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जितना नीरव मोदी लेकर भाग गया उससे ज्यादा 8 साल में PNB को सरकार ने दिया

पिछले 11 साल में सरकारी बैंकों में सरकार की तरफ से 2.6 लाख करोड़ रुपये की पूंजी डाली गई है. पीएनबी घोटाले के सामने आने के बाद अब इस पर भी सवाल उठने लगे हैं.

बैंकों का बढ़ता एनपीए बना चुनौती बैंकों का बढ़ता एनपीए बना चुनौती
दिनेश अग्रहरि
  • @agdinesh,
  • 19 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 1:07 PM IST

एक तरफ विजय माल्या, नीरव मोदी जैसे डिफाल्टर अरबपति पूंजीपतियों की वजह से बैंकों का एनपीए बोझ बढ़ता जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ, सरकार टैक्सपेयर्स के पैसे से इनको अपना बहीखाता ठीक करने के लिए लगातार मदद कर रही है. पिछले 11 साल में सरकारी बैंकों में सरकार की तरफ से 2.6 लाख करोड़ रुपये की पूंजी डाली गई है. पीएनबी घोटाले के सामने आने के बाद अब इस पर भी सवाल उठने लगे हैं.

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पिछले 8 साल (2010-11 से 2017-18) में, जिस दौरान यह घोटाला होने की बात कही जा रही है, पंजाब नेशनल बैंक में सरकार ने 12774 करोड़ रुपये की अतिरिक्त पूंजी डाली है. साल 2010-11 से 2016-17 के बीच पीएनबी का मुनाफा 4,400 करोड़ रुपये से गिरकर 1,325 करोड़ रुपये तक पहुंच गया.

यूपीए से लेकर एनडीए तक के वित्त मंत्री परेशान

हर साल वित्त मंत्री सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि टैक्स संग्रह की एक सीमित क्षमता को देखते हुए देश के सामाजिक क्षेत्र में सुधार के लिए खर्चों की व्यवस्था कैसे हो. पिछले कुछ वर्षों से वित्त मंत्रियों को एक और चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. उन्हें एनपीए से जूझ रहे सरकारी बैंकों में भारी पूंजी डालने की जरूरत होती है. फंसे कर्जों और कॉरपारेट के बढ़ते फ्रॉड की वजह से बैंकों का एनपीए बढ़ता जा रहा है.

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टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार पिछले 11 वर्षों में तीन वित्त मंत्रियों प्रणब मुखर्जी, पी. चिदम्बरम और अरुण जेटली ने सरकारी बैंकों में 2.6 लाख करोड़ रुपये की पूंजी डाली है. यह रकम अब तक 2जी से देश को हुए नुकसान के अधिकतम अनुमान से भी ज्यादा है. यही नहीं, यह केंद्र सरकार द्वारा इस साल के बजट में ग्रामीण विकास के आवंटन के दोगुने से ज्यादा और सड़क परिवहन मंत्रालय के आवंटन के साढ़े तीन गुना के बराबर है.

बैंकों को हुआ मोटा मुनाफा

बैंकों ने 2010-11 से 2016-17 के बीच 1.15 लाख करोड़ रुपये की इक्विटी पूंजी सरकार से हासिल की है. इसके अलावा मौजूदा और अगले वित्त वर्ष के लिए 1.45 लाख करोड़ रुपये की पूंजी का आवंटन किया गया है. मजे की बात यह है कि इस दौरान बैंकों का मुनाफा बढ़कर 1.8 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया.

हालांकि पिछले दो साल में एसबीआई और कई अन्य सरकारी बैंकों को घाटा हुआ है. यह घाटा भी इसलिए हुआ, क्योंकि बैंकों को एनपीए और फंसे कर्जों के लिए ज्यादा रकम की बंदोबस्त करनी पड़ी. इसकी वजह से एसबीआई सहित कई बैंकों के शेयरधारकों को भी नुकसान उठाना पड़ा है. रेटिंग एजेंसी केयर के अनुसार एनपीए अभी बैंकों के बुरे दिन खत्म नहीं हुए हैं.

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देश के बैंकों का एनपीए 9 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया है. सरकार बैंकों को टैक्सपेयर्स के पैसे से एक तरफ मदद कर रही है, तो दूसरी तरफ, अरबपति कारोबारी बैंकों का हजारों करोड़ रुपये लेकर देश से फरार हो जा रहे हैं. सरकारी बैंकों का कहना है कि उन्हें तमाम अनावश्यक लालफीताशाही का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा, