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क्या भारत को आयुष्मान कर पाएगी ये योजना ?

महत्वाकांक्षी योजना के क्रियान्वयन का विस्तृत खाका तैयार लेकिन कागजों पर लिखा बीमा अमल में लाना किसी बीमारी से कम जटिल नहीं 

दिल्ली के आरएमएल अस्पताल में मरीज दिल्ली के आरएमएल अस्पताल में मरीज
संध्या द्विवेदी/मंजीत ठाकुर
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  • 02 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 9:46 PM IST

बरेली के सिविल लाइन्स इलाके में रहने वाले 62 साल के नरेश चंद्र इन दिनों चलने फिरने में असमर्थ हैं. डॉक्टर कहते हैं कि घुटने बदलवाना ही अंतिम विकल्प है. सरकारी अस्पताल में घुटने बदलवाने के लिए लगा अर्जियों का अंबार नरेश का हौसला तोड़ता है.

निजी अस्पतालों की महंगी फीस उनकी आर्थिक सेहत के माकूल नहीं है. भारत समेत दुनिया की आधी आबादी नरेश की तरह स्वास्थ्य सेवाओं से महरूम हैं. नरेश जैसों को जब भारत में दुनिया की सबसे बड़ी सेहत बीमा स्कीम शुरू होने के बारे में पता चला तो मानो उनकी उम्मीदों को विटामिन मिल गया.

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बीमार स्वास्थ्य व्यवस्था का बीमा

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट बताती है कि हर साल स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च की वजह से भारत में पांच करोड़ लोग गरीब हो जाते हैं. एक सदस्य के महंगे इलाज की मार पूरे परिवार को संघर्ष करने के लिए मजबूर करती है. आजादी के बाद जिला अस्पताल, सामुदायिक केंद्र और निजी अस्पतालों की संख्या देश की जनसंख्या के अनुपात में नहीं बढ़ी.

जितने समय में जनसंख्या सात गुनी हो गई अस्पताल दोगुने भी नहीं हो पाए. एक अनुमान के मुताबिक, देश में छोटे बड़े मिलाकर करीब 60,000 से 70,000 अस्पताल हैं, जिनमें 60 फीसदी ऐसे हैं जिनमें 30 या उससे कम बेड हैं.

केवल 3,000 अस्पताल ऐसे हैं जिनमें बेड की संख्या 100 या उससे अधिक है. देश में कुल 470 मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें 230 सरकारी और 240 निजी हैं. मोटे तौर पर पूरे देश में करीब 20 लाख बेड की उपलब्धता होगी यानी 125 करोड़ की आबादी वाले देश में 625 नागरिकों के लिए महज एक बेड.

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आयुष्मान भारत कार्यक्रम के जरिए सरकार का प्रयास देश के 10 करोड़ परिवारों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने का है. यह केंद्र और राज्य स्तर पर चलाई जा रही विभिन्न स्वास्थ्य योजनाओं के तजुर्बों के बाद तैयार किया गया.

दावा है कि यह कार्यक्रम देश की 50 करोड़ आबादी को मुफ्त सेहत बीमा देगा. बीमा की राशि 5 लाख रु. होगी. यानी कि इलाज पर पांच लाख रु. तक का खर्च सरकार उठाएगी. योजना के तहत देश भर 1.5 लाख हेल्थ ऐंड वेलनेस केंद्र बनेंगे जो चोट-चपेट, खांसी-जुकाम का इलाज करेंगे यानी कि प्राथमिक उपचार.

आयुष्मान भारत बीमा स्कीम के अंतर्गत छोटी बड़ी 1,350 बीमारियों का इलाज होगा. मरीज के भरती होने से तीन दिन पहले से लेकर अस्पताल से छुट्टी के बाद 15 दिन तक का खर्चा (दवाएं, मरहम पट्टी) बीमा योजना में शामिल होगा.

बीमा योजना का लाभ उन्ही बीमारियों के लिए मिलेगा, जिनमें हॉस्पिटलाइजेशन यानी अस्पताल में भर्ती होना जरूरी होगा. इसका खर्च केंद्र और राज्य, दोनों मिलकर उठाएंगे.

