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Indian Tennis Future: टेनिस में भारत का बुरा हाल...42 की उम्र में रोहन बोपन्ना कर रहे संघर्ष, कहां गए युवा खिलाड़ी?

टेनिस की दुनिया में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन पिछले कुछ सालों में खास नहीं रहा है. साल 2017 के बाद किसी भी भारतीय खिलाड़ी ने ग्रैंड स्लैम नहीं जीता है.

रोहन बोपन्ना और सानिया मिर्जा (@Getty) रोहन बोपन्ना और सानिया मिर्जा (@Getty)
अनुराग कुमार झा
  • नई दिल्ली,
  • 07 जून 2022,
  • अपडेटेड 8:57 AM IST
  • भारतीय टेनिस की मौजूदा हालत काफी खस्ता
  • एक जमाने में भारतीय प्लेयर्स की तूती बोलती थी

फ्रेंच ओपन टेनिस 2022 में 2 जून को लाखों भारतीय टेनिस फैन्स की नजरें कोर्ट सिमोन मैथ्यू पर होने वाले मेन्स डबल्स सेमीफाइनल मुकाबले पर थीं. क्योंकि उस मुकाबले में भारत के रोहन बोपन्ना अपने डबल्स पार्टनर नीदरलैंड्स के एम मिडेलकूप के साथ भाग लेने जा रहे थे.

दुर्भाग्यवश, बोपन्ना-मिडेलकूप वह सेमीफाइनल मुकाबला मार्शेलो अरेवालो (सल्वाडोर) और जीन जूलियन रोजर (नीदरलैंड्स)  के हाथों 6-4, 3-6, 6-7 (8-10) से हार गए. 42 साल के बोपन्ना की हार के साथ ही फैन्स की उम्मीदें तो टूटी हीं, साथ ही एक भी सवाल भी छोड़ के गई... टेनिस में भारत का भविष्य क्या???

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...रामनाथन कृष्णन दो बार सेमीफाइनल तक पहुंचे

इतिहास पलटकर देखा जाए तो कोई भी भारतीय खिलाड़ी किसी ग्रैंड स्लैम में सिगल्स का खिताब नहीं जीत पाया है. हालांकि, बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि भारतीय खिलाड़ी ग्रैंड स्लैम के सिंगल्स सेमीफाइनल/क्वार्टरफाइनल में पहुंच चुके हैं. महान टेनिस खिलाड़ी रामनाथन कृष्णन ने 1960 और 1961 के विम्बलडन के सेमीफाइनल में जगह बनाई थी. 1961 के विम्बलडन में तो रामनाथन कृष्णन ने क्वार्टर फाइनल में 12 बार के ग्रैंड स्लैम एकल चैंपियन रॉय एमर्सन को शिकस्त दे डाली थी.

वहीं, विजय अमृतराज ओवरऑल चार बार ग्रैंड स्लैम सिंगल्स के क्वार्टर फाइनल फाइनल में पहुंचने में सफल रहे. उन्होंने ये कारनामा दो-दो बार विम्बलडन (1973 और 1981) और यूएस ओपन (1973 और 1974) में किया. इसके अलावा रामनाथन कृष्णन के बेटे रमेश कृष्णन ने एक बार 1986 के विम्बलडन में और दो बार (1981 और 1987) यूएस ओपन के क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई थी.

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रामनाथन कृष्णन (फोटो क्रेडिट- Getty Images)

डब्लस में पांच सालों से खिताब का सूखा 

सिंगल्स के उलट मेन्स डबल्स, मिक्स्ड डबल्स और वुमेन्स डबल्स में भारतीय खिलाड़ी कुछ साल पहले तक नियमित तौर पर ग्रैंड स्लैम चैम्पियन बनते रहे हैं. लेकिन पिछले 5 साल से इन इवेंट्स में भी खिताब का सूखा पड़ चुका है. आखिरी बार साल 2017 में रोहन बोपन्ना ने फ्रेंच ओपन टेनिस के मिक्स्ड डबल्स में जीत हासिल की थी.

