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जब कोरोना महामारी में ग्लोबल वॉर्मिंग कम हो सकती है, तो सामान्य जीवन में क्यों नहीं? वैज्ञानिकों ने बताया तरीका

वैज्ञानिकों का कहना है कि 2020 में कोरोना काल के समय, लॉकडाउन की वजह से ग्लोबल वार्मिंग में कमी आई थी. अगर सही तरीके से काम किया जाए तो कार्बन उत्सर्जन को सीमित करने के लक्ष्यों तक पहुंचा जा सकता है.

लॉकडाउन के समय कम हुई थी ग्लोबल वार्मिंग (Photo: India Today) लॉकडाउन के समय कम हुई थी ग्लोबल वार्मिंग (Photo: India Today)
aajtak.in
  • बीजिंग,
  • 03 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 2:12 PM IST
  • 2020 में, ग्लोबल CO2 उत्सर्जन 6.3 प्रतिशत कम हुआ
  • यह गिरावट 2009 में आई कमी से भी बड़ी थी

शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का लक्ष्य हमारे हाथ से फिसलता जा रहा है. हम जानते हैं कि इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए बहुत ही बड़े स्तर पर प्रयास करना होगा. लेकिन कार्बन उत्सर्जन (Carbon Emission) में आवश्यक कमी के पैमाने तक हम असल में पहले ही पहुंच चुके हैं.

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नेचर जियोसाइंस (Nature Geoscience) जर्नल में प्रकाशित एक शोध के नतीजे बताते हैं कि 2020 में, ग्लोबल कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन में 6.3 प्रतिशत या करीब 2,200 मीट्रिक टन (MtCO2) की कमी आई थी. 

2020 में, ग्लोबल CO2 उत्सर्जन में 6.3 प्रतिशत कम हुआ (Photo: India Today)

सिंघुआ यूनिवर्सिटी अर्थ सिस्टम (Tsinghua University Earth system) के वैज्ञानिक झू लियू (Zhu Liu ) ने अपने पेपर में लिखा है कि उत्सर्जन में आई यह कमी, एक साल में होने वाली अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है. यह गिरावट 2009 के वित्तीय संकट (380 MtCO2) में उत्सर्जन में आई कमी और द्वितीय विश्व युद्ध (814 MtCO2) के अंत में आई कमी से भी बड़ी है.

वैज्ञानिकों का कहना है कि कोविड-19 महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था के साथ-साथ हमारा जीवन जीने का तरीका भी प्रभावित हुआ था. लेकिन अगर हमने टार्गेट करके और नियंत्रित तरीके से वैसे ही परिवर्तन किए, तो तकनीकी रूप से कार्बन उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है. 

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ऐसे ही प्रयासों से कम की जा सकती है ग्लोबल वार्मिंग  (Photo: India Today)

उदाहरण के लिए, शोधकर्ताओं ने उत्सर्जन में एक तिहाई गिरावट के लिए परिवहन, जैसे कारों और ट्रकों में भारी कमी को जिम्मेदार बताया. अगर इस परिवहन को बहुत ज्यादा रोकने के बजाय, इसे नवीकरणीय ऊर्जा के साथ चलाते हैं, तो बिना बड़ी कटौती के असरदार नतीजे मिल सकते हैं.

इस सप्ताह क्लाइमेटिक चेंज (Climatic change) में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने से 2 डिग्री सेल्सियस परिदृश्य की तुलना में, मनुष्यों के लिए जोखिम करीब 40 प्रतिशत कम हो जाएगा. और 3.66 डिग्री सेल्सियस परिदृश्य की तुलना में 85 प्रतिशत तक कम होगा. 

 

शोधकर्ताओं ने पानी की कमी, गर्मी के तनाव, बीमारियों, बाढ़, सूखे और आर्थिक प्रभावों पर विचार करने के लिए 21 तरह के जलवायु मॉडल का इस्तेमाल किया. उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि हर स्तर के गर्म होने के साथ करोड़ों लोग गंभीर सूखे के संपर्क में आएंगे. लेकिन 1.5 डिग्री सेल्सियस बने रहने से भविष्य में 2 डिग्री सेल्सियस की तुलना में वैश्विक आर्थिक प्रभाव 20 प्रतिशत तक कम हो सकता है. यहां तक ​​कि मलेरिया और डेंगू बुखार के संपर्क में आने वाले लोगों की संख्या में भी 10 प्रतिशत की कमी आ सकती है.

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