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आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के पालम से अपनी 'विवादास्पद' प्रत्याशी भावना गौड़ का टिकट बरकरार रखा है. गौरतलब है कि पार्टी कार्यकर्ताओं के एक समूह ने भावना गौड़ के खिलाफ शिकायत की थी, लेकिन मामले की जांच कर रही पार्टी की अंदरूनी समिति ने उन्हें क्लीनचिट दे दी है.
प्रशांत भूषण, प्रोफेसर आनंद कुमार, आशीष खेतान और ऋषिकेश कुमार इस समिति के सदस्य थे. ऋषिकेश ने औपचारिक ईमेल के जरिये शिकायतकर्ता को भी इस बाबत सूचना दी. इस मेल में लिखा गया है, 'भावना गौड़ के खिलाफ शिकायत पर विचार करने के लिए समिति ने पिछले तीन हफ्ते में तीन बैठकें की हैं. सभी दस्तावेजों की जांच करके और सभी पक्षों को सुनने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि उनके खिलाफ शिकायत में दम नहीं है और समिति सभी आरोपों से मुक्त करती है.'
हालांकि कार्यकर्ताओं का समूह पार्टी के इस फैसले से खुश नहीं है और अब भी भावना गौड़ को दागी मानता है. उनका कहना है कि हो सकता है कि किसी मजबूरीवश भावना गौड़ ने शैक्षिक योग्यता को लेकर अलग-अलग दावे किए हों, लेकिन मकान कब्जाने के मामले में वह स्पष्ट रूप से दोषी नजर आती हैं. शिकायत करने वालों का तो यहां तक आरोप है कि लोकसभा चुनाव में AAP प्रत्याशी देवेंद्र सहरावत के चुनाव प्रचार के दौरान भी भावना गौड़ ने ट्रांसपोर्ट के बिल में धांधली की थी.
भावना गौड़ पर पहला आरोप: शैक्षिक योग्यता
भावना गौड़ ने चुनाव आयोग को दिए हलफनामे और आम आदमी पार्टी के लिए भरे फॉर्म में अपनी शैक्षिक योग्यता अलग-अलग बताई थी. AAP के फॉर्म में वह खुद को बी.ए. बी.एड. बताती हैं, जबकि चुनाव आयोग के हलफनामे में उन्होंने अपनी उच्चतम शैक्षिक योग्यता बारहवीं बताई है. लेकिन मामले की जांच कर रही समिति ने जब भावना गौड़ को बुलाकर इस बारे में पूछताछ की तो उन्होंने कहा कि पिछले चुनाव से ठीक पहले उनकी बी.ए. और बीएड. की डिग्री खो गई थी. वह चुनाव आयोग के सामने उम्मीदवारी रद्द होने का जोखिम नहीं लेना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने हलफनामे में अपनी उच्चतम शैक्षिक योग्यता बारहवीं बताई. समिति ने भावना से कहा कि वह यूनिवर्सिटी/कॉलेज से अपनी डुप्लीकेट डिग्री हासिल करें और उसे पेश करें. सूत्रों के मुताबिक, भावना गौड़ ने अपनी डिग्री पेश कर दी, जिसके बाद समिति ने इस आरोप से उन्हें बरी कर दिया.
AAP के फॉर्म में B.A. B.Ed.
लेकिन EC के हलफनामे में 12वीं पास
दूसरा विवाद: मकान हड़पना
भावना गौड़ पर लगा दूसरा 'दाग' कहीं ज्यादा संगीन है. 1999 में उन पर एक महिला के मकान में गैरकानूनी निर्माण करवाकर जगह कब्जाने का आरोप लगा था. मामला कोर्ट में गया और 2007 में अदालत ने कब्जाई हुई जगह सीज करने और ताले खोलने का आदेश दिया. ताला खोलने के बाद उस जगह से जो चीजें मिलीं, उनका जिक्र उस समय के अखबारों में भी हुआ. इस दौरान वह बीजेपी की पार्षद हुआ करती थीं. (कोर्ट का पूरा आदेश पढ़ने के लिए स्टोरी के आखिर में जाएं)
AAP कार्यकर्ताओं का एक गुट नाराज ?
याद रहे कि आम आदमी पार्टी यह कहती रही है कि वह पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही किसी को टिकट देते हैं और अगर इसके बाद भी किसी के खिलाफ शिकायत मिलती है तो एक कमेटी उन आरोपों की जांच करती है. आरोप सही पाए जाने पर पार्टी प्रत्याशियों से टिकट वापस लेने का दावा भी करती है. भावना गौड़ पर आरोपों का मामला पिछली बार भी सामने आया था, लेकिन पार्टी ने जांच के बाद उन्हें क्लीन चिट दी थी.
भावना गौड़ के मामले मेंकोर्ट की बेलिफ
भावना बनाम मिलन का मामला तो नहीं!
सूत्र बता रहे हैं कि पार्टी ने भावना गौड़ का टिकट इसलिए नहीं काटा क्योंकि पालम से उसके पास भावना के मुकाबले कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं है. हर हाल में सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही AAP 'कमजोर' प्रत्याशी उतारने का जोखिम नहीं लेना चाहती. गौरतलब है कि पालम से मिलन भी टिकट की दौड़ में थे. मिलन शहीद मंजूनाथ के बैचमेट रहे हैं और यहां कार्यकर्ताओं का एक गुट उन्हें टिकट दिए जाने के पक्ष में था. सूत्रों के मुताबिक, कुछ वरिष्ठ पार्टी नेताओं का यह मानना है कि मिलन के समर्थक जान-बूझकर भावना गौड़ के विवाद को हवा दे रहे हैं.
पढ़ें भावना गौड़ बनाम प्रेम लता के मामले में कोर्ट का आदेश
आदेश का पहला हिस्सा
आदेश का दूसरा हिस्सा
आदेश का तीसरा हिस्सा