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कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन...

कहते हैं कि अगर कोई इंसान कोर्ट कचहरी के चक्कर में पड़ जाए तो पूरी जिंदगी भी खराब हो सकती है. इसलिए पुराने लोग इन सब चक्करों से बचने की सलाह दिया करते थे. ऐसा ही कुछ हुआ है आगरा के रहने वाले एक शख्स के साथ. जिसे एक मामले में खुद को नाबालिग साबित करने में 38 साल लग गए.

38 साल बाद मिला इंसाफ 38 साल बाद मिला इंसाफ
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 22 सितंबर 2015,
  • अपडेटेड 9:13 PM IST

कहते हैं कि अगर कोई इंसान कोर्ट कचहरी के चक्कर में पड़ जाए तो पूरी जिंदगी भी खराब हो सकती है. इसलिए पुराने लोग इन सब चक्करों से बचने की सलाह दिया करते थे. ऐसा ही कुछ हुआ है आगरा के रहने वाले एक शख्स के साथ. जिसे एक मामले में खुद को नाबालिग साबित करने में 38 साल लग गए.

यह कहानी है कि आगरा के रहने वाले राम नारायण की. जिसकी उम्र इस वक्त 55 साल है. राम नारायण को ज़िन्दगी ने कुछ ऐसे ज़ख्म दिए हैं जिन्हें भरना अब मुश्किल है. बात 38 साल पहले की है. जब राम नारायण 17 साल के थे. उनके गांव में एक कत्ल हुआ. और उस कत्ल का इल्जाम राम नारायण के ऊपर आ गया. उन्हें मुख्य आरोपी बना दिया गया. मामला अदालत में पहुंचा. नाबालिग होने की वजह से उन्हें जमानत तो मिल गयी लेकिन जब अदालत ने फैसला सुनाया तो उन्हें बतौर बालिग उम्र कैद की सजा मिली.

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरक़रार रखा. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने भी राम नारायण की अपील खारिज कर दी. उसके पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो गयी. लेकिन पुनर्विचार याचिका खारिज करने वाली बेंच ने उनकी उम्र से जुड़े दस्तावेजों पर दुबारा गौर किया तो पाया की हत्या के वक़्त वो नाबालिग ही थे. बेंच ने हाई कोर्ट और निचली अदालत के फैसले को निरस्त करते हुए राम नारायण को बरी कर दिया. लेकिन इस सब के दौरान राम नारायण बूढ़े हो चुके हैं.

निचली अदालत से दोषी करार दिए जाने के बाद राम नारायण ने हाई कोर्ट में अपील की थी. हाई कोर्ट से ज़मानत मिल गयी और इसके बाद राम को 1987 में उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में ड्राईवर की नौकरी भी मिल गयी. लेकिन 2003 में हाई कोर्ट के फैसले के बाद उन्हें बर्खास्त कर दिया गया. तब से अब तक वो बहाल नहीं हुए. जबकि अभी 5 साल की नौकरी बाकी है.

दरअसल, राम नारायण को इंसाफ पाने में निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सही कानूनी पैरवी और मदद न मिलने की वजह से 38 साल लग गए. सिर्फ ये साबित करने में की वो हत्या के वक़्त नाबालिग थे. आखिरकार सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त वकील संतोष त्रिपाठी की पैरवी की वजह से उन्हें इंसाफ मिल पाया.

राम नारायण ने करीब 12 साल जेल में काट दिए. अपने परिवार को अपनी आँखों के सामने बर्बाद होते देखा. अब उनकी आँखों की रोशनी भी कम हो चुकी है. एक हादसे की वजह से अब वो सही से चल भी नहीं पाते. एक लंबा अरसा निकल गया इंसाफ मिलने में और इस दौरान उनका सब कुछ उजड़ गया.

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