नीति आयोग के सदस्य और आयुष्मान भारत कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाले डॉ. विनोद पॉल कहते हैं कि आयुष्मान दुनिया का सबसे बड़ा स्वास्थ्य मिशन होगा.

देश की करीब 20 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे है. आयुष्मान का लाभ समाज के निचली पायदान पर खड़ी 40 फीसदी आबादी को मिलेगा. ऐसे में इसका फायदा गरीबी रेखा से नीचे आने वाले लोगों के साथ साथ निक्वन मध्य वर्ग को भी मिलेगा.

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इसको तैयार करने में स्वीडन, जर्मनी, कनाडा, अमेरिका, थाईलैंड, जापान, कोरिया, चीन आदि देशों में लागू नीतियों का अध्ययन किया गया. डॉ. पॉल थाईलैंड की नीतियों से काफी प्रभावित दिखे, जहां यूनिवर्सल कवरेज हेल्थ कार्ड रखने वाले सभी नागरिकों का मुफ्त इलाज होता है.

साथ ही प्राथमिक स्वास्थ्य पर सरकार का बड़ा फोकस है. डॉ. पॉल कहते हैं, "सरकार का जोर बड़ी संख्या में बीमा देने के साथ बुनियादी ढांचे को विकसित करने पर भी होगा. देशभर में तैयार किए जाने वाले हेल्थ ऐंड वेलनेस सेंटर उसी का हिस्सा हैं. अस्पताल, डॉक्टर्स, नर्स, पैरा मेडिकल स्टाफ आदि की कमी को पूरा करने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है.''

बीमा की उलझन

कोई संदेह नहीं कि भारत को स्वस्थ बनाने की दिशा में यह बड़ा कदम है. लेकिन कागजों पर लिखा बीमा अमल में किसी बीमारी से कम जटिल नहीं है. जटिलता इसलिए क्योंकि इसके क्रियान्वयन के कई पक्ष हैं.

मसलन, लाभार्थी, बीमा कंपनी, निजी अस्पताल, डॉक्टर्स आदि. 50 करोड़ लोगों को बीमा मुहैया कराने के लिए सरकार के सामने बड़ी चुनौती लागत को कम रखने की होगी. लागत बढऩे से बीमा कंपनियों का प्रीमियम बढ़ेगा जिसका असर अप्रत्यक्ष रूप से सरकार पर ही पड़ेगा.

देश में स्वास्थ्य ढांचा ऊंट के मुंह में जीरा के समान है. मांग के सामने यह कमी स्वास्थ्य सेवाओं को महंगा कर देती है. निजी क्षेत्र में इलाज की दरों के कोई तय मानक भी नहीं हैं और सरकारी अस्पताल अच्छे होते तो बीमा की जरूरत क्यों पड़ती.

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बड़ी आबादी को बीमा

आयुष्मान स्कीम के अंतर्गत बीमा कंपनियों को ठेका राज्यों के हिसाब से दिया जाएगा. हर राज्य के लिए बोली लगाई जाएगी, जिसमें निजी और सरकारी, दोनों बीमा कंपनियां हिस्सा ले सकती हैं. राज्य की जनसंख्या में स्कीम के लिए पात्र लोगों की संख्या के आधार पर प्रीमियम तय होगा.

बीमा कंपनी बजाज अलाइंज में हेल्थ एडिमिनिस्ट्रेशन टीम के प्रमुख भास्कर नेरुरकर कहते हैं, "सरकार की ओर से आयुष्मान भारत जैसी पहल काफी सकारात्मक है. अलग-अलग राज्यों में चलाई जा रही ऐसी स्कीमों के साथ कंपनी का अनुभव काफी अच्छा रहा है.''

गुजरात, मिजोरम और उत्तराखंड जैसे राज्य इसका अच्छा उदाहरण हैं. आयुष्मान की नीलामी प्रक्रिया में उनकी कंपनी प्रमुखता से हिस्सा लेगी. नेरुरकर कहते हैं कि ऐसे बीमाधारक जो इस स्कीम के अंतर्गत नहीं आते हैं उनके प्रीमियम पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा.

