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सूखे से साढ़े 6 लाख करोड़ का नुकसान: एसोचैम

देश के अलग-अलग हिस्सों के सूखे की मार भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ी है. औद्योगिक चैम्बर एसोचैम की एक स्टडी के मुताबिक सूखे की वजह से देश की अर्थव्यवस्था को साढ़े 6 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.

G P Srivastava, Chief Advisor, ASSOCHAM G P Srivastava, Chief Advisor, ASSOCHAM
रोहित गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 12 मई 2016,
  • अपडेटेड 5:51 PM IST

देश के अलग-अलग हिस्सों के सूखे की मार भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ी है. औद्योगिक चैम्बर एसोचैम की एक स्टडी के मुताबिक सूखे की वजह से देश की अर्थव्यवस्था को साढ़े 6 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.

इस स्टडी में बताया गया है कि‍ देश के 256 जिलों में सूखे के हालात हैं, जिससे करीब 33 करोड़ लोगों पर असर पड़ा है. स्टडी के मुताबिक, अप्रैल 2016 के आखिरी हफ्ते के दौरान साप्ताहिक प्री मानसून बारिश का आंकड़ा लॉन्ग पीरियड एवरेज से 19 फीसदी कम रहा है. हालांकि देश के अलग-अलग हिस्सों में इस मामले में सूरत जैसी नहीं है. यही आंकड़ा (लॉन्ग पीरियड एवरेज रेनफॉल) ईस्ट और नॉर्थ ईस्ट में 38 फीसदी ज्यादा रहा. ये आंकड़ा मध्य भारत में 78 फीसदी तो पश्चिमी भारत में 61 फीसदी कम रहा.

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8 फीसदी कम हुई बारिश
हाल के अनुमानों से पता चलता है कि‍ 10 राज्यों में जलाशयों और भूजल स्तर में कमी से हालात चुनौतीपूर्ण हो गए हैं. देश भर में 1 मार्च से अप्रैल के आखिर तक लॉन्ग टर्म पीरियड एवरेज रेनफॉल से 8 फीसदी कम रहा है. ये आंकड़ा 4 जियोग्राफिक रीजन में जहां पूर्वी और उत्तर पूर्वी भारत के लिए 8 फीसदी ज्यादा रहा तो उत्तर पश्चिमी भारत के लिए 4 फीसदी कम और सेंट्रल इंडिया के लिए 31 फीसदी कम दर्ज किया गया.

33 करोड़ लोगों के लिए हर महीने चाहिए 1 लाख करोड़ रुपये
ऐसे हालात में अगर माना जाए कि सरकार को एक आदमी के पानी, खाने और स्वास्थ्य सेवाओं पर 3 हजार रुपये प्रति माह 2 महीने तक खर्च करने पड़ते हैं तो 33 करोड़ लोगों के लिए उसे हर महीने 1 लाख करोड़ रुपये चाहिए. इसके अलावा बिजली, फर्टिलाइजर और खेती में लगने वाले दूसरे खर्चों को शामिल करने पर ये आंकड़ा और बढ़ जाता है.

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एक-चौथाई आबादी पर सूखे की मार
इस स्टडी के मुताबिक देश की करीब एक चौथाई आबादी सूखे से प्रभावित है और अगर इनमे से 10 फीसदी लोग भी दूसरे इलाकों की तरफ पलायन करते हैं तो इससे शहरों के इंफ्रास्ट्रक्चर, पानी और दूसरी सुविधाओं पर बोझ बढेगा. इसके अलावा प्रभावित इलाकों में लोगों के कर्ज के जाल में फंसने की आशंका है.

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