
डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय आईटी कंपनियों पर आरोप लगाते हुए कि वह अमेरिकी नागरिकों की नौकरियां छीनने का काम कर रही हैं, अपने एच1बी वीजा नियमों को सख्त करने की पहल कर दी है. इससे पहले मंगलवार को ऑस्ट्रेलिया सरकार ने अपने 457 वीजा (अमेरिका के एच1बी की तर्ज पर दिया जा रहा वीजा) कार्यक्रम को बंद कर दिया था जिसके चलते विदेशों से काम करने वाले वहां पहुंचते थे. इन दोनों फैसलों की तर्ज पर ही न्यूलैंड ने भी ऐलान कर दिया है कि वह विदेशी मूल के लोगों के लिए नौकरी पाने के रास्ते को मुश्किल करने जा रही है क्योंकि ट्रंप की तर्ज पर उसे भी कीवी फर्स्ट की नीति पर चलना है. इन सभी फैसलों का सीधा असर भारत की आईटी कंपनियों पर पड़ेगा. ऑस्ट्रेलिया में ये वीजा प्रतिवर्ष लगभग 60 फीसदी और अमेरिका में 70 फीसदी भारतीयों को दिया जाता है, वहीं न्यूजीलैंड में भी सर्वाधिक इमीग्रेंट भारत से हैं.
जानिए क्यों अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को भारतीय आईटी कंपनियां जैसे इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो से महसूस हो रहा है ये दबाव:
क्या है भारतीय कंपनियों का रोल
दोनों अमेरिका का एच1बी वीजा कार्यक्रम और ऑस्ट्रेलिया का 457 वीजा कार्यक्रम नॉन-इमीग्रेंट वीजा है. इन वीजा को जारी कर अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की कंपनियां विदेशों से इंजीनियर, साइंटिस्ट और कंप्यूटर प्रोग्रामर को अपने देश नौकरी करने के लिए बुलाती है. ऐसा करने के लिए ज्यादातर भारतीय कंपनियों को वर्क आउटसोर्सिंग के जरिए ये वीजा आवंटित किया जाता है. भारतीय कंपनियां अमेरिकी कंपनियों के लिए इस टैलेंट वर्कफोर्स को भारत से नौकरी पर अमेरिका भेजती हैं.
डोनाल्ड ट्रंप का भारतीय कंपनियों पर आरोप
ट्रंप का आरोप है कि भारतीय कंपनियां एच1बी वीजा नियमों का उल्लंघन करते हुए अमेरिकी नागरिकों की नौकरियों पर भारतियों को भर रही हैं. यही आरोप भारतीय कंपनियों पर ऑस्ट्रेलिया में भी लग रहा है. दरअसल अमेरिका का एच1बी वीजा कार्यक्रम उस स्थिति में जारी किया जाता है कि जब किसी काम के लिए किसी खास टैलेंट की जरूरत है और अमेरिका में उस टैलेंट का आदमी उपलब्ध नहीं होता. अब ट्रंप प्रशाषन का मानना है कि भारतीय आईटी कंपनियां इस वीजा का सहारा लेकर ऐसे प्रोफेश्नल्स को भी अमेरिका बुला रहे हैं जिन्हें कम लागत में अमेरिका में काम कराया जा रहा है. इसका नतीजा ये है कि ऐसे प्रोफेश्नल्स अमेरिकी नागरिकों की नौकरियों पर कब्जा कर रहे हैं.
न्यूजीलैंड में भी, कीवी फर्स्ट, बढ़ेगी विदेशियों के लिए न्यूनतम सैलरी
ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की तर्ज पर न्यूजीलैंड ने भी घोषणा कर दिया है कि वह अप्रवासियों की संख्या पर लगाम लगाने के लिए अपने इमीग्रेशन नीति में बदलाव करने जा रही है. न्यूजीलैंड के इमीग्रेशन मंत्री माइकल वुडहाउस ने कहा कि नए इमीग्रेशन नियम लागू होने के बाद ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों के लिए विदेशी लोगों को नौकरी देना मुश्किल हो जाएगा. ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट की तर्ज पर ही न्यूलैंड ने भी कीवी फर्स्ट की नीतियों पर जाने का ऐलान किया है.
