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शीतकाल में वेसे तो बद्रीनाथ के दर्शन किसी को नहीं हो पाते हैं लेकिन कुछ भाग्यशाली लोगों को शीतकाल में भी बद्रीनाथ के दर्शन हो ही जाते हैं. अनादिकाल से चली आ रही परम्परा के अनुसार शीतकाल में इस समय बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद है, यहां इस समय आम लोगों का बिना अनुमति आना-जाना प्रतिबंधित है. केवल स्थानीय लोग ही यहां मंदिर और अपने संस्थानों की देखरेख के लिए जाते रहते हैं.
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जलवायु परिवर्तन का असर धाम पर
नर और नारायण पर्वतों के बीच मौजूद भगवान बद्रीनाथ का धाम भी अब जलवायु परिवर्तन के असर से नहीं बच पाया है. बद्रीनाथ में एक माह पहले सात फ़ीट बर्फ थी लेकिन अब ये तेज़ी से पिघल रही है. धाम में जगह-जगह बर्फ तो है लेकिन चिंता का विषय यह है की एक माह के भीतर ही बद्रीनाथ धाम में 7 फीट बर्फ पिघल चुकी है.
जानकार मानते हैं कि ये सब प्रकृति का ही खेल है, हालांकि पहले के मौसम में ये असर कम ही होते थे कि फ़रवरी के महीने में भी बद्रीनाथ में बर्फ पिघल जाए. जनवरी-फ़रवरी के महीने में यहां दूर-दूर तक बर्फ की सफ़ेद चादर रहती है, जिसके कारण इंसानों का पैदल चलना भी इस इलाके में बहुत मुश्किल हो जाता है, धाम से आगे सेना के जवानों का हर वक्त पहरा रहता है, इसके साथ ही कुछ तपस्यारत साधु- सन्यासी भी धाम के आसपास के स्थानों में शीतकाल में वास करते हैं.
ग्लोबल वार्मिंग तो कारण नहीं?
ऐसा नहीं है की बर्फ का पिघलना गढ़वाल मंडल के इस इलाके में ही देखा जा रहा हो बल्कि इसके साथ-साथ केदारनाथ धाम और कुमाऊं के कई इलाको में भी इस बार बर्फ तेज़ी से पिघली है. कहा जा रहा है की इस बार समय से पहले ही बर्फ के यूं पिघलना ग्लोबल वार्मिंग का असर है.
बता दें की इस बार बद्रीनाथ धाम के कपाट 6 मई को प्रात:काल 4 बजकर 15 मिनट पर खुलेंगे और तब जाकर भगवान् विष्णु अपने भक्तो को दर्शन देंगे.