सिक्योर नाउ इंश्योरेंस ब्रोकर के संस्थापक और सीईओ कपिल मेहता कहते हैं कि आयुष्मान भारत के कारण बीमा क्षेत्र में बड़ी ग्रोथ की उम्मीद है. "लेकिन मौजूदा बुनियादी ढांचे पर इतने लोगों का इलाज होना बड़ी चुनौती है.

सरकारी अस्पतालों पर मरीजों का दबाव ज्यादा है. ऐसे में निजी संस्थानों को बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना होगा. सरकार को स्वास्थ्य पर बजट बढ़ाकर बुनियादी ढांचे पर काम करने की बड़ी आवश्यकता है.'' लाभार्थियों को इस स्कीम का लाभ तभी मिल सकता है जब प्राथमिक उपचार केंद्र मजबूत हों और सरकार सभी पक्षों की भागीदारी सुनिश्चित कर सके.

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केंद्र सरकार की चुनौतियां

आयुष्मान भारत योजना पूरे देश में राज्यों को साथ लिए बिना लागू नहीं की जा सकती. योजना पर होने वाले खर्च में राज्य भी भागीदार हैं. आयुष्मान में होने वाले खर्च का 60 फीसदी हिस्सा केंद्र उठाएगी, जबकि 40 फीसदी हिस्सेदारी राज्यों की होगी.

जबकि उत्तर पूर्वी और पहाड़ी राज्यों मसलन, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्ताखंड जैसे राज्यों में केंद्र की हिस्सेदारी 90 फीसदी की होगी. आयुष्मान का श्रेय केंद्र के हिस्से आएगा इसलिए सरकार के सामने राज्यों को साथ जोडऩे की चुनौती भी होगी.

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जगत प्रकाश नड्डा कहते हैं, "24 राज्यों के साथ एमओयू साइन किए जा चुके हैं. राज्यों से बातचीत जारी है. हमें पूरा भरोसा है कि सभी राज्यों को बीमा योजना के साथ जोड़ लिया जाएगा.''

उन्होंने यह भी कहा कि यह बहुत बड़ी योजना है. इसके क्रियान्वयन में तकनीक का पूरा इस्तेमाल किया जाएगा. इसके लिए एक आइटी सॉल्यूशन तैयार किया जा रहा है, जो अगले महीने के अंत तक तैयार हो जाएगा.

वे कहते हैं कि आयुष्मान समेत किसी भी स्वास्थ्य योजना के लिए बजट की कोई भी दिक्कत नहीं है. जैसे-जैसे राज्य स्कीम को लागू करते जाएंगे, जितने बजट की जरूरत होगी वह मुहैया कराया जाएगा. सरकार का पूरा फोकस बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने पर है.

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निजी अस्पतालों के बिना नहीं चलेगा

आयुष्मान की राह में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि निजी अस्पताल सरकार की ओर से विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए तय की गई दरों पर सहमत नहीं हैं. एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर के महानिदेशक डॉ. गिरधर जे. ज्ञानी कहते हैं, "सरकार को मुगालता है कि इन दरों पर इलाज संभव है.

सरकार ने अनुमान से ये दरें तय की हैं, जिन पर निजी अस्पताल इलाज करने के लिए तैयार नहीं हैं. सरकार कह रही है कि एक साल आप इन दरों पर इलाज कर लीजिए, एक साल बाद इस पर अध्यन कर इनको संशोधित कर दिया जाएगा.'' ज्ञान यह भी कहते हैं कि इतनी बड़ी आबादी के इलाज के लिए डॉक्टर्स, नर्स और पैरा मेडिकल स्टाफ की उपलब्धता और मांग में बड़ा अंतर है.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के फाइनेंस सेक्रेटरी डॉ. विनोद कुमार मूंगा कहते हैं कि इस स्कीम के पीछे सरकार की मंशा अच्छी है, लेकिन इसका क्रियान्वयन सबसे बड़ी चुनौती है. वे कहते हैं कि सरकार की स्कीम वास्तविकता से दूर है.

