगा, जैसे अंटार्कटिका में कई देशों के बेस कैंप हैं. जहां वो लगातार एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं.