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अयोध्या मामला: SC के फैसले पर मुस्लिम बोर्ड ने उठाए सवाल

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर पुनर्विचार याचिका दायर की जाएगी. बोर्ड सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करेगा.

लखनऊ में AIMPLB की प्रेस कॉन्फ्रेंस (फोटो-एएनआई) लखनऊ में AIMPLB की प्रेस कॉन्फ्रेंस (फोटो-एएनआई)
कुमार अभिषेक
  • लखनऊ,
  • 17 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 4:46 PM IST

  • अयोध्या निर्णय पर पुनर्विचार याचिका दायर करेगा मुस्लिम बोर्ड
  • मस्जिद के लिए दूसरी जगह जमीन भी AIMPLB को मंजूर नहीं

अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंदिर के पक्ष में जाने के बाद रविवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की इस मुद्दे पर अहम बैठक हुई. यह बैठक लखनऊ के मुमताज पीजी कॉलेज में हुई. इस बैठक के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर पुनर्विचार याचिका दायर की जाएगी.

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एआईएमपीएलबी की बैठक में 45 सदस्य शामिल हुए. इस मामले पर डॉक्टर कासिम रसूल इलियास ने कहा कि बाबरी मस्जिद के बदले में मुसलमान कोई दूसरी जगह स्वीकार नहीं करेगा.

इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में लॉ बोर्ड ने कई बिंदुओं पर फैसले को लेकर सवाल उठाया और कहा कि इस फैसले में कई खामियां हैं, इसलिए पुनर्विचार याचिका जरूरी है. मस्जिद के बदले में मुसलमान कोई दूसरी जगह स्वीकार नहीं करेगा. हम दूसरी मस्जिद लेने सुप्रीम कोर्ट में नहीं गए थे.

यह भी पढ़ें: मस्जिद के लिए दूसरी जगह जमीन क्यों नहीं लेगा AIMPLB, बताई वजह

इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुस्लिम बोर्ड ने कई सवाल खड़े किए हैं.

1. मुस्लिम बोर्ड ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 9-11-2019 के फैसले में कुछ मुद्दे सामने आए हैं.  बोर्ड का कहना है कि बाबरी मस्जिद की तामीर बाबर के कमांडर मीर बाकी के द्वारा 1528 में हुई थी जैसा कि मुकदमा संख्या 5 के वादीगण ने अपने वाद पत्र में स्वयं माना है और सुप्रीम कोर्ट ने उसे स्वीकार किया है.

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2. मुसलमानों द्वारा दिए गए साक्ष्य के आधार पर यह साबित है कि 1857 से 1949 तक बाबरी मस्जिद का तीन गुम्बद वाला भवन तथा मस्जिद का अंदरुनी सहन मुसलमानों के कब्जे और प्रयोग में रहा है. इसे भी सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया है.

3. जब 22/23 दिसंबर 1949 की रात में बलपूर्वक रखी गई रामचंद्रजी की मूर्ति तथा अन्य मूर्तियों का रखा जाना अवैधानिक था तो इस प्रकार अवैधानिक रूप से रखी गई मूर्तियों को Deity कैसे मान लिया गया है, जो हिंदी धर्मशास्त्र के अनुसार भी Deity नहीं हो सकती है.

4. जब बाबरी मस्जिद में 1857 से 1949 तक मुसलमानों का कब्जा रहा और नमाज पढ़ा जाना साबित माना गया है तो मस्जिद की जमीन को वाद संख्या 5 के वादी संख्या 1 को किस आधार पर दे दिया गया?

5. संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते समय माननीय न्यायमूर्ति ने इस बात पर विचार नहीं किया कि वक्फ एक्ट 1995 की धारा 104-A तथा 51(1) के अंतर्गत मस्जिद की जमीन के एक्सचेंज या ट्रांसफर को पूर्णतया बाधित किया गया है तो Statute के विरुद्ध तथा उपरोक्त वैधानिक रोक/पाबंदी को अनुच्छेद 142 के तहत मस्जिद की जमीन के बदले में दूसरी जमीन कैसे दी जा सकती है? जबकि स्वयं माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने दूसरे निर्णयों में स्पष्ट कर रखा है कि अनुच्छेद 142 के अधिकार का प्रयोग करने की माननीय न्यायमूर्तियों के लिए कोई सीमा निश्चित नहीं है.

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6. बोर्ड ने कहा है कि उपरोक्त तथ्यों पर विचार करने और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में उपरोक्त तथा अन्य apparent eroros होने के कारण पुनर्विचार याचिका दायर करने का निर्णय लिया गया, जिसमें इस तथ्य का भी उल्लेख किया जाएगा कि मस्जिद की भूमि के बदले में मुसलमानों को बाबरी मस्जिद की भूमि देने की कृपा की जाए. मुसलमान किसी दूसरे स्थान पर अपना अधिकार लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट नहीं गए थे बल्कि मस्जिद की भूमि हेतु न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट गए थे.

यह भी पढ़ें: अयोध्या पर रिव्यू पिटीशन दाखिल करेगा AIMPLB, मस्जिद के लिए दूसरी जगह जमीन मंजूर नहीं

मुस्लिम बोर्ड की ओर से यह भी कहा गया है कि बाबरी मस्जिद के बीच वाले गुंबद के नीचे की भूमि को जन्मस्थान के रूप में पूजा जाना साबित नहीं है. अत: सूट 5 के वादी संख्या 2(जन्मस्थान) को Deity हीं माना जा सकता है.

AIMPLB की ओर से जारी प्रेस रिलीज

संविधान के खिलाफ था बाबरी विध्वंस

मुसलमानों के द्वारा दायर किया गया वाद संख्या 4 मियाद(लिमिटेशन) के अंदर है तथा आंशिक रूप से डिक्री किया जाने योग्य है. कोर्ट ने भी माना है कि 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद गिराए जाने का काम भारत के सेक्यूलर सविंधान के खिलाफ था.

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