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दूसरी पार्टी के नेताओं को बीजेपी में लाने के पीछे अमित शाह की चुनावी रणनीति!

बीजेपी में दूसरी पार्टियों से शामिल होने की होड़ लगातार नेताओं में देखी जा सकती है. चाहे वह नेता अपनी पार्टी में कितना ही बड़ा क्यों ना हो. नेताओं को अब अपना भविष्य बीजेपी में सुरक्षित दिखता है.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह
अशोक सिंघल
  • नई दिल्ली,
  • 19 अप्रैल 2017,
  • अपडेटेड 6:41 PM IST

उत्तराखंड से लेकर यूपी और गोवा से मणिपुर में अलग-अलग दलों के नेता पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. ये सिलसिला एमसीडी चुनाव से पहले दिल्ली में भी शुरू हो चुका है. बीजेपी के सत्ता के रथ में दूसरी पार्टी के नेताओं की सवारी लगातार नजर आ रही है. कहीं चुनाव से पहले, कहीं चुनाव के मौके पर, कहीं चुनाव के बाद बीजेपी में दूसरे दलों के बागी नेताओं का शामिल होने जारी है. चाहे वह नेता अपनी पार्टी में कितना ही बड़ा क्यों ना हो, नेताओं को अब अपना भविष्य बीजेपी में सुरक्षित दिख रहा है.

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केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी से सभी नेता करीबी चाहते हैं या यह कहें कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति दूसरी पार्टी के कद्दावर नेताओं को बीजेपी में शामिल करवाने के पीछे काम कर रही है. जो भी नेता दूसरी पार्टी से आएगा वो कुछ न कुछ वोट अपने साथ लाएगा, क्योंकि उनका व्यक्तिगत वोट बैंक भी होता है. जिससे पार्टी में वोट बढ़ेंगे ही और एक संदेश यह भी जाएगा कि, हारने वाली पार्टी को ही अक्सर नेता छोड़ते हैं. वह जीतने वाले की तरफ जाते हैं तो नेताओं के आने से जनता को यह लगेगा कि बीजेपी जीतने वाली पार्टी है और भविष्य भी इसी का है.

हालांकि विपक्ष इस तरीके से बीजेपी में शामिल करवाने की रणनीति को ठीक ना मानते हुए उसे कटघरे में खड़ा कर रहा है. विपक्ष का कहना है कि बीजेपी ऐसे नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करवा रही है जिनपर पहले से ही भ्रष्टाचार के आरोप हैं. बावजूद इसके बीजेपी खुद को भ्रष्टाचार मुक्त पार्टी बताती है. इसे कहीं ना कहीं बीजेपी में भी आतुरता दिखती है. बीजेपी कितनी बड़ी-बड़ी बातें करें कि वह बहुत बड़ी और मजबूत पार्टी है उनकी लोकप्रियता बहुत बढ़ी है, लेकिन वो दूसरी पार्टी के नेताओं के सहारे वह चुनाव जीतना चाहती है.

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विपक्ष यह भी याद दिलाता है कि कैसे उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रही रीता बहुगुणा को चुनाव जीतने की खातिर पार्टी में शामिल किया. रीता बहुगुणा एक समय में बीजेपी की घोर विरोधी रहीं हैं. बीजेपी के नेता और रीता बहुगुणा एक दूसरे को ढेरों गालियां दिया करते थे.

दशकों तक कांग्रेस के वफादार माने जाने वाले एसएम कृष्णा भी इसी फेहरिस्त में शामिल हैं. कर्नाटक में जिनके मुख्यमंत्री रहते बीजेपी ने उन पर भ्रष्टाचार के आरोपों की झड़ी लगा दी थी. यहां तक कि जब उन्होंने विदेश मंत्री रहते दूसरे देश के मंत्री का भाषण पढ़ दिया था. उनकी भूल का प्रधानमंत्री मोदी ने खूब मजाक उड़ाया था. अब वही एसएम कृष्णा बीजेपी परिवार का हिस्सा है. बीजेपी की इस रणनीति को भी कर्नाटक के आने वाले चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है.

उत्तराखंड के पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए बीजेपी ने मुख्यमंत्री से उनके इस्तीफे की मांग की थी और जोरदार विरोध भी किया था. लेकिन उसी विजय बहुगुणा को उत्तराखंड चुनाव के पहले पार्टी में शामिल करवाया और उनके बेटे को टिकट भी दिया. इसी तरह उत्तराखंड में कांग्रेस के दूसरे नेता हरक सिंह रावत और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल आर्य को भी बीजेपी ने शामिल कर उत्तराखंड में जीत सुनिश्चित करने की कोशिश की.

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गोवा में जब बीजेपी को चुनाव में बहुमत नहीं मिला तो दूसरी पार्टी के नेताओं के सहारा लेकर सरकार बनाई. इतना ही नहीं कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह राणे जो हमेशा बीजेपी के निशाने पर रहते थे. उनके विधायक बेटे को पहले विधायक पद से इस्तीफा दिलवाया. जिससे कांग्रेस की संख्या कम हो और सदन में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिले. बाद में बीजेपी ने विश्वजीत राणे को भी अपना बना लिया.

अब दिल्ली में एमसीडी चुनाव सिर पर है तो शीला सरकार में मंत्री रहे और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे अरविंदर सिंह लवली को अमित शाह ने बीजेपी में शामिल कर लिया है. यह वही लवली है जिनके शिक्षा मंत्री रहते बीजेपी भ्रष्टाचार के आरोप लगाती थी और आए दिन लवली प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर बीजेपी पर निशाना साधते रहें. अब बीजेपी की कांग्रेस के दूसरे प्रदेश नेताओं पर भी नजर है.

लोकसभा चुनाव से पहले भी बीजेपी की यही रणनीति चली थी जिसमें वह सफल हुई थी. उसी प्रकार राज्यवार रणनीति पर बीजेपी आगे बढ़ी और उसे सफलता मिलती चली गई. बिहार में जरूर बीजेपी की रणनीति को पलीता लगा था, वहां पर विपक्ष एकजुट हो गया था.

इन सबके बावजूद अमित शाह संगठन और चुनावी रणनीति के माहिर हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चुनावी रणनीति को लेकर अमित शाह की पीठ थपथपाई है. राज्यवार इसी रणनीति पर आगे बढ़ते जा रहे हैं और उनका यही मानना है की पार्टी में जो भी शामिल होगा बीजेपी परिवार उससे बढेगा. शायद इसी तर्ज पर विपक्ष को बिहार की याद आती है और 2019 के मददेनजर महा गठबंधन की आवाजें आज कल राजनीति की गलियारों में बार-बार गूंज रही हैं.

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