Advertisement

सावन के पहले सोमवार को देवघर में बम भोले की गूंज...

सावन के पहले सामेवार को देवघर के बाबाधाम मंदिर में सुबह से इस भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया था. भोले बाबा के जलाभि‍षेक के साथ ही बम भोले के जयकारों से पूरा देवघर गूंज उठा...

बाबाधाम मंदिर, देवघर बाबाधाम मंदिर, देवघर
वन्‍दना यादव/धरमबीर सिन्हा
  • देवघर ,
  • 25 जुलाई 2016,
  • अपडेटेड 12:08 PM IST

श्रावणी मेला की पहली सोमवारी को देवघर के बाबा मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटी है. सावन की पहली सोमवारी को पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग का जलाभिषेक करने के लिए देर रात से ही कांवड़ियों की लंबी कतार लगने लगी थी. ऐसी मान्यता है कि श्रावण की सोमवारी को पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग के जलाभिषेक से सभी मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.

Advertisement

सावन की पहली सोमवारी पर रिकॉर्ड संख्या में बाबा का जलाभिषेक करने देवघर पहुंचे श्रद्धालुओं को जलार्पण में किसी तरह की परेशानी नहीं हो इसके लिए प्रशासन द्वारा भी विशेष तैयारी की गई है.

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक
सावन महीने में शिव को गंगाजल अर्पित करने का विशेष महत्व है. इस दौरान श्रद्धालू देवनगरी देवघर से करीबन 108 किलोमीटर दूर बिहार के अजगैबीनगरी सुल्तानगंज से कांवड़ भर पैदल यात्रा के बाद बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाते हैं.

अजगैबीनाथ का महत्व
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार राजा सगर के 60 हजार पुत्रों के उद्धार के लिए जब उनके वंशज भागीरथ यहां से गंगा को लेकर आगे बढ़ रहे थे, तब इसी अजगैबीनगरी में गंगा की तेज धारा से तपस्या में लीन ऋषि जान्व्ही की तपस्या भंग हो गई. इससे क्रोधित हो ऋषि पूरी गंगा को ही पी गए. बाद में भागीरथ के अनुनय-विनय पर ऋषि ने जंघा को चीर कर गंगा को बाहर निकाला. यहां मां गंगा को जान्व्ही के नाम से जाना जाता है.

Advertisement

शक्तिपीठ भी है यह ज्योर्तिलिंग
यह भी माना जाता है कि मां गंगा के इसी तट से भगवान राम ने पहली बार भोलेनाथ को कांवड़ भर कर गंगा जल अर्पित किया था और सदियों से चली आ रही यह परंपरा आज भी जारी है. सुल्तानगंज से जल उठाने के बाद कंवड़िये बोल-बम का उदघोष करते हुए बाबा के मंदिर की ओर बढ़ते हैं. यह रास्ता काफी कठिन होता है.

इस दौरान भक्तों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. लेकिन इसके बावजूद भक्तों का जोश और उमंग देखते ही बनता है. इस दौरान कुछ ऐसे भक्त भी होते हैं जो इस 108 किलोमीटर की कठिन यात्रा को 24 घंटे में पूराकर जलार्पण करने का संकल्प लेते है जिन्हें डाकबम कहते है.

बाबाधाम देवघर को ह्रदयपीठ और चिता भूमि भी कहा गया है. इसी पावन धरा पर माता सती का ह्रदय गिरा था. इस वजह से यह ज्योतिर्लिंग के साथ-साथ शक्ति पीठ भी है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement