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मलबे में दफन हुईं हजारों लाशें और लाखों उम्मीदें

इधर नेपाल के रिहायशी इलाकों में जलजला लोगों के पैरों तले से जमीन छीन रहा था था तो उधर माउंट एवरेस्ट की बर्फीली वादियों में यही जलजला बर्फीला तूफान बन कर गुजर रहा था.

मलबे ने पूरे नेपाल को झकझोरा मलबे ने पूरे नेपाल को झकझोरा
aajtak.in
  • नई दिल्ली/काठमांडू,
  • 28 अप्रैल 2015,
  • अपडेटेड 3:53 AM IST

इधर नेपाल के रिहायशी इलाकों में जलजला लोगों के पैरों तले से जमीन छीन रहा था था तो उधर माउंट एवरेस्ट की बर्फीली वादियों में यही जलजला बर्फीला तूफान बन कर गुजर रहा था. लेकिन एवरेस्ट के बेस कैंप में जुटे कुछ पर्वतारोही ना सिर्फ इस बर्फीले तूफान का मुकाबला कर रहे थे, बल्कि पूरी जांबाजी से इसे अपने कैमरे में कैद भी कर रहे थे. ये किसी बर्फीले तूफान की यकीनन अब तक की सबसे खौफनाक तस्वीर थी.

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हिमालय. जिसकी गोद में पलता है नेपाल और उसी हिमालय और नेपाल का ताज यानी माउंट एवरेस्ट. जिसे फतेह करना आज भी किसी घमंड से कम नहीं. मीलों सफेद चादर में लिपटा ये वो इलाका है जो हर आंखों को सकून देता है. उसी हिमालय में मौत के आने से पहले की खामोशी है ये. 25 अप्रैल दोपहर का वही मनहूस वक्त. दुनिया भर के पर्वातारोही एवरेस्ट को छूने से पहले अलग-अलग एवरेस्ट बेस कैंप में थे. उन्हीं में से एक बेस कैंप है ये. इस कैंप में सौ से ज्यादा लोग थे. कैंप में खास किस्म के टेंट लगे थे. दूर-दूर तक झंडे लहरा रहा थे. मौसम भी ठाकठाक था. इन्हीं टेंटों में से एक टेंट में जर्मन पर्वतारोही जोस्त कोबुच भी मौजूद था. उसका कैमरा ऑन था और हिमालय की खूबसूरती को अपने कैमरे में रिकॉर्ड कर रहा था. चूंकि मौसम साफ था लिहाजा बाकी लोग भी कैंप में इधर-उधर टहल रहे थे. अब तक सब कुछ ठीकठाक था. पर तभी अचानक 7.9 का तूफान काठमांडू और उसके आसपास की धरती को हिचकोले खाने के लिए मजबूर कर देता है. सैकड़ों-हजारों इंसानों के पैरों तले से जमीन खिसक जाती है. सिर पर आफत का पहाड़ टूट पड़ता है. आंसुओं की बारिश हुई. लाशों का सैलाब आता है.

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उधर काठमांडू से मीलों दूर ठीक उसी वक्त इस हिमालय की तस्वीर कुछ और ही दिखाती है. अचानक मौसम बदल जाता है और देखते ही देखते सामने से एक सफेद तूफान का गोला उठता है. गौर से देखिए. ऐसा लगता है मानो समंदर जमीन पर उतर आया हो. ये सफेद तूफान कुछ और नहीं, हिमालय की गुस्साई वो बर्फीली तूफान है जिसे धरती ने हिला कर जगा दिया है. तेवर ऐसे हैं मानो जो भी रास्ते में आएगा उसे रौंदते हुए बस आगे बढ़ जाना है. पर हौसला देखिए तूफान का रुख खुद जोस्त कोबुच की तरफ है लेकिन वो कैमरा नहीं छोड़ता. तूफान की रफ्तार इतनी तेज कि पल भर में वो बेस कैंप को उड़ाता हुआ आगे निकल जाता है. लोगों के पास जान बचाने के लिए बस टेंट की आड़ थी. वो उसी को अपना ढाल बना लेते हैं. बर्फ के गोले उड़ाता तूफान उनके ऊपर से निकल जाता है.

