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आजतक पंचायत: जिन्ना की तस्वीर हटाने के लिए कानून की जरूरत नहीं-BJP

देश का सबसे बड़ा न्यूज चैनल आजतक 'जिन्ना एक विलेन पर जंग क्यों' पर पंचायत आयोजित कर रहा है. पांच घंटे चलने वाली इस पंचायत में इस विषय से जुड़ी हस्तियां इसके तमाम पहलुओं पर चर्चा कर रहे हैं.

जिन्ना पर पंचायत जिन्ना पर पंचायत
राहुल विश्वकर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 07 मई 2018,
  • अपडेटेड 12:32 AM IST

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में लगी मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर को लेकर देश में सियासत गर्म हो गई है. इस मुद्दे पर देश के सबसे बड़े न्यूज चैनल आजतक ने 'जिन्ना एक विलेन पर जंग क्यों' पर पंचायत आयोजित किया. पांच घंटे तक चली इस पंचायत में इस विषय से जुड़ी हस्तियों ने इसके तमाम पहलुओं पर चर्चा की. पंचायत में कुल पांच सत्र आयोजित किए गए.

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पहला सत्र: मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम

दूसरा सत्र: ‘जिन्ना की जरूरत क्यों?

तीसरा सत्र: जिन्ना ने फिर बांट डाला

चौथा सत्र: राष्ट्रवाद बनाम जिन्नावाद

पांचवां सत्र: हिंदुस्तान में किसको चाहिए जिन्ना?

रात 8 से 9 बजे तक पांचवां सत्र चला जिसका नाम - हिंदुस्तान में किसको चाहिए जिन्ना? है. इस सत्र का संचालन अंजना ओम कश्यप ने किया. इसमें संबित पात्रा, (बीजेपी प्रवक्ता), राकेश सिन्हा (संघ विचारक), घनश्याम तिवारी (सपा प्रवक्ता), मो. सज्जाद (प्रवक्ता, एएमयू), जफर सरेशवाला (चांसलर, मौलाना आजाद विश्वविद्यालय हैदराबाद), सुधींद्र कुलकर्णी (राजनीतिक विश्लेषक) केसी त्यागी (जेडीयू) और मोहसिन रजा (राज्यमंत्री यूपी सरकार) वक्ता थे.

पांचवा सत्र

जफर सरेशवाला - जिन्ना की सोच की धज्जियां तो मुसलमानों ने 1942 में ही उड़ा दी थीं. जिन्ना की विचारधारा को मुसलमानों ने न सिर्फ नकारा, बल्कि उसे पंक्चर किया. शायद ही कोई हिन्दुस्तान से पाकिस्तान गया. शायद बिहार और कुछ यूपी से ही गए. मुसलमानों ने तो उसी वक्त मुंहतोड़ जवाब दे दिया था. आज हमारे मुल्क की एक पार्टी बार-बार सबको पाकिस्तान भेजने की बात करती है, उनके लिए बता दूं कि हमने जवाब दिया है. सबसे बड़ा शिगाफ हमने दिया है. एएमयू के चांसलर और वाइस चांसलर को अब फ्रंट फुट पर आ जाना चाहिए और बच्चों को समझाना चाहिए. एक नुकसान पहले ही हो चुका है. 12 मई तक परीक्षाएं स्थगित हो गई हैं. तस्वीर हो या न हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.

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केसी त्यागी: आजादी के आंदोलन के सबसे बड़ा नेता महात्मा गांधी हैं. जिन्ना को किसी भी तरीके से महिमामंडित करने का प्रयास अच्छा नहीं है. गांधी जी ने कहा था पाकिस्तान मेरी डेड बॉडी पर बनेगा, लेकिन कांग्रेस की थकी हुई लीडरशिप के आगे वे भी बेबस हो गए. गांधी जी को भी विभाजन स्वीकार करना पड़ा. क्या 80 साल के बाद लोगों को पता चला कि यहां जिन्ना की तस्वीर लगी है. मैं तो चाहता हूं कि जिन्ना की तस्वीर हटाकर गांधी जी की तस्वीर लगा देनी चाहिए.

