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Pluto की सतह पर धरती की तुलना में 80 हजार गुना कम दबावः स्टडी

भारतीय वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि प्लूटो (Pluto) की सतह पर पड़ने वाला वायुमंडलीय दबाव (Atmospheric Pressure) धरती की तुलना में 80 हजार गुना कम है. इस रिसर्च में नैनीताल (Nainital) स्थित देवस्थल ऑब्जरवेटरी (Davsthal Observatory) की मदद ली गई है.

Plutos atmospheric pressure 80000 times less than earth Plutos atmospheric pressure 80000 times less than earth
aajtak.in
  • नई दिल्ली/नैनीताल,
  • 17 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 6:09 PM IST
  • भारतीय वैज्ञानिकों ने की प्लूटो के वायुमंडलीय दबाव की गणना
  • नैनीताल स्थित देवस्थल ऑब्जरवेटरी की ली गई मदद
  • प्लूटो अब नहीं है हमारे सौर मंडल का हिस्सा, बन चुका है ड्वार्फ प्लैनेट

प्लूटो (Pluto) की सतह पर पड़ने वाला वायुमंडलीय दबाव (Atmospheric Pressure) धरती की तुलना में कई हजार गुना कम है. 6 जून 2020 को मापे गए स्तर के अनुसार यह धरती के वायुमंडली दबाव से 80 हजार गुना कम है. भारतीय वैज्ञानिकों ने इसका अध्ययन करने के लिए नैनीताल स्थित देवस्थल ऑप्टिकल टेलिस्कोप (DOT) की मदद ली है. यहां दो बड़े टेलिस्कोप है. पहला 3.6 मीटर डीओटी और दूसरा 1.3 मीटर देवस्थल फास्ट ऑप्टिकल टेलिस्कोप (DFOT). 

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खगोल विज्ञान में ग्रहण की प्रक्रिया काफी तेज होती है. क्योंकि जब भी कोई अंतरिक्षीय वस्तु किसी देखने वाले के नजरिये से किसी अन्य वस्तु के पीछे छिप जाता है, तब उसे ग्रहण मान लिया जाता है. प्लूटो ने साल 1988 से लेकर 2016 तक 12 बार ग्रहण में गया. हर बार की स्टडी रिपोर्ट बताती है कि इस दौरान इसके वायुमंडलीय दबाव में तीन गुना मोनोटोनिक सेबदलाव आया. 

प्लूटो की सतह पर वायुमंडलीय दबाव धरती की तुलना में काफी ज्यादा कम है. (फोटोः नासा)

इस स्टडी में आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जरवेशनल साइंसेस (ARIES) के वैज्ञानिकों ने का साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिकों ने भी दिया. ARIES को प्लूटो से जो डेटा मिले यानी सिग्नल-टू-नॉयस रेशियो लाइट कर्व्स, उससे पता चला कि प्लूटो पर वायुमंडलीय दबाव 12.23 μbar है. यानी धरती के वायुमंडलीय दबाव से 80 हजार गुना कम. वैज्ञानिकों ने साल 2015 में एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स में प्रकाशित रिपोर्ट को स्टडी का आधार बनाया. हांलाकि यह रिपोर्ट फिर से एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स में छपी है. 

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साल 2019 में प्लूटो वोलाटाइल ट्रांसपोर्ट मॉडल तैयार करके वायुमंडलीय दबाव की फिर से गणना की गई. ताकि यह पता चल सके कि वहां का वायुमंडल कैसे और क्यों बना. पता चला कि प्लूटो पर मौसम में भारी बदलाव होता है. क्योंकि वहीं पर एक खास तरह का बड़ा डिप्रेशन है. जिसे स्पुतनिक प्लैनिशिया (Sputnik Planitia) कहते हैं. प्लूटो के ध्रुव या तो सूरज की रोशनी में रहते हैं या फिर अंधेरे में. क्योंकि उसका एक चक्कर 248 साल लंबा होता है. 

प्लूटो (Pluto) के वायुमंडल का ज्यादातर हिस्सा N2 यानी नाइट्रोजन से भरा है. प्लूटो अब हमारे सौर मंडल से बाहर हो चुका है. वह लगातार धरती के गैलेक्टिक प्लेन से बाहर निकल रहा है. अब वह ड्वार्फ प्लैनेट बन चुका है. अब वह बेहद दुर्लभ होता जा रहा है हर मामले में. न ही उसकी जांच की जा सकती है. न ही उस तक पहुंचा जा सकता है. 

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