इलाज की दरों पर टिप्पणी करते हुए वे कहते हैं कि सरकार ने सिजेरियन डिलिवरी के लिए 9,000 रुपए तय किए हैं. इसमें हॉस्पिटलाइजेशन, ऑपरेशन थिएटर का खर्च, सर्जन, एनेस्थिसिया सब कुछ कैसे संभव होगा?

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वे कहते हैं सरकार की ओर से दी गई दरें बहुत कम हैं. सरकार को इलाज की दरें टेक्निकल तरीके से तय करनी चाहिए अन्यथा यह स्कीम भी सरकार की अन्य बीमा स्कीमों की तरह दम तोड़ देगी.    

लेकिन डॉ. पॉल कहते हैं कि ऐसा कतई नहीं होगा क्योंकि लागत को सोच-समझकर तैयार किया गया है. "इसे सीजीएचएस की दरें, एक्सपर्ट ग्रुप, 60 से 70 अस्पतालों से बातचीत और लागत पर किए गए अध्यन के आधार पर तैयार किया गया है. लिहाजा, निजी अस्पतालों को कम से कम एक साल इन दरों के साथ आगे बढऩा चाहिए.''

यह है हेल्थ का निजीकरण

ऑक्सफैम इंडिया की हेल्थ प्रोग्राम को-ऑडिनेटर शमाइला खलील कहती हैं कि देश के नागरिकों को मुफ्त और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देना सरकार की जिम्मेदारी है. लेकिन बड़ी आबादी को बीमा देने से निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ेगी जो मौजूदा स्वास्थ्य ढांचे में असंतुलन पैदा कर देगी.

वे कहती हैं कि प्राथमिक उपचार केंद्रों को दुरुस्त न करने पर मरीज उन बीमारियों के लिए भी बड़े निजी और सरकारी अस्पतालों पर निर्भर हो जाएंगे, जिनका इलाज निचले स्तर पर ही संभव था.

सरकार ने देशभर में 1.5 लाख हेल्थ ऐंड वेलनेस सेंटर खोलने का लक्ष्य रखा है लेकिन इसके लिए 1,200 करोड़ रु. का बजट बेहद कम है. साथ ही नेशनल रूरल हेल्थ मिशन (एनआरएचएम) के तहत बुनियादी ढांचे के देखभाल के बजट को भी सरकार ने नहीं बढ़ाया.

ऐसे में प्राथमिक उपचार के लिए बने सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र, कम्युनिटी सेंटर और हेल्थ सब सेंटर की हालत में भी किसी सुधार की उम्मीद नहीं है.

शमाइला कहती हैं कि बीमा योजना देने के बाद निजी क्षेत्र की भागीदारी बढऩे से स्वास्थ्य सेवाएं महंगी हो सकती हैं. यह निश्चित तौर पर प्रीमियम बढऩे का कारण भी बनेगा जिसका असर सरकार पर पड़ेगा.

इसके अलावा 50 करोड़ लोगों को बीमा सुविधा मुहैया कराने के लिए भी 2,000 करोड़ रुपए का आवंटित बजट अपर्याप्त है. संभावना है कि 15 अगस्त को यह स्कीम लागू हो जाएगी. लेकिन इस बात की गारंटी नहीं कि स्कीम की लॉन्चिंग के साथ ही लाभार्थियों के हाथ कुछ आएगा.

उम्मीद है कि 10 करोड़ गरीब परिवारों को मुफ्त बीमा देने वाली स्कीम आयुष्मान (लंबी आयु) होगी.

आयुष्मान भारत योजना

1 योजना के दो बड़े हिस्से. प्राथमिक चिकित्सा के लिए 1.5 लाख हेल्थ ऐंड बेलनेस सेंटर और नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम.

2 हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम के तहत 10 करोड़ गरीब परिवारों यानी 50 करोड़ जनता को मुफ्त स्वास्थ्य बीमा देने का दावा.

3 हर परिवार के लिए बीमा की राशि 5 लाख रुपए होगी, जो छोटी बड़ी 1,350 बीमारियों को कवर करेगी.

4 अस्पताल, डॉक्टर्स, पैरा मेडिकल स्टाफ की कमी के बीच योजना का सफल क्रियान्वयन बड़ी चुनौती.