संबित पात्रा: हिन्दुस्तान के कानून में कहीं नहीं लिखा है कि अपने माता-पिता की सेवा करें. फिर भी लोग करते हैं. इसके लिए दिल में जगह होनी चाहिए. जिसने देश का विभाजन कर दिया हो, उसके लिए किसी प्रतियोगिता या कानून बने, इसकी जरूरत ही नहीं होनी चाहिए.जिन्ना के साथ हम किसी भी कीमत पर खड़े नहीं हो सकते. इस तस्वीर को तुरंत उखाड़कर बाहर फेंकिए. 

सुधींद्र कुलकर्णी: देश के विभाजन के लिए जिन्ना से ज्यादा अंग्रेज दोषी हैं. और हम आज हिंदू-मुसलमान में लड़ रहे हैं. 2005 में मैं भी आडवाणी जी के साथ पाकिस्तान गया था. तब जिन्ना की मजार पर आडवाणी जी ने कहा कि 1930 तक हिंदू-मुसलिम एकता के जिन्ना हिमायती थे. दूसरी बात आडवाणी जी ने कही कि 11 अगस्त  1947 को जिन्ना ने पाकिस्तान की संविधान समिति के अपने भाषण में कहा कि पाकिस्तान मजहबी मुल्क नहीं होगा. इस्लामी मुल्क नहीं होगा. यहां हिन्दू-मुसलमान सब मिलकर बराबर रहेंगे. आडवाणी जी ने कहा था कि यह सेक्युलरिज्म का एक मॉडल है. तो आडवाणी ने तो सच्चाई ही बताई थी. जिन्ना ने बाद में एक इंटरव्यू में कहा था कि भारत और पाकिस्तान के संबंध अमेरिका और कनाडा जैसे होने चाहिए. जिन्ना ने अपने पहले हाई कमिश्नर श्रीप्रकाशा से कहा कि जाकर जवाहर लाल नेहरू को कहिए कि मैं मुंबई वापस आकर रहना चाहता हूं. मैंने वहां जो घर बनवाया है, वहां रहना है.

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मो. सज्जाद: हम जिन्ना के लिए नहीं लड़ रहे हैं. हमारी लड़ाई तो पुलिस ने जो लाठीचार्ज किया, उसके विरोध में है. उप राष्ट्रपति के होने के बावजूद वहां कुछ राष्ट्रवादी संगठनों को जाने दिया गया. हमारी लड़ाई इस बात के लिए है. खत पहुंचने का भी इंतजार नहीं किया गया. जवाब तो दूर की बात.

मोहसिन रजा: एएमयू एक शिक्षण संस्थान है. वहां के बच्चों को अगर आजादी के विलेन के बारे में नहीं बताया जाएगा तो ये देश का नुकसान होगा. हमारे और भी कई महापुरुष हैं. हम उनकी तस्वीर क्यों नहीं लगाते? बच्चों को गुमराह किया जा रहा है. एएमयू के लोग दूसरों के हाथ की कठपुतली बन गए हैं.

चौथा सत्र

शाम 7 बजे से 8 बजे तक चौथा सत्र राष्ट्रवाद बनाम जिन्नावाद चला. इस सत्र का संचालन श्वेता सिंह ने किया. इसमें AIMPLB के सदस्य जफरयाब जिलानी, इस्लामिक स्कॉलर रिजवान अहमद, AMUSU के पूर्व उपाध्यक्ष सैयद मसूद-उल-हसन और बीजेपी के प्रवक्ता सुधांशु त्रिपाठी मौजूद थे.

चौथा सत्र राष्ट्रवाद बनाम जिन्नावाद में बहस के दौरान AIMPLB के सदस्य जफरयाब जिलानी ने कहा कि जिन्ना कांग्रेस के बड़े नेता और वकील रहे हैं. विभाजन अलग चीज है. बीजेपी के कहने से कुछ गलत नहीं हो जाएगा. इस देश में संविधान नाम की भी चीज है. हमारे संविधान के निर्माताओं ने क्या सोचा, हमें ये देखना होगा.

