
नोटबंदी और जीएसटी ने देश में बैंकिंग को महंगा कर दिया. नवंबर 2016 में नोटबंदी लागू होने के बाद बैंकों द्वारा मिलने वाली कई मुफ्त सेवाओं पर चार्ज लगा दिया गया था. फिर जुलाई से लागू जीएसटी ने इन चार्जेस पर टैक्स लगाकर आम आदमी के लिए बैंकिंग सेवा को महंगा कर दिया. देश में बैंकों ने बढ़े हुए बैंकिग चार्जेस को अच्छी सुविधा देने क लिए जरूरी बताया तो रिजर्व बैंक ने कहा कि इससे बैंक को चलाने का खर्च कम किया जा सकेगा.
लेकिन अब बैंक ग्राहकों को केन्द्र सरकार और आरबीआई की दलील रास नहीं आ रही है जिसके चलते अलग-अलग फोरम पर बैंकों द्वारा वसूले जा रहे चार्जेस को मनमाने ढंग के उगाही तक कहा जा रहा है. लगातार बढ़ती शिकायतों के चलते केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक भी अब मामले पर गंभीरता से विचार कर रही है.
जानिए कैसे हो रही बैंकों द्वारा उगाही
- बैंक ब्रांच और एटीएम से सीमित मुफ्त निकासी के बाद खाताधारकों से ट्रांजैक्शन चार्ज वसूला जा रहा है.
- इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफर जैसे नेफ्ट, आरटीजीएस और यूपीआई सेवाओं का इस्तेमाल करने के चार्ज में इजाफा
- एक फ्री चेकबुक के बाद नई चेकबुक लेने पर बैंक द्वारा फीस ली जा रही है.
- ग्राहकों द्वारा मोबाइल वॉलेट का इस्तेमाल करने पर बैंक फीस ले रही है.
- इन सभी चार्जेस पर बैंक द्वारा जीएसटी के नाम पर भी ग्राहकों से पैसा वसूला जा रहा है.
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ये है बैंकों की सफाई
अब बैंक में पैसा रखने पर ग्राहकों को मिलने वाले ब्याज दर में भी कटौती कर बैंकों ने अपनी कमाई बढ़ा ली है. इन सभी कदमों को जायज ठहराने के लिए बैंक की दलील है कि इस कदम से उनके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर कॉस्ट में लगातार इजाफा हो रहा है. बैंकों को अपनी सेवाओं का विस्तार करने की लागत और मौजूदा ब्रांचेस को चलाने का खर्च बढ़ रहा है. इसके अलावा बैंकों की दलील है कि पहले के मुकाबले देश में बैंकिंग सुविधा में बड़ा सुधार दर्ज हुआ है. इस सुधारी हुई बैंकिंग की लागत को ग्राहकों को भी वहन करने की जरूरत है. वहीं बैंकों की यह भी दलील है कि ट्रांजैक्शन चार्ज केवल भारत में नहीं लिया जा रहा है. दुनियाभर के बैंकों में ग्राहकों से ऐसे चार्ज वसूले जाते है.
ग्राहकों को उठाना पड़ रहा डूबे कर्ज का खामियाजा
देश में बैंक की सबसे बड़ी समस्या गंदे कर्ज है. कई दशकों से बैकों के कर्ज और कर्ज माफी से उनकी सेहत खराब हो चुकी है. सरकारी बैंकों का इंफ्रा और पॉवर सेक्टर में निवेश डूबा है जिसके चलते उन्हें 6.1 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. इस नुकसान से बैंकों की कारोबारी तेजी लाने के लिए नया कर्ज देने की क्षमता को भी नुकसान हुआ है.
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वहीं सबसे ज्यादा डूबा कर्ज स्टील, टेक्सटाइल, पॉवर और इंफ्रा क्षेत्र में रहा है. गौरतलब है कि इन क्षेत्रों को दिए गए कर्ज यदि सही कंपनियों को दिए गए होते तो आज बैंकों को सबसे बड़ा मुनाफा इन्ही कर्ज के ब्याज पर होती और ग्राहकों को अच्छी से अच्छी सुविधा सस्ती दरों पर दी जा सकती थी. लेकिन अब बीमार पड़े बैंकों के पास ग्राहकों से धनउगाही कर अपनी लागत घटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.