5 इस योजना का पूरा दारोमदार प्राथमिक उपचार के मजबूत बुनियादी ढांचे पर टिका होगा.

आयुष्मान भारत योजना के बारे में सीईओ इंदु भूषण के साथ एसोसिएट एडिटर शुभम शंखधर की बातचीत के प्रमुख अंशः

आयुष्मान भारत के लिए बढ़ाना होगा स्वास्थ्य सेवाओं का बुनियादी ढांचा

आयुष्मान भारत योजना का लाभ जनता को कब तक मिलेगा?

आयुष्मान भारत योजना पर काम जारी है. 24 राज्यों के साथ एमओयू साइन किए जा चुके हैं. 15 अगस्त तक हमारी तैयारियां पूरी हो जाएंगी. यह प्रधानमंत्री जी पर निर्भर करता है कि वे इस स्कीम को कब लॉन्च करते हैं. लॉन्चिंग के साथ ही राज्यों में लाभार्थियों को चिन्हित करने और उनके कार्ड बनाने का काम शुरू कर दिया जाएगा.

लाभार्थियों को कैसे चिन्हित करेंगे?

सही लाभार्थियों की पहचान बड़ी चुनौती है. एक ही नाम के कई लाभार्थी, नाम की स्पेलिंग में अंतर, ऐसी कई चीजें हैं जो सही व्यक्ति की पहचान में दिक्कत पैदा करती हैं. हालांकि राज्यों के माध्यम से एक सूची ग्राम पंचायतों तक पहुंचा दी गई है.

लोग खुद जान सकें कि वे लाभार्थी हैं या नहीं, इसके लिए सरकार तकनीक का सहारा लेगी और स्कीम की लॉन्चिंग के बाद अभियान चलाएगी. लाभार्थी की सही पहचान के लिए सरकार एक सॉफ्टवेयर भी तैयार कर रही है, जो अगले महीने तक बनकर तैयार हो जाएगा.

इसमें हेल्थ ऐंड वेलनेस सेंटर की क्या भूमिका है?

नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम की सफलता हेल्थ ऐंड वेलनेस सेंटर पर टिकी है. इन सेंटर्स को व्यापक स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए सक्षम बनाया जाएगा. प्राथमिक उपचार के साथ-साथ ये सेंटर मरीज के अस्पताल में भर्ती होने से पहले और छुट्टी होने के बाद भी अहम भूमिका निभाएंगे.

ये सेंटर जितने मजबूत होंगे अस्पतालों पर बोझ उतना ही कम होगा. प्राथमिक उपचार के साथ-साथ इन सेंटर में टेलीमेडिसिन और योगा जैसी सुविधाएं भी होंगी.

इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी से कैसे निपटेंगे?

निश्चित तौर पर मांग के मुकाबले देश में स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर कम है. अभी हम स्वास्थ्य सेवाओं पर जीडीपी के 1 फीसदी के बराबर खर्च कर रहे हैं, जिसेबढ़ाकर 2.5 फीसदी तक ले जाने का लक्ष्य है. आयुष्मान भारत स्कीम की वजह से देश में बड़ी मांग उत्पन्न होगी जो निजी अस्पतालों को विस्तार के लिए प्रोत्साहित करेगी. साथ ही सरकारी अस्पतालों के पास भी बुनियादी ढांचों को खड़ा करने का अवसर होगा क्योंकि बीमा कंपनी से मिला पैसा उन्हीं के पास रहेगा.

राज्यों की स्कीमों में इस योजना का विलय कैसे होगा?

राज्यों की स्कीमों में बीमा की राशि और अन्य शर्तों को आयुष्मान के अनुरूप बनाया जाएगा. साथ ही किसी राज्य का मरीज अगर किसी अन्य राज्य में इलाज कराने जाता है तो उसका भुगतान राज्य सरकार को करना होगा. नेशनल हेल्थ पोर्टेबिलिटी इस दिशा में मददगार होगी. आयुष्मान भारत एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है. इसे पूरा होने में निश्चित तौर पर समय लगेगा, लेकिन यह तय है कि हम सही दिशा में जा रहे हैं.

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