
पच्चीस साल पहले उत्तर प्रदेश के पीलीभीत फर्जी मुठभेड़ केस में सीबीआर्इ की विशेष अदालत ने सोमवार को सभी 47 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई. एक अप्रैल को कोर्ट ने मुठभेड़ को फर्जी करार देते हुए इस मामले में 47 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया था. मुकदमे की सुनवाई के दौरान 10 आरोपी पुलिसकर्मियों की मौत हो गर्इ है.
सजा में उम्रकैद के अलावा जुर्माना
इसके अलावा पुलिसकर्मियों पर क्रमश: दरोगा के लिए 10 लाख रुपये, सब इंस्पेक्टर के लिए 8 लाख रुपये और सिपाहियों के लिए 2.75 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है. कोर्ट में जमा कराए जाने के बाद इस रकम से मुठभेड़ में मारे गए 11 लोगों के परिवारों को 14-14 लाख रुपये की मुआवजा राशि दी जाएगी. सजा सुनाए जाने के बाद दोषियों ने कोर्ट में हंगामा भी किया. कोर्ट में कुल 38 आरोपी पुलिसकर्मी मौजूद थे.
पुलिस ने अगवा कर 10 युवकों की जान ली
सीबीआई के विशेष न्यायाधीश लल्लू सिंह ने एक अप्रैल को अपने आदेश में कहा था कि 12 जुलाई 1991 को तीर्थ यात्रा के लिए जा रही बस से पुलिसवालों ने 10 सिख युवकों को नदी के किनारे उतार कर नीली बस में बैठा लिया था. दिन भर इधर-उधर घुमाने के बाद रात में युवकों को तीन गुटों में बांट लिया. एक दल ने 4, दूसरे दल ने 4 और तीसरे दल ने दो युवकों को कब्जे में लेकर अलग-अलग थाना क्षेत्रों के जंगलों में ले जाकर मार डाला था.
युवकों पर नहीं हुई कानूनी कार्रवाई
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि जब पुलिस ने युवकों को पकड़ लिया था और उनके पास कोई हथियार भी बरामद नहीं हुआ था तो उन सबको कानून के सामने लाना चाहिए था. उनके खिलाफ कानूनी तरीके से मुकदमा चलाकर कार्रवाई करनी चाहिए थी.
अलग-अलग ले जाकर की युवकों की हत्या
थाना बिलसंडा के फगुनईघट में चार सिखों की हत्या और पोस्टमार्टम के बाद आननफानन में अंतिम संस्कार कर दिया गया था. थाना न्यूरिया के धमेला कुआं और थाना पूररनपुर के पत्ताबोझी जंगल में भी सिखों की हत्या की गई थी. कोर्ट ने कहा था कि पेश सबूत और गवाहों से पता चलता है जो सिख युवक मारे गए उनको अंतिम बार पुलिस ने अपने कब्जे में लिया. उसके 24 घंटे के अंदर उन सबकी लाशें मिलीं.
आतंकवाद के दौर का उठाया फायदा
आतंकवाद चरम पर होने के दौर में पुलिस ने इस घटना को अंजाम दिया. बस में यात्रा करने वाले कुछ यात्रियों की पृष्ठभूमि आतंकवाद की थी. उन पर मुकदमे चल रहे थे. इसी को लेकर पुलिस ने युवकों को बस से उतार कर अगवा किया. बाद में प्रमोशन और विभागीय तारीफ के चक्कर में उन सबकी हत्या कर दी. मुठभेड़ को सही करार देने के लिए पुलिस ने फर्जी कागजात भी बना लिए थे.
एक यात्री की अब भी खबर नहीं
साल 1991 की 12 जुलाई को नानक मथा, पटना साहिब, हुजूर साहिब और अन्य तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हुए 25 सिख यात्रियों का जत्था बस से वापस लौट रहा था. इस बीच कछाला घाट के पास पुलिसवालों ने बस को रोक लिया. बस से 11 युवकों को उतार अपनी नीली बस में बैठा लिया. 24 घंटे के भीतर इनमें से दस की लाश मिली. पुलिस ने इन मामलों में फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी.
जनहित याचिका से खुली पुलिस की पोल
सीनियर वकील आरएस सोढी ने सुप्रीम कोर्ट में इस मुठभेड़ के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल की थी. इस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई 1992 को मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी. सीबीआई ने मामले की विवेचना के बाद 57 पुलिसकर्मियों के खिलाफ सुबूतों के आधार पर 20 जनवरी 2003 को चार्जशीट दायर की थी.