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सितारे जिन्होंने तय किया किया फर्श से लेकर अर्श तक का सफर

अगर आप सोचते हैं कि पर्दे पर चमकते सितारे की जिंदगी हमेशा से ऐसी ही रोशन थी तो आप गलत हैं. बॉलीवुड में दर्जनों ऐसे स्टार हैं जिन्होंने फर्श से लेकर अर्श तक का सफर तय किया है.

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aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 25 जून 2015,
  • अपडेटेड 10:51 AM IST

अगर आप सोचते हैं कि पर्दे पर चमकते सितारे की जिंदगी हमेशा से ऐसी ही रोशन थी तो आप गलत हैं. बॉलीवुड में दर्जनों ऐसे स्टार हैं जिन्होंने फर्श से लेकर अर्श तक का सफर तय किया है. अपने करियर के शुरुआती दौर में इन स्टार्स ने कंडक्टर, कुली और यहां तक कि चाय बेचने तक का काम किया है. लेकिन बावजूद इसके अपनी मेहनत और जुनून की वजह से सितारों ने न सिर्फ सफलता पाई बल्कि शौहरत की बुलंदियां हासिल की.

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रजनीकांत: साउथ इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में एक्टिंग के इस महारथी को भगवान की तरह पूजा जाता है. रजनीकांत के पिता रामोजी राव गायकवाड़ एक हवलदार थे. मां की मौत के बाद चार भाई-बहनों में सबसे छोटे रजनीकांत को अहसास हुआ कि घर की माली हालत ठीक नहीं है. आप शायद जानते नहीं होंगे कि सुपरस्टार रजनीकांत एक वक्त बस कंडक्टर का भी काम करते थे. परिवार को सहारा देने के लिए उन्होंने कुली का भी काम किया. इसके बाद कन्नड के नाटकों में उन्हें छोटे-मोटे रोल ऑफर किए गए. लेकिन रजनीकांत ने हिम्मत नहीं हारी और आज उनकी एक्टिंग का लोहा पूरी दुनिया मानती है.

शाहरुख खान: आज शाहरुख भले ही बॉलीवुड के बादशाह हो पर आज से 24 साल पहले ऐसा नहीं था. एक साधारण से परिवार से संबंध रखने वाले शाहरुख खान को फिल्म इंडस्ट्री में जो मुकाम हासिल है उसके लिए उन्होंने काफी मेहनत की है. शुरुआती दौर में शाहरुख खान ने दिल्ली के दरियागंज में एक छोटा रेस्टोरेंट बिजनेस भी खोला था लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. आपको जानकर हैरत होगी कि पकंज उदास के कंसर्ट में काम करके उन्हें सबसे पहली सैलरी 50 रुपये मिली थी.

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नवाजुद्दीन सिद्दीकी: आर्थिक हालत ठीक नहीं होने के कारण इस एक्टर ने तो दिल्ली के शाहदरा में रात में चौकीदारी का काम कर लिया और एनएसडी में अपने ऐक्टिंग के हुनर को मांजने लगा. उसने 1996 में एनएसडी से अपनी शिक्षा पूरी की. साइंस में ग्रेजुएशन के बाद नौकरी मिलना आसान न था. नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने कई जगह कोशिश की तो केमिस्ट की नौकरी मिल गई. लेकिन इनकी किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था. इसे नवाजुद्दीन सिद्दीकी की मेहनत ही कहेंगे कि आज इनकी एक्टिंग की मिसाल दी जाती है.

अमिताभ बच्चन: महानायक अमिताभ बच्चन की जिंदगी भी संघर्षों से भरी हुई थी. आपको शायद पता नहीं होगा कि जब अमिताभ बच्चन इलाहाबाद से मुंबई आए थे तो उनके पास रहने की भी जगह नहीं थी,कई रातें उन्होंने मरीन ड्राइव की बेंचों पर बिताई थी. यहीं नहीं अमिताभ बच्चन इंजीनियर बनना चाहते थे और इंडियन एयर फोर्स में जाना उनका सपना था. अमिताभ बच्चन की पहली सैलरी करीब 300 रुपये थी.

जॉनी वॉकर: एक्टर और कॉमेडियन बद्दरूद्दीन जमालुद्दीन काजी जिनका फिल्मी नाम जॉनी वॉकर था ने अपने करियर की शुरुआत एक बस कंडक्टर के तौर पर की. जहां वो पैसेंजर्स को हंसाते रहते थे. वहीं बलराज साहनी की निगाह जॉनी वॉकर पर पड़ी और उन्होंने उन्हें गुरू दत्त से मिलवाया.

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स्मृति ईरानी:नरेंद्र मोदी की सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी दिल्ली छोड़ मायानगरी मुंबई का रुख किया तो उन्हें वहां मैकडोनल्ड्स में झाडू-पोंछा और वेटर का भी काम करना पड़ा, लेकिन उनका आत्मविश्वास नहीं डिगा. टीवी सीरियल्स में खुद को साबित करने के बाद आज उन्होंने राजनीति में भी अपनी अलग पहचान बनाई है.

महमूद: फिल्मी दुनिया के जाने-माने कलाकार महमूद ने अपना करियर चाइल्ड एक्टर के तौर पर शुरू किया था. महमूद के पिता शराबी थे और जिसकी वजह से उनके घर का सारा सामान बिक गया था ऐसे में घर की जिम्मेदारी महमूद पर आ गई थी. अपनी कॉमेडी से फिल्मों में अलग छाप छोड़ने वाले इस कलाकार ने करियर के शुरुआती दौर में बस ड्राइवर और अंडे बेचने का भी काम किया है.

बमन ईरानी: मुंबई के मीठीबाई कॉलेज से ग्रेजुएशन के बाद बमन ने ताज होटल में बतौर वेटर और रूम सर्विस स्टाफ काम शुरू किया. मां कन्फेक्शनरी की दुकान चलाती थीं. मध्यवर्गीय पारसी परिवार था. मां के बहुत ऊंचे अरमान नहीं थे कि बेटा डॉक्टर-इंजीनियर बन जाए. इसके बावजूद उन्होंने एक्टिंग में अपना लोहा मनवाया.

अक्षय कुमार: फिल्मी दुनिया के खिलाड़ी यानी एक्टर अक्षय कुमार की जिंदगी भी कम संघर्ष वाली नहीं थी. बैंकांक में उन्हें होटल में बर्तन साफ करने और वेटर के तौर पर काम किया है. यही नहीं वो शेफ भी रह चुके हैं. होटल में नौकरी के दैरान उन्हें 1500 रुपये दिए जाते थे और रात को किचन के फर्श पर सोना पड़ता था.

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राकेश ओमप्रकाश मेहरा: 'रंग दे बसंती' जैसी फिल्में बना चुके राकेश ओमप्रकाश मेहरा का संघर्ष भी काबिले तारीफ है. उन्हेंने महज 352 रुपये महीने में सेल्समैन की नौकरी की. उनके लिए वो समय काफी मुश्किल था जब 'घर-घर जाकर वैक्यूम क्लीनर बेचने की उस नौकरी में कितने ही दरवाजे मुंह पर बंद होते थे. यही नहीं उन्होंने नौवीं क्लास से ही नौकरी करना शुरू कर दिया था. उन्हेंने कभी ऐड एजेंसी में, तो कभी टूरिस्ट कैंप में नौकरी कर महीने के करीब 100-150 रुपये कमाए और घर में पिताजी की मदद की.

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