Advertisement

धीरे-धीरे सिकुड़ रहा चंद्रमा, ठंडा पड़ता जा रहा, यह बन सकती है बड़ी समस्या... जानिए क्यों?

आप चांद देख कर भले ही कई त्योहार मनाते हों, लेकिन चांद बूढ़ा हो रहा है. वह सिकुड़ रहा है. उसका शरीर ठंडा पड़ रहा है. धरती से यह पता नहीं चलता. लेकिन ये प्रक्रिया हो रही है. इसकी वजह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर होने वाले भूस्खलन और भूकंप हैं. एक नई वैज्ञानिक स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है.

धरती का अपना प्राकृतिक उपग्रह लगातार सिकुड़ रहा है. ठंडा पड़ता जा रहा है. धरती का अपना प्राकृतिक उपग्रह लगातार सिकुड़ रहा है. ठंडा पड़ता जा रहा है.
आजतक साइंस डेस्क
  • ह्यूस्टन,
  • 09 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 11:27 AM IST

धरती से दिखने वाला चंद्रमा. जिसकी लोग पूजा करते हैं. कविताएं और शेर लिखते हैं. प्रेमिकाओं की तारीफ के लिए चांद का इस्तेमाल करते हैं. वह खत्म हो रहा है... धीरे-धीरे. बूढ़ा हो रहा है. सिकुड़ रहा है. उसका शरीर ठंडा पड़ता जा रहा है. कुछ लाख साल में यह 45 मीटर यानी 150 फीट से ज्यादा सिकुड़ चुका है. सिकुड़ने का यही दर अब भी बना हुआ है. 

Advertisement

वैज्ञानिकों ने इसकी स्टडी की तो पता चला कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर आने वाले भूकंप और भूस्खलन की वजह से ऐसा हो रहा है. NASA, ISRO समेत कई स्पेस एजेंसियां दक्षिणी ध्रुव पर ही अपने एस्ट्रोनॉट्स को उतारना चाहते हैं. इसलिए यह जगह स्टडी के लिए बहुत जरूरी है. क्योंकि यहीं पर भविष्य में इंसान अपना मून स्पेस स्टेशन बनाएगा. 

यह भी पढ़ें: 2075 तक चंद्रमा पर पैदा होने लगेंगे बच्चे, प्रजाति भी अलग होगी... ऐसी होंगी मानव बस्तियां

अगर यह जगह भौगोलिक तौर पर स्थिर नहीं होगी, तो वहां पर कोई बेस नहीं बनाया जाएगा. कौन चाहेगा कि उसका बेस स्टेशन किसी भूकंप या भूस्खलन का शिकार हो जाए. स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन के प्लैनेटरी साइंटिस्ट टॉम वॉल्टर्स कहते हैं कि चंद्रमा पर छिछले भूकंप आते हैं. जमीन बहुत तेजी से हिलती है. इससे फॉल्ट्स के स्लिप होने का खतरा है.

Advertisement

चंद्रमा पर इंसान कैसे बनाएगा स्थाई बेस स्टेशन?

ऐसे में इस जमीन पर कुछ भी बनाना खतरनाक हो सकता है. पूरे चंद्रमा पर कई नए थ्रस्ट फॉल्टस हैं. ये एक्टिव हैं. यानी इन पर हल्के-फुल्के भूकंपों का भी असर होता है. ये फॉल्ट्स ही चंद्रमा को अंदर से सिकोड़ रहे हैं. इसलिए चांद पर स्थाई आउटपोस्ट बनाने से पहले लोकेशन की स्थिरता का ख्याल रखना होगा. नहीं तो बेस के टूटने का खतरा रहेगा.  

अपोलो समय के डेटा से दिखाई दे रहा अंतर

लूनर रीकॉनसेंस ऑर्बिटर से मिले डेटा चांद की सतह की तस्वीरें लीं. इसके बाद इनका एनालिसिस 1977 में गए अपोलो मिशन के डेटा से किया गया. पता चला कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर 5 तीव्रता का मूनक्वेक (Moonquake) यानी भूकंप आया था. जो कई घंटों तक उस हिस्से को कंपाता रहा. इससे चांद के अंदर कई फॉल्टस बन गईं, जो सिकुड़ रही हैं. 

यह भी पढ़ें: Chandrayaan-3 का जिन गड्ढों में हुआ था परीक्षण, पहली बार उनकी सैटेलाइट तस्वीर आई सामने

भूकंप और उल्कापिंड की टक्कर भी खतरा

सिर्फ यही नहीं इस तरह के भूकंपों से चांद की सतह पर भूस्खलन का भी खतरा बढ़ जाता है. छिछले भूकंप का मतलब उसकी गहराई ज्यादा नहीं होती. ऐसे भूकंपों से नुकसान ज्यादा होने की आशंका रहती है. मैरीलैंड यूनिवर्सिटी जियोलॉजिस्ट निकोलस शमेर कहते हैं कि चांद की सतह सूखी, खुरदुरी और धूल से भरी है. सदियों से इस पर उल्कापिंडों और धूमकेतुओं का बारिश हो रही है. यहां हर टक्कर से कई नुकीले ढांचों का निर्माण होता रहता है. 

Advertisement

अर्टेमिस मिशन से पहले सारी तैयारियां-जांच जरूरी

निकोलस कहते हैं कि ये निर्माण छोटे रेत के गण से लेकर बोल्डर के आकार तक के हो सकते हैं. जब छिछले भूकंप आते हैं, तो ये ही सबसे पहले हिलना-डुलना शुरू करते हैं. जब हम Artemis मिशन की बात करते हैं, तो हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम पहले अपने एस्ट्रेनॉट्स, उनके यंत्रों, रॉकेट्स आदि की सुरक्षा को लेकर पहले ही तैयारी कर लें. यह स्टडी हाल ही में प्लैनेटरी साइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है. 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement