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आम आदमी पार्टी का 'सॉफ्ट हिंदुत्व' दूसरे दलों के लिए खतरे की घंटी?

बीजेपी की हिंदू वोटरों पर बढ़ती पकड़ को देखते हुए अरविंद केजरीवाल भी यह बात समझ गए हैं कि उन्हें मुस्लिम समर्थक छवि का लेबल खुद पर नहीं लगने देना होगा. इसी का नतीजा है कि उन्होंने हनुमान भक्त बनकर सॉफ्ट हिंदुत्व की दिशा में कदम बढ़ा दिया है. बीजेपी से मुकाबले के लिए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी शिवभक्त तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव कृष्ण प्रेम के जरिए सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलते नजर आ चुके हैं.

सीएम अरविंद केजरीवाल (फाइल-फोटो) सीएम अरविंद केजरीवाल (फाइल-फोटो)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 19 फरवरी 2020,
  • अपडेटेड 2:23 PM IST

  • सीएम अरविंद केजरीवाल हैं हनुमान भक्त
  • कांग्रेस नेता राहुल गांधी खुद को शिवभक्त बताते हैं
  • अखिलेश यादव अपने आपको कृष्ण भक्त

अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम देश की राजनीति बदलने के लिए सियासत में आए थे, लेकिन अब उन्होंने बीजेपी के कट्टर हिंदुत्व का मुकाबला करने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पकड़ ली है. केजरीवाल भ्रष्टाचार मुक्त और विकास के एजेंडे के दम पर भले ही शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली कांग्रेस को मात देने में कामयाब रहे हों, लेकिन जब सामना बीजेपी से हुआ तो उन्होंने अपने एजेंडे में सॉफ्ट हिंदुत्व को शामिल कर लिया और हनुमान भक्त बन गए.

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को सॉफ्ट हिंदुत्व का सियासी लाभ मिला है. केजरीवाल दिल्ली की कुल 70 में 62 सीटें जीतकर सत्ता की हैट्रिक लगाने में कामयाब रहे. दिल्ली की सल्तनत को फतह करने के बाद आम आदमी पार्टी की नजर राष्ट्रीय पटल पर अपनी छाप छोड़ने की है, जिसके लिए केजरीवाल हनुमान भक्त बने रहने के मूड में हैं और AAP नेताओं ने दिल्ली में सुंदरकांड का पाठ करवाना शुरू कर दिया है. केजरीवाल का यह दांव कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है.

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दिल्ली के ग्रेटर कैलाश से आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज ने ट्विटर पर लिखा, हर महीने के पहले मंगलवार को सुंदर कांड का पाठ अलग-अलग इलाकों में किया जाएगा. एएनआई को दिए बयान में उन्होंने कहा, 'इस चुनाव में हमारे ऊपर बहुत संकट आए, जब-जब हमारे ऊपर और दिल्ली की जनता के ऊपर संकट आए, संकटमोचक की तरह हनुमान जी ने हमें बाहर निकाला. हनुमान जी ऐसे भगवान है जो गरीबों के भी हैं और अमीरों के भी हैं. महिलाओं के अंदर पॉपुलर हैं, बच्चों में भी. गड़बड़ लोगों को दूर रखने के लिए, भूतों को दूर रखने के लिए हनुमान जी बहुत बड़ी फोर्स हैं हमारे लिए.'

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दरअसल दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा था कि मैं शाहीन बाग के लोगों के साथ हूं. उनके इस बयान के बाद आम आदमी पार्टी के लोगों को अपनी लाइन बदलनी पड़ी थी. अरविंद केजरीवाल ने शाहीन बाग पर बोलने से अपने नेताओं को मना कर दिया था और पूरे चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने मुस्लिम इलाकों से दूरी बना ली थी. केजरीवाल के इस दांव का ही नतीजा था कि बीजेपी की काफी कोशिशों करने के बाद भी हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण नहीं हो सका और केजरीवाल सत्ता की हैट्रिक लगाने में कामयाब रहे.

केजरीवाल ने खुद को हनुमान भक्त बताया

दिल्ली विधानसभा चुनाव में हनुमान की एंट्री किसी और नेता ने नहीं बल्कि अरविंद केजरीवाल ने कराई थी. एक इंटरव्यू में उनसे बस इतना पूछा गया था कि क्या हनुमान चालीसा आती है. ये सवाल सुनते ही केजरीवाल खुद को हनुमान भक्त बताते हुए हनुमान चालीसा गाने लगे. बजरंगबली के मंदिर जाने लगे और दिल्ली चुनाव की जीत के बाद भगवान हनुमान को शुक्रिया बोला. केजरीवाल शपथ ग्रहण वाले दिन भी माथे पर तिलक लगा कर रामलीला मैदान पहुंचे थे. इससे पहले केजरीवाल ने जब दो बार सीएम पद की शपथ ली थी, तब वो तिलक लगा कर मंच पर नहीं दिखे थे.

