
यूपी में लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर महीनेभर से चल रहे विवाद में गुरुवार को नया मोड़ आ गया है. प्रदेश सरकार ने लोकायुक्त संशोधन विधेयक पारित करवाकर लोकायुक्त की नियुक्ति में इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की भूमिक खत्म कर दी है.
यानी अब नए नियम के मुताबिक लोकायुक्त चयन समिति में मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष के अलावा विधानसभा अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट या फिर हाई कोर्ट से एक रिटायर्ड जज ही शामिल होंगे.
महीनेभर के अंदर चार बार लोकायुक्त नियुक्ति की फाइल लौटने के बाद यूपी सरकार ने एक बार फिर गेंद राज्यपाल के पाले में डाल दी है, वहीं नए नियम के तहत रिटायर्ड जज का नाम भी समिति के अध्यक्ष यानी सीएम और विधानसभा अध्यक्ष बातचीत कर तय करेंगे. इस नए संशोधन को सरकार की ओर से अपनी पसंद का लोकायुक्त बनाने की कोशिश माना जा रहा है. इससे पहले रिटायर्ड जस्टिस रवींद्र सिंह के नाम पर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने आपत्ति जताई थी.
जाहिर है समाजवादी पार्टी के जबरदस्त बहुमत के कारण सदन में सभी आंकड़े उसके पक्ष में हैं और इसका सीधा फायदा सरकार को मिला है. लेकिन आनन फानन में लाए गए इस संशोधन विधेयक से विपक्ष में भारी नाराजगी है. मुख्य विपक्षी पार्टी बीएसपी से नेता विरोधी दल हालांकि इससे पहले लोकायुक्त के तौर पर जस्टिस रवींद्र सिंह के नाम पर मुहर लगा चुके थे, लेकिन अचानक लाए गए संशोधन विधेयक और चयन प्रक्रिया नियमों में बदलाव से वो भी खासे तिलमिलाए हुए दिख रहे हैं.