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जब अचानक राजीव गांधी का राम मंदिर और हिंदू प्रेम दांव पड़ा था उल्टा

नवंबर 1989 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने हिंदू संगठनों को विवादित स्थल के पास शिलान्यास की इजाजत दे दी. माना जाता है कांग्रेस सरकार का ये फैसला शाहबानों केस के बाद नाराज हिंदू वोटबैंक और भ्रष्चाचार के आरोपों से घटते जनाधार को अपनी तरफ खींचने के लिए किया था. लेकिन कांग्रेस का दांव उल्टा पडा.

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 05 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 3:28 PM IST

अयोध्या की विरासत जितनी पुरानी है, उतना ही पेचीदा इसकी जमीन पर उठा विवाद रहा है. वो विवाद जिसने हिंदुस्तान की राजनीति में धर्म के लिए जगह पुख्ता की. राजनीति में धर्म की वो पैठ आजादी के बाद और बढ़ती गई. लेकिन अयोध्या को इसका नुकसान ही उठाना पड़ा. अगर धर्म ने रास्ता सुझाया होता, तो मंदिर-मस्जिद का विवाद 70 साल बाद भी इस मोड़ पर आज नहीं खड़ा होता.

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...मंदिर वहीं बनाएंगे. अयोध्या को लेकर राजनीति का राग नया नहीं है, बल्कि इस राग में बाबरी मस्जिद के विध्वंस से लेकर दंगे फसाद की तमाम घटनाएं देश ने झेला है.

हिंदुओं को पूजा करने की मिली इजाजत

दरअसल ये पूरा विवाद सबसे तीखा मोड़ लेता है 1980 के दशक में जब वीएचपी की धर्मसंसद में राम मंदिर बनाने का प्रण होता है. इसके दो साल बाद एक अदालती आदेश आता है, जिसमें फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने मस्जिद का ताला खोलने का आदेश सुनाया. तब विवादित मस्जिद में पहले की तरह हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत तो मिल गई, लेकिन सियासत ने एक और करवट ली.

राजीव गांधी सरकार में हुआ शिलांयास

नवंबर 1989 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने हिंदू संगठनों को विवादित स्थल के पास शिलान्यास की इजाजत दे दी. माना जाता है कांग्रेस सरकार का ये फैसला शाहबानों केस के बाद नाराज हिंदू वोटबैंक और भ्रष्चाचार के आरोपों से घटते जनाधार को अपनी तरफ खींचने के लिए किया था. लेकिन कांग्रेस का दांव उल्टा पडा. आडवाणी जैसे नेताओं के साथ बीजेपी पूरे मंदिर आंदोलन को अपनी सियासी धारा में साध चुकी थी.

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राममंदिर आंदोलन का चेहरा आडवाणी बने

मंदिर आंदोलन के उस उफान पर आडवाणी का बयान तब ऐसा सुना जाता था. तब ये आंदोलन वीएचपी और बजरंग दल जैसे दक्षिणपंथी संगठनों का हुआ करता था. इसके अगुवा अशोक सिंघल और बजरंग दल के युवा अध्यक्ष विनय कटियार सरीखे लोग हुआ करते थे.

मंदिर आंदोलन से बीजेपी में पड़ी जान

उस दौर के बदलते सियासी समीकरणों ने लालकृष्ण आडवाणी को इसका सबसे बड़ा चेहरा बना दिया. इसकी बुनियाद 1989 के आम-चुनावों में पड़ जाती है, जिसमें 9 साल पुरानी बीजेपी को 85 सीटें मिली. पार्टी ने मान लिया वीएचपी के राम मंदिर आंदोलन का समर्थन जनता ने स्वीकार कर लिया.

अयोध्या की गलियों में राम मंदिर निर्माण का एक बड़ा हिमायती सियासत से भी मिल गया. ये हिमायत पार्टी की सेहत के लिए फायदेमंद था, ये 1989 के चुनावों में दिख चुका था. 2 की जगह 85 सीटें जीत कर बीजेपी तब वीपी सिंह की जनता दल सरकार को समर्थन दे रही थी. उधर मंदिर आंदोलन अपने पूरे उफान पर था.

उस आंदोलन की आंच से सांप्रदायिक सौहार्द का माहौल गरम होने लगा था. अयोध्या में उपद्रव और दूसरे इलाकों में भड़की हिंसा में अनुमान के मुताबिक 800 लोग मारे जा चुके थे. लेकिन सरकार में शामिल बीजेपी का रुख मंदिर निर्माण को लेकर जस का तस था.

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