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राष्ट्रवाद बनाम जिन्नावाद सत्र के दौरान इस्लामिक स्कॉलर रिजवान अहमद ने कहा कि यह हमारी बहसों का स्तर गिरा है कि हम जिन्ना की फोटो लगने या हटने की बात कर रहे हैं. यह फोटो तो बॉम्बे हाईकोर्ट में भी लगी है. उन्होंने कहा कि छात्रों को तस्वीर हटाने या लगाने को लेकर विवाद में नहीं पड़ना चाहिए. उनको अपनी पढ़ाई करनी चाहिए, लेकिन उनको तो नेतागिरी करनी है. आरएसएस के ट्रैप में फंसना है और फिर कहना है कि मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है.

रिजवान अहमद की बात पर AMUSU के पूर्व उपाध्यक्ष सैयद मसूद-उल-हसन ने कहा कि हम जिन्ना के पक्षकार नहीं हैं. AMU में छात्रों पर लाठी चार्ज की गई और इसके खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.

इस दौरान बीजेपी के प्रवक्ता सुधांशु त्रिपाठी ने कहा कि अगर मामले में कोई भी दोषी पाया जाएगा, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने कहा कि तस्वीर हटना और कार्रवाई होना दोनों तकनीकी पहलू हैं, लेकिन यहां लड़ाई सिद्धांत की है. एक राष्ट्र पाकिस्तान जिसको जिन्ना ने बनाया और एक स्वतंत्र राष्ट्र बना भारत....दोनों में अंतर यह है कि दुनिया की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी अगर अमेरिका के बाहर अपना ऑफिस खोलती है, तो भारत के बेंगलुरु में और वहीं दुनिया का सबसे बड़े आतंकी संगठन अलकायदा का सरगना मिलता है, तो पाकिस्तान में.

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उन्होंने कहा कि अगर दुनिया में कोई कार्यक्रम हो रहा होता है, तो यह कहा जाता है कि इसमें कोई न कोई भारतीय होगा, लेकिन जब कहीं आतंकी हमला होता है, तो कहा जाता है कि इसमें कोई न कोई पाकिस्तानी शामिल होगा.

तीसरा सत्र

6 से 7 बजे तक चले तीसरे सत्र 'जिन्ना ने फिर बांट डाला' में सुधांशु त्रिवेदी  (प्रवक्ता, बीजेपी), अनुराग भदौरिया (प्रवक्ता, सपा), मौलाना महमूद मदनी (महासचिव जमियत-ए-उलेमा-ए हिंद), कमाल फारुकी (सदस्य ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) राकेश सिन्हा (आरएसएस विचारक), प्रो. मो. सज्जाद (प्रवक्ता, एएमयू) मौजूद हैं. इस सत्र के संचालन अंजना ओम कश्यप ने किया.

सुधांशु त्रिवेदी - मामला सिर्फ तस्वीर का नहीं है. जिन्ना एक जहनियत है. 100 साल हो गए, वक्त बदल गया, लेकिन प्रवृत्ति नहीं बदली. 1916 की बैठक में भी ऐसी ही बातें की गईं. दुनिया में कोई एक देश बताइए जो उसी देश को तोड़ने वाले के पक्ष में खड़ा होकर बोल रहा है.

मौलाना महमूद मदनी - मुल्क में लोगों को दूर करने की प्लानिंग की जा रही है. इसके लिए नई-नई चीजें की जा रही हैं. इस मामले को तूल नहीं देना चाहिए. इसे हटा लेना चाहिए. झगड़ा मुल्क में नहीं होना चाहिए. हमारे बुजुर्गों ने बंटवारे के वक्त भारत को चुना. जिन्ना के बंटवारे की वजह से जितना नुकसान भारतीय उपमाहद्वीप का हुआ उससे ज्यादा नुकसान इस्लाम का हुआ, क्योंकि उन्होंने इस्लाम ने नाम पर ही पाकिस्तान बनाया. इसलिए मैं जिन्ना से नफरत करता हूं. तस्वीर का विवाद तो पहले दिन ही खत्म हो जाना चाहिए था. बिना तूल दिए उसे हटा देना चाहिए था.

