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'एक दिन सब कुछ छोड़कर चला जाऊंगा' कह चले गए नीरेंद्रनाथ चक्रवर्ती

मशहूर बंगाली कवि नीरेंद्रनाथ चक्रवर्ती का दिल का दौरा पड़ने के कारण कोलकाता के एक अस्पताल में सोमवार देर रात निधन हो गया. वह 94 साल के थे.

नीरेंद्रनाथ चक्रवर्ती (फोटो साभार- Twitter) नीरेंद्रनाथ चक्रवर्ती (फोटो साभार- Twitter)
जय प्रकाश पाण्डेय
  • कोलकाता,
  • 26 दिसंबर 2018,
  • अपडेटेड 11:39 AM IST

समृद्ध बंगला साहित्य के प्रतिनिधि कवियों में शुमार नीरेंद्रनाथ चक्रवर्ती नहीं रहे. पर क्रिसमस से ठीक एक दिन पहले देर रात दिल का दौरा पड़ने के बाद जब उन्होंने इहलोक को अलविदा कहा, तब तक वह इस जगत में अपने लेखन की भरपूर छाप छोड़ चुके थे. वह 94 साल के थे. 'उलंगा राजा' हिंदी में जिसका अर्थ 'नंगा राजा' होता है के लिए उन्हें साल 1974 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था. उन्हें साहित्य अकादमी की फेलोशिप भी मिली थी, पर उनकी रचनाएं किसी भी मान से ऊपर थीं. हिंदी में भी वह काफी लोकप्रिय थे.

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उन्होंने अपेक्षाकृत देर से लिखना शुरू किया पर जब एक बार लिखना शुरू कर दिया तो भरपूर लिखा. उनकी पहली किताब काव्य संकलन थी, जो 1954 में 30 साल की उम्र में प्रकाशित हुई थी, नाम था 'नील निर्जन'. उसके बाद उन्होंने 47 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिसमें से अधिकांश बच्चों की थी. उन्होंने तकरीबन 12 उपन्यास लिखे और विभिन्न मुद्दों पर लिखे आलेख से भी लगातार पहचान बनाई. वह सही मायने में जन कवि थे. उनके निधन के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने उनकी अंतिम यात्रा को तोपों की सलामी से विदा करने का फैसला किया, पर नीरेंद्रनाथ चक्रवर्ती जैसे लोग कभी विदा नहीं होते. उनकी रचनाएं उनके प्रशंसकों, पाठकों के दिल में उन्हें हमेशा जिंदा रखती हैं.

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साहित्य आजतक की ओर से कवि नीरेंद्रनाथ चक्रवर्ती को उनकी ही दो कविताओं के साथ श्रद्धांजलि.

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1.

एक दिन, उतने दिन

एक दिन सब कुछ छोड़कर चला जाऊंगा

सारा प्यार, सारी घृणा, सब बातें

समस्त नीरवता, सारी रुलाई

कील निकले दरवाज़े,

फूट गए माथे की रक्तराशि

एक दिन दोनों पैरों से ठेलकर

चला जाऊंगा.

एक दिन सब कुछ छोड़कर...एक दिन

सब कुछ दोनों पैरों से ठेलकर

चला जाऊंगा,

तुम्हारे पास अनंतकाल तक रहने तो आया नहीं हूं

अनंतकाल तक सोने की मोहरें या फिर

तांबे के पैसों को जमा करने के लिए

नहीं आया हूं,

यह तो तुम भी जानते हो

जानते हुए भी तुमने

ऊंगली उठाकर मुझे क्यों शाप दिया!

नीम की पत्ती

दांतों तले क्यों काटी अकस्मात!

थोड़े-बहुत दिनों की छुट्टी लेकर आया हूं

छुट्टियां ख़त्म होते ही चला जाऊंगा,

ओ पेड़, उन थोड़े-से दिन

तुम छाया दो मुझे

ओ नदी, उन थोड़े-से दिन

तुम पानी दो मुझे

उन थोड़े-से दिनों के लिए ठहर जाओ

कांपते होंठों का अभिमान लिए

जो मेरे सामने बैठा है

ठहरो, जिसने मेरे पीठ-पीछे

बन्दूक तान रखी है.

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2.

अच्छा लगने पर

अच्छा लगे तो ले सकते हो

न लगे तो मत लेना,

याद रखना

बिना मूल्य चुकाए

मैंने कुछ भी नहीं मांगा,

मैंने बिना रोए औरों को कभी नहीं रुलाया

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मैंने अपनी रुलाई की क़ीमत पर रुलाई ख़रीदी है

सेवा की की़मत पर सेवा

प्यार की क़ीमत पर प्यार,

मैंने जो कुछ भी लिया

उसी से उसका दाम चुकाया है

प्रेम के लिए प्रेम

घृणा के लिए घृणा!

बच्चों के मुंह से टूटी-फूटी बातें सुनने के लिए

मुझे भी टूटी-फूटी भाषा में बातें करनी होती है,

दोस्त की आंखों में भरोसे की लौ जलाए रखने के लिए

मैं ख़ुद सारी रात जलते-जलते जागता रहा हूं

तुम तो जानते ही हो

कि मैंने उजाले की क़ीमत उजाला ख़रीदा था,

मैं फिर एक बार क़ीमत चुकाने आया हूं

दो कटोरी गेहूं के बदले एक कटोरी चावल-प्राण,

अच्छा लगे तो तुम ले सकते हो

न लगे तो मत लेना

- नीरेंद्रनाथ चक्रवर्ती, मूल बांग्ला से अनुवाद: उत्पल बैनर्जी (साभारः फेसबुक/ कविता-कोश)

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