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2013 और 2015 में मंदिर जाते नजर नहीं आए

अरविंद केजरीवाल पहली बार 2013 में जब मुख्यमंत्री बने तो उनके पार्टी दफ्तर से चंद कदम की दूरी पर था दिल्ली के कनॉट प्लेस वाला हनुमान मंदिर. अरविंद उस वक्त न तो जीत के बाद मंदिर गए थे न ही भाषण में हनुमान का जिक्र किया था. साल 2015 में दूसरी बार जब अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने ऐतिहासिक 70 में से 67 सीट जीती थी, तब आम आदमी पार्टी का दफ्तर दिल्ली के पटेल नगर में था. वहां से भी कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही प्रसिद्ध हनुमान मंदिर है, जहां वो नहीं गए थे. इस बार आम आदमी पार्टी का दफ्तर आईटीओ के पास है, जहां से हनुमान मंदिर की दूरी भी ठीक ठाक है. लेकिन इस बार चुनाव प्रचार थमने के बाद हनुमान मंदिर गए और जीत के बाद भी जाकर माथा टेका.

केजरीवाल सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर

अरविंद केजरीवाल अपने काम की राजनीति के फॉर्मूले को देश भर में ले जाना चाहते हैं तो फिर बजरंगबली की भक्ति और उससे मिलने वाली शक्ति का प्रदर्शन क्यों? कहावत है, 'दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है. यही वजह है कि बीजेपी और नरेंद्र मोदी के सामने एक मजूबत विकल्प के तौर पर अपने आपको पेश करने के लिए केजरीवाल और उनकी पार्टी के नेता अब सॉफ्ट हिंदुत्व से हटना नहीं चाहते हैं.

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बता दें कि नरेंद्र मोदी की 2014 में केंद्र की राजनीतिक एंट्री के बाद देश का राजनीतिक पैटर्न बदल गया है. बीजेपी के कट्टर हिंदुत्व का मुकाबले के लिए दूसरी पार्टियां भी सॉफ्ट हिंदुत्व के जरिए अपने सियासी वजूद को बनाए रखना चाहती है. इस फेहरिश्त में केजरीवाल ही नहीं बल्कि कांग्रेस के राहुल गांधी से लेकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव तक शामिल रहे हैं.

राहुल गांधी जब बने शिवभक्त

कांग्रेस की हिंदू विरोधी छवि को तोड़ने के लिए राहुल गांधी ने सॉफ्ट हिंदुत्व की राह को अपनाया. गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने कई मंदिरों में जाकर माथा टेका था. कांग्रेस को इसका सियासी फायदा भी मिला था. इसके बाद राहुल गांधी ने कैलाश मानसरोवर जाकर शिवभक्त होने की ऐसी ही सियासी लकीर खींची थी. सॉफ्ट हिंदुत्व के फॉर्मूले को कांग्रेस ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव में आजमाया था और सत्ता के वनवास को खत्म करने में कामयाब रही.

राहुल के बाद प्रियंका गांधी भी सॉफ्ट हिंदुत्व पर कदम बढ़कर सियासत में अपनी जगह बनाना चाहती हैं. इस कड़ी में उन्होंने गंगा में नाव पर सवार होकर संगम से काशी तक का सफर तय किया था. इसके अलावा प्रियंका ने प्रयागराज, चित्रकूट से लेकर काशी सहित तमाम मंदिरों में जाकर उन्होंने माथा टेक कर राजनीतिक जमीन बचाने की कोशिश की हैं.

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अखिलेश यादव का कृष्ण प्रेम

2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता गंवाने के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी अपनी पार्टी को मुस्लिम छवि से बाहर निकालने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व की दिशा में कदम बढ़ाया था. अखिलेश यादव ने अपने आपको कृष्ण भक्त के रूप में पेश किया था. अखिलेश ने इटावा के सैफई में भगवान श्री कृष्ण की 51 फीट ऊंची प्रतिमा लगवाई. इसके अलावा अब वो लगातार मंदिरों में दर्शन करते और माथा टेकते हुए नजर आते हैं.

AAP के दांव से विपक्ष की जमीन खिसकने का भय

बीजेपी की हिंदू वोटरों पर बढ़ती पकड़ को देखते हुए केजरीवाल भी यह समझ गए हैं कि उन्हें मुसलिम समर्थक छवि का लेबल ख़ुद पर नहीं लगने देना होगा. उन्होंने हनुमान भक्त बनकर बीजेपी को बैकफुट पर धकेल दिया है. बीजेपी ने उन्हें नकली बहुमान भक्त बताने की पूरी कोशिश की जिसका भाजपा को कोई फायदा नहीं हुआ. केजरीवाल ने बीजेपी को हराने की काट यही निकाली है कि विकास के साथ-साथ देश के बहुसंख्यक समुदाय की धार्मिक भावनाओं का भी ख्याल रखा जाए. इस दांव से केजरीवाल बीजेपी के सामने करने के लिए विपक्ष की जमीन को भी अपने नाम करना चाहते हैं, जिसके चलते  सत्ता पक्ष ही नहीं बल्कि विपक्ष की चिंता को भी बढ़ाएंगे.

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