बीच-बीच में हिलते-डुलते कैमरे में बर्फ बन चुके हाथ-पैर नजर आते हैं. बर्फीला तूफान कैंप में मौजूद हर शख्स को अपनी तरह सफेद बना देता है. इस बीच शायद कोई उठना चाहता है, पर तभी उसे कोई रोकता है. रोकने की आवाज आती है. फिर कुछ ही पल बाद तूफान आगे बढ़ जाता है. अब ज़मीन पर बस बर्फ के टुकड़े और गड्ढे बचे थे. पल भर का ये तूफान कैंप के बीस लोगों को अपने साथ उड़ा कर ले गया था. बाद में उन सभी की बर्फ में लिपटी बस लाशें ही मिलीं. कुदरत के गुस्से की कीमत इंसान को इस कदर चुकानी पड़ेगी, ये किसी ने नहीं सोचा था. लेकिन नेपाल में भूकंप के बाद. अब पीछे कुछ बचा है, तो वो है सिर्फ मलबा. नामालूम हंसते-खेलते कितने ही इंसान अब भी इस मलबे में गुम हैं. और उन्हें ढंढने के लिए फिलहाल पूरा काठमांडू मलबे के किनारे खड़ा धड़कते दिलों से हर ईंट के हटने का इंतजार कर रहा है.

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25 अप्रैल सवेरे साढ़े ग्यारह बजे तक यहां दुकानें हुआ करती थीं और इन्हीं में से एक दुकान नीरज की थी. बीवी कुछ दिनों से बीमार चल रही थी. लिहाजा 25 अप्रैल को नीरज अपनी बीवी को डाक्टर के पास अस्पताल ले गया था. अब दुकान बंद करके जा नहीं जा सकता था इसलिए अपने दोनों बच्चों बेटी और बेटे को दुकान में बिठा कर चला गया. इसके बाद जब वो अस्पताल से लौटा तो दुकान की जगह ये मलबा मिला और दोनों बच्चे गायब. पहले तो उसने बच्चों को इधर-उधर तलाशा. पर फिर अचानक उसे मलबे के नीचे से अपने बच्चों को आवाज सुनाई दी. तसल्ली हुई कि चलो बच्चे जिंदा हैं. पर बच्चे बाहर कैसे आएं? वो मलबे के बिल्कुल नीचे थे. दुकान ग्राउंड फ्लोर पर थी और बिल्डिंग तीन मंजिला. कंक्रीट के बड़े-बड़े पत्थर मलबे के नीचे का रास्ता रोके हुए थे. हाथ से मलबा हट नही सकता था. अब मलबे के नीचे तक कैसे पहुंचें यही सवाल नीरज को और रुला और डरा रहा था.

तबाही चारों तरफ थी. मलबे हर तरफ बिखरे थे. और हर मलबे में कोई ना कोई जिंदगी दबी पड़ी थी. और हर जिंदगी बचानी जरूरी थी. लिहाजा इस मलबे के ढेर तक भी बचाव दल पहुंचा. मगर मलबे के तह तक पहुंचना दुश्वार था. लिहाजा जब बाकी कोशिश नाकाम हो गई तो ड्रिल से सीमेंट्र कंक्रीट को काटने का सिलसिला शुरू हुआ. ताकि रास्ता बना कर नीचे तक उतरा जा सके. इस कोशिश में पूरा एक दिन निकल गया. पर मां-बाप लगातार उसी मलबे के मुंह पर बैठे रहे जिसमें से बच्चों की आवाज आ रही थी. बीमार मां का तो रो-रो कर बुरा हाल था. कलेजे के दोनों टुकड़े सामने कब्र में जिंदा दफ्न हो रहे थे और वो बेबस थे. किसी तरह मातम और दुआओं के बीच रात गुजरी. सुबह बचाव का काम फिर शुरू हुआ. मगर अब अंदर से बच्चों की कोई आवाज नहीं आ रही थी.

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हालांकि बचाव के काम में लोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. अब भी मलबे को साफ कर बच्चों तक पहुंचने की कोशिश जारी है. मगर बच्चों की खामोश हो चुकी आवाज ने नीरज को डरा दिया है. ऊपर वाला करे कि नीरज का डर गलत हो. बच्चे सही-सलामत निकल आएं. हो सकता है वो बेहोश हो गए हों इसलिए खामोश हो गए. आप भी दुआ कीजिएगा कि इस मां के दोनों लाल जिंदा होंऔर जिंदा ही मलबा से बाहर आएं.

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