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जब बैंक ऑफ बड़ौदा ने अपने मकान मालिक से कहा- सॉरी सर!

यूं तो बैंक में पैसा नहीं मिल पाने के कारण मायूस होकर लौटने वाले बहुत हैं. लेकिन लखनऊ के बैंक ऑफ बड़ौदा में रुपया निकालने की लाइन में लगे राजेश कपूर की कहानी बहुत ही मजेदार है. आज तीसरी बार अपना चेक बुक लेकर बैंक से 124000 निकालने के लिए आए और एक बार फिर बैंक मैनेजर ने उनसे कह दिया- सॉरी सर कैश खत्म हो गया.

मकान मालिक का रुतबा भी नहीं आ सका काम मकान मालिक का रुतबा भी नहीं आ सका काम
मोनिका शर्मा/बालकृष्ण
  • लखनऊ,
  • 01 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 12:29 AM IST

यूं तो बैंक में पैसा नहीं मिल पाने के कारण मायूस होकर लौटने वाले बहुत हैं. लेकिन लखनऊ के बैंक ऑफ बड़ौदा में रुपया निकालने की लाइन में लगे राजेश कपूर की कहानी बहुत ही मजेदार है. आज तीसरी बार अपनी चेक बुक लेकर बैंक से 124000 निकालने के लिए आए और एक बार फिर बैंक मैनेजर ने उनसे कह दिया- सॉरी सर कैश खत्म हो गया.

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बैंक ऑफ बरौदा की ये ब्रांच लखनऊ के हजरतगंज में है. इस ब्रांच में नगर निगम, पीडब्ल्यूडी समेत तमाम सरकारी विभागों के सैलरी अकाउंट हैं. लेकिन राजेश कपूर इस बैंक के खास ग्राहक हैं. इससे पहले जब भी वह बैंक आते थे तो न सिर्फ उनका काम फौरन होता था बल्कि बैंक के कर्मचारी से लेकर मैनेजर तक गर्मजोशी से उनका स्वागत करते थे.

बैंक मैनेजर ने मकान मालिक से कहा सॉरी
दरअसल राजेश कपूर बैंक ऑफ बरौदा के इस ब्रांच के मकान मालिक हैं. बैंक ऑफ बड़ौदा की यह ब्रांच जिस किराए के मकान में चलती है उसके मालिक राजेश कपूर ही हैं. बैंक ऑफ बड़ौदा इस मकान के किराए के रूप में हर महीने उन्हें 42000 रुपए देता है लेकिन आज बैंक के मैनेजर के सामने अपने मकान मालिक को भी सॉरी बोलने के अलावा कोई चारा नहीं था.

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बैंक के पास खत्म हुआ कैश
राजेश कपूर जब तक बैंक पहुंचे नगदी खत्म हो चुकी थी. तमाम ऐसे लोग जो अपना वेतन का पैसा निकालने आए थे वह भी मायूस होकर लौटे. Bank of baroda के मैनेजर आलोक टंडन साफ कहते हैं कि अपने मकान मालिक को भी नाराज करके वापस भेजने से वह दुखी तो जरूर हैं लेकिन करें तो क्या करें- जरूरत जितने नगदी की है उसकी आधी भी नहीं मिल पा रही है.

बैंक मैनेजर खुद नहीं निकाल पा रहे कैश
बैंक के मैनेजर राजेश टंडन कहते हैं कि कैश की कड़की की हालत यह है कि खुद वह अपनी भी सैलरी नहीं निकाल पा रहे हैं. बैंक के अपने तमाम साथियों से भी उन्होंने यही कहा है कि अपना पैसा निकालने से पहले वह ग्राहकों को पैसा देने की कोशिश करें.

काम नहीं आया मकान मालिक का रुतबा
राजेश टंडन हंसते हुए कहते हैं कि आज बैंक के मकान मालिक होने का रुतबा भी काम नहीं आ रहा है. वो एक बिजनेसमैन हैं और अक्सर उन्हें सफर पर रहना पड़ता है. वह कहते हैं कि प्लास्टिक मनी के दम पर बिना पैसा जेब में लिए उत्तर प्रदेश में घर से बाहर जाने की वह सोच भी नहीं सकते. यहीं नहीं, उनकी पत्नी अपनी बेटी से मिलने कल सुबह हल्द्वानी जाने वाली हैं. उनकी पत्नी ने ना तो paytm का नाम सुना है और ना ही आज तक अपना एटीएम कार्ड बनवाया. अब उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि लखनऊ से हल्द्वानी बिना पैसा लिए आखिर जाए तो कैसे.

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सरकार ने दावा किया था कि वेतन का पैसा लोगों को आसानी से दिलाने के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं. लेकिन लखनऊ में सचिवालय के कर्मचारी भी अपने तनख्वाह की रकम निकालने के लिए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के सामने घंटो लाइन में खड़े रहे. कुछ लोगों को रुपए मिले और कुछ लोग ऐसे थे जिनकी बारी आने तक बैंक ने घोषणा कर दी कि पैसे खत्म हो गए.

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