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राकेश सिन्हा - देश में जब-जब आजादी के लिए आंदोलन हुए, तब-तब जिन्ना देश से बाहर था. लंदन से भारत तब आया जब उसने मुस्लिम लीग से कहा कि उसे अध्यक्ष बनाया जाए.  जिन्ना नादिर शाह था. ट्रिब्यून अखबार ने 23 अगस्त 1946 में अपने संपादकीय में लिखा था कि 16 अगस्त 1946 को कलकत्ता की सड़कों को जिन्ना ने बूचड़खाने में तब्दील कर दिया. उस समय 15 हजार लोग मारे गए थे. जिन्ना की तुलना हिटलर से की जा सकती है, नादिर शाह, गौरी-गजनी से की जा सकती है.

कमाल फारुकी - एएमयू का चरित्र देखना है तो ये देखिए कि किसने उसकी स्थापना की. इतिहास से हमें सबक लेना चाहिए. मैं भारत के ताल्लुक से जिन्ना  को अच्छा नहीं मानता. उनकी जिद के चलते बंटवारा हो गया. लेकिन बंटवारे की बात पहले आरएसएस ने की थी. जिन्ना का कोई समर्थक नहीं है. बीजेपी जिन्ना के सहारे सिर्फ चुनाव लड़ना चाहती है. कायदे से पूरे देश से जिन्ना की तस्वीर हटा देना चाहिए. ऐसा करने से जो इस पर राजनीति कर रहे हैं, कर्नाटक चुनाव में उनकी हवा निकल जाएगी.

प्रो. मो. सज्जाद - सांसद ने 30 अप्रैल को जिन्ना की तस्वीर हटाने के लिए पत्र लिखा और 30 को ही ये बात मीडिया में आ गई. पत्र का जवाब आने से पहले ही इस पर हल्ला मच गया.

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अनुराग भदौरिया-  चुनाव में ही ऐसे मुद्दे बीजेपी वालों को याद आता है. जैसे शिखंडी हमेशा दूसरों के कंधे पर रखकर हथियार चलाता है, वैसे ही बीजेपी है. ये हमेशा हिंदू-मुसलिम करते हैं. लोगों की भावनाओं से खेलते हैं.

दूसरा सत्र

5 से 6 बजे तक चले दूसरे सत्र ‘जिन्ना की जरूरत क्यों? में गौरव भाटिया (बीजेपी प्रवक्ता), घनश्याम तिवारी (सपा प्रवक्ता), सुनीत चोपड़ा (सीपीआईएम नेता), मसुदुल हसन (एएमयू के पूर्व छात्र नेता), अनवर खुर्शीद (प्रोफेसर एएमयू), और कनाडा से पाकिस्तानी विद्वान तारिक फतह जुड़े हैं. सत्र का संचालन रोहित सरदाना ने किया.

गौरव भाटिया - हम विरोध कर रहे हैं क्योंकि हम पंथनिरपेक्ष व्यक्ति हैं. जबकि जिन्ना धर्म के आधार पर देश बनाने की पैरवी करता था. डायरेक्ट एक्शन डे यानि 16 अगस्त 1946 के दिन उसने मुसलमानों से कहा था कि अब अपनी ताकत दिखाओ. उस दिन से वो भारत के लिए विलेन बन गए.  उस दिन 5 हजार भारतीय मारे गए. एक लाख लोग हमारे लोग बेघर हो गए. एक दीवार पर पूरा चित्र तो छोड़ दीजिए, हम उन्हें एक इंच जगह नहीं दे सकते.

घनश्याम तिवारी -जिन्ना की फोटो हटाने से हिन्दू-मुलसिम लड़ जाएंगे. जब जिन्ना देश को बांट रहा था, उस वक्त भाजपा के पुरखे जिन्ना के साथ टू नेशन की थ्योरी के साथ खड़े थे.