भारतीय टेनिस खिलाड़ियों ने 1997-2017 के दौरान 20 सालों में कुल 30 ग्रैंड स्लैम खिताब जीते हैं. इनमें 18 मिक्स्ड डबल्स, 9 मेन्स डबल्स के और 3 वुमेन्स डबल्स के खिताब है. ये सभी खिताब सिर्फ चार खिलाड़ियों लिएंडर पेस, महेश भूपति, रोहन बोपन्ना और सानिया मिर्जा ने दिलाए. इन खिलाड़ियों ने कभी आपस में तो कभी विदेशी खिलाड़ियों के साथ मिलकर ये टाइटल जीते.

पेस और भूपति (फोटो क्रेडिट- Getty Images)

नागल-रामकुमार कर रहे निराश 

इंडियन एक्सप्रेस के नाम से मशहूर जोड़ी लिएंडर पेस और महेश भूपति टेनिस करियर पर विराम लगा चुके हैं. वहीं, रोहन बोपन्ना भी अपने करियर के आखिरी छोर पर खड़े हैं. ऐसे में भारतीय फैन्स की निगाहें युवा खिलाड़ियों पर जाना लाजिमी है. इन खिलाड़ियों में सुमित नागल, रामकुमार रामनाथन, यूकी भांबरी, प्रजनेश गुणेश्वरन शामिल हैं. हालांकि इनमें से कोई भी फ्रेंच ओपन के सिंगल्स के मुख्य ड्रॉ में जगह नहीं बना पाया. निराशाजनक बात यह भी है टॉप-150 में अभी कोई भी भारतीय खिलाड़ी नहीं है. सिंगल्स को तो छोड़ दीजिए, डबल्स में भी युवा खिलाड़ी कुछ खास नहीं कर पा रहे हैं.

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सानिया का भी वो पुराना टच गायब

महिलाओं की बात करें, तो एक समय सानिया मिर्जा ने इंटरनेशनल टेनिस में अलग पहचान बनाई थी, लेकिन अब  वह भी 35 साल की हो चुकी हैं और उनके खेल में अब वो पुराना टच गायब हो चुका है. 29 साल की अंकिता रैना से भारत को काफी उम्मीदें हैं, लेकिन उनका परफॉर्मेंस कुछ खास नहीं रहा है.

सानिया मिर्जा (फोटो क्रेडिट- Getty Images)

जूनियर लेवल पर भी हालत खराब

सीनियर लेवल पर तो भारतीय टेनिस की हालत दयनीय हो ही चुकी है, जूनियर लेवल पर भी स्थिति कुछ खास नहीं है. ब्वॉयज कैटेगरी में अमन दहिया (97वें) और गर्ल्स कैटेगरी में श्रुति अहलावत (97वें) फिलहाल टॉप-100 में हैं. फ्रेंच ओपन 2022 में कोई भी भारतीय प्लेयर जूनियर कैटेगरी में सिंगल्स के मुख्य ड्रॉ में प्रवेश नहीं कर पाया, इससे आप जूनियर लेवल पर भी भारतीय टेनिस की हालत का आंकलन कर सकते हैं.

पूर्व टेनिस खिलाड़ी जीशान अली कहते हैं, 'हमारे पास पर्याप्त कोच नहीं हैं, जो अंडर-12 और अंडर-14 से बाहर होने के बाद बच्चों के खेल की रूपरेखा तैयार कर सकें. मैं संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में करीब 24 वर्षों से कोचिंग दे रहा हूं. मुझे कोच बनने का तरीका सीखने में पांच से छह साल लग गए. भारत में पर्याप्त कोच भी उपलब्ध नहीं हैं. खेल को बढ़ावा देने वाले बहुत सारे लोग हैं, लेकिन कोर्ट पर बहुत कम.'

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भारतीय फैन्स को उम्मीद है कि आने वाले सालों में भारतीय टेनिस एक बार फिर से बुलंदियों को हासिल करेगा. लेकिन इसके लिए युवा खिलाड़ियों एवं बच्चों में इस खेल के प्रति जागरूकता पैदा करनी होगी. साथ ही, केंद्र एवं राज्य सरकारों को भी इस खेल के विकास हेतु प्रयास करने होंगे.

 

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