न्यूजीलैंड सरकार वहां रह रहे अप्रवासियों की न्यूनतम सैलरी को आधार लेते हुए नए नियम लाने जा रही है. इन नियमों में अब स्किल्ड लेबर के तौर पर नौकरी तभी मिल सकती है यदि वह कम से कम मीडियन सैलरी वहां पाएं. वहीं हाइली स्किल्ड लेबर के लिए मीडियन सैलरी का 150 फीसदी पाना अनिवार्य हो जाएगा. वहीं, नए नियमों में न्यूजीलैंड सरकार अपने कम स्किल्ड अप्रवासियों के वीजा की मियाद तीन साल हो जाएगी.
क्या है अमेरिका का नया प्रस्ताव
अमेरिका में ट्रंप सरकार बनने के बाद एच1बी वीजा के दुरुपयोग को रोकने की पहल की जा रही है. अमेरिकी कांग्रेस में निजी मेंबर प्रस्ताव लाया गया है कि एच1बी वीजा के तहत न्यूनतम सैलरी के मौजूदा दर 60 हजार डॉलर से बढ़ाकर 1 लाख 30 हजार डॉलर कर दिया जाए. यदि इस प्रस्ताव को कांग्रेस से मंजूरी मिल जाती है तो भारतीय कंपनियों के लिए कड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी और उन्हें अपनी ज्यादातर जरूरतों के लिए अमेरिकी नागरिक को नौकरी देनी पड़ेगी.
भारतीय कंपनियों को नुकसान
एच1बी वीजा पर ट्रंप प्रशाषन की मुहिम सफल होती है तो वहां काम कर रही भारतीय आईटी कंपनियों का प्रॉफिट मार्जिन कम हो जाएगा. अभीतक जहां किसी काम को करने के लिए वह कम लागत वाले प्रोफेश्नल्स को भारत से बुला लेते थे, फिर उन्हें या तो भारतीय कर्मचारियों को अधिक सैलरी देनी पड़ेगी नहीं तो काम कराने के लिए किसी अमेरिकी नागरिक को नौकरी पर रखना पड़ेगा.
गौरतलब है कि यदि अमेरिका में एच1बी वीजा के तहत न्यूनतम वार्षिक सैलरी को बढ़ाकर 1 लाख 10 हजार डॉलर किया जाता है तो टीसीएस को प्रॉफिट मार्जिन में 2.30 फीसदी का नुकसान होने की संभावना है. मौजूदा समय में टीसीएस इस वीजा पर भारत से ले जा रहे प्रोफेश्नल्स को लगभग 70 हजार डॉलर औसतन वार्षिक सैलरी देती है. वहीं दूसरी बड़ी कंपनी इंफोसिस को नए नियम के बाद प्रॉफिट मार्जिन में लगभग 1.70 फीसदी का नुकसान होगा. इंफोसिस मौजूदा समय में लगभग 80 हजार डॉलर औसतन वार्षिक सैलरी देती है.
पीएम मोदी का ग्लोबल ड्रीम
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने ग्लोबल ड्रीम को परिभाषित करते हुए अपने मैडिसन स्क्वायर स्पीच में कहा था कि जिस तरह पूरी दुनिया से लोग अमेरिका आते हैं वैसे ही भारत से लोग पूरी दुनिया में जाते हैं. देश में स्किल डेवलपमेंट पर जोर देते हुए मोदी ने कहा था कि उनकी कोशिश होगी कि पूरी दुनिया में भारतीय स्किल की जरूरत पड़े जिससे मौजूदा सदी में भारत पूरी दुनिया के लिए वर्कफोर्स प्रोवाइडर बन सके. लेकिन अब ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के फैसले के बाद पीएम मोदी के इस ग्लोबल ड्रीम के सामने कड़ी चुनौती खड़ी हो चुकी है.