सुनीत चोपड़ा - जिन्ना वो आदमी था जिसने बाल गंगाधर को अंग्रेजों के खिलाफ केस लड़कर जितवाया था. हिन्दुस्तान की लड़ाई का वो भी हिस्सा था.

तारिक फतह- जिन्ना की तस्वीर 70 सालों से क्या छिपा कर रखी थी. ईस्ट पाकिस्तान यानि बांग्लादेश में तो आजादी के पहले दिन ही जो जिन्ना हाल था उसका नाम बदल कर चिटगांव के फ्रीडम फाइटर के नाम पर कर दिया गया. पाकिस्तान बनाने में तो यूपी-बिहार के नवाबों का हाथ था. जिन्ना तो उनके किराए के पिट्ठू थे जो अंग्रेजों ने दिए थे. सारा पैसा भोपाल के नवाब और हैदराबाद के नवाब के जरिए जाता था. 1947 में गांधी जी से पैसा मिलने के बाद इन्होंने एक लाख सैनिक भारत में भेजे. बारामुला और कई जगह कश्मीर में इन्होंने हिन्दुस्तानी औरतों का रेप किया. उसके उस समय जेहाद कहा जाता था. जिस शख्स ने हिन्दुस्तान पर हमला किया, उसे आप एएमयू में रख दिया. सर सैयद अहमद खान की बनाई यूनिवर्सिटी से जिन्ना का क्या मतलब?

अनवर खुर्शीद- जिन्ना प्रासंगिक है ही नहीं. अगर जिन्ना की बर्थ या डेथ एनिवर्सरी मना रहे होते तो उसका विरोध समझ में आता. लेकिन हमारे यहां बिल्डिंग राष्ट्रभक्त लोगों के नाम पर है. जिन्ना हमारे इतिहास का हिस्सा है. आप इतिहास को नहीं मिटा सकते. जिन्ना की तस्वीर कई जगहों पर लगी है. हम जिन्ना की तस्वीर रोल मॉडल के तौर पर एएमयू में नहीं लगाए हैं. अगर जिन्ना से इतनी ही दिक्कत थी तो जिन्ना की ऑबिचुरी पार्लियामेंट में पास नहीं करनी चाहिए थी. डॉ. राजेंद्र प्रसाद को उस पर नहीं बोलना चाहिए था. हमें आस्था और इतिहास में फर्क करना चाहिए. जिन्ना हमारी आस्था नहीं है. 

मसुदुल हसन - इस देश को जिन्ना की किसी भी सूरत में जरूरत नहीं है. हमारी लड़ाई जिन्ना के लिए नहीं बल्कि हमारे ऊपर किए गए बल प्रयोग के विरोध में है. एसपी ने लाठीचार्ज क्यों किया? भगवा गुंडे हमारे कैंपस के करीब आए और तमंचे लहराये. हमारी लड़ाई इसके विरोध में है. एएमयू की ऐतिहासिक धरोहर बचाने के लिए लड़ रहे हैं.

अर्जुन सिंह- जिन्ना वही व्यक्ति है जो महात्मा गांधी को महात्मा नहीं कहता था. वो कहता था कि महात्मा हिंदू शब्द है. एएमयू वही है जहां सिमी जैसे आतंकवादी संगठन की शुरुआत हुई. हमारी लड़ाई प्रतीकात्मक है.

पहला सत्र

शाम 4 से 5 बजे तक चलने वाले सत्र का नाम है मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम. इसका संचालन निशांत चतुर्वेदी ने किया. पहले सत्र में रोहित चहल (नेशनल मीडिया इन चार्ज बीजेवाईएम), शहला राशिद (पूर्व छात्र संघ उपाध्यक्ष जेएनयू), सौरभ चौधरी (छात्र नेता एएमयू), नाजमुस शाकिब (कैबिनेट मेंबर एएमयू छात्र संघ), कंवलप्रीत कौर (आइसा अध्यक्ष, दिल्ली विश्वविद्यालय) कुर्बान अली (वरिष्ठ पत्रकार और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ओल्ड बॉयज एसोसिएशन के सदस्य), फिरोज बख्त अहमद (शिक्षाविद) मौजूद हैं.

पहले सत्र में अलीगढ़ यूनिवर्सिटी ओल्ड ब्वायज एसोसिएशन के प्रेसिडेंट इरशाद अहमद ने कहा कि जिन्ना की तस्वीर से किसी को मोहब्बत नहीं है. ये तो फैलाया जा रहा है. ये तस्वीर 1938 में लगी थी.  तस्वीर को हटाने का कोई तो कानून होगा. अलग मुल्क के लोग कहें तो उसे हटा दें, लेकिन तस्वीर का विरोध युवा वाहिनी ही कर रही है.

रोहित चहल ने कहा कि जिन्ना की तस्वीर के अलीगढ़ लाहौर नहीं बन जाता, लेकिन ये लगी ही क्यों है?

शहला राशिद ने कहा कि मारपीट  पूरी तरह गलत है क्योंकि हिन्दू महासभा ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर बंगाल में सरकार बनाई थी. ये आरएसएस वाली मानसिकता भी टू नेशन के थ्योरी को सपोर्ट करती है. जिन्ना भी टू नेशन पर यकीन करते थे. कठुआ कांड से ध्यान हटाने के लिए ये विवाद खड़ा किया जा रहा है.अगर जिन्ना की तस्वीर से दिक्कत है तो सावरकर की तस्वीर क्यों नहीं हटाते?

सौरभ चौधरी ने कहा कि हमारे कार्यकर्ताओं ने नहीं बल्कि एएमयू के छात्र नेताओं ने मारपीट की थी. सांसद ने सिर्फ तस्वीर हटाने के लिए पत्र लिखा है. उन्हें ये अधिकार है.

बहस में कंवलप्रीत कौर ने कहा कि अगर आपको जिन्ना से दिक्कत है तो संसद में लगी सावरकर की फोटो क्यों नहीं हटाते? आप जिन्ना की तस्वीर बेशक हटा दीजिए, लेकिन सावरकर की तस्वीर क्यों लगा रखी है.

साकेत बहुगुणा ने कहा कि एएमयू में सम्मानित जगह पर जिन्ना की फोटो हटा देनी चाहिए. मोरार जी देसाई को मिला निशान-ए-पाकिस्तान सम्मान भी उनके परिवार को वापस कर देना चाहिए. जो व्यक्ति बंटवारे के लिए जिम्मेदार है, उस व्यक्ति की फोटो सम्मानित स्थान पर लगाना बिलकुल सहन नहीं किया जा सकता.

एएमयू के छात्र नेता मतीन अशरफ ने कहा कि अगर हमें जिन्ना से मोहब्बत होती तो एएमयू के हर डिपार्टमेंट में जिन्ना की तस्वीर होती. जिन्ना इतिहास का हिस्सा हैं और इतिहास अच्छा हो या बुरा, नहीं बदल सकता. जिन्ना ने देशों को बांटा, दिलों को बांटा, ये मानते हैं, लेकिन तस्वीर सिर्फ एक जगह से हटाने के लिए बवाल क्यों किया जा रहा है. आप तस्वीर हटाने के लिए कानून लाइए. राष्ट्रपति तस्वीर हटाने के लिए कह दें तो हम हटा देंगे. बीजेपी के लोगों के पास अब कोई मुद्दा नहीं बचा है. इसीलिए ये अब जिन्ना की तस्वीर का सहारा ले रहे हैं. जिन्ना के हम समर्थक नहीं हैं.

अबुल कलाम आजाद के परपोते फिरोज बख्त ने कहा कि हमारे आदर्श जिन्ना नहीं हो सकते. हमारे आदर्श मौलाना अबुल कलाम आजाद हो सकते हैं. डॉ. जाकिर हुसैन हो सकते हैं. हम हिंद के बच्चे हैं. हमें पाकिस्तान से कोई लेना-देना नहीं है. एएमयू- जेएनयू को सियासत का अखाड़ा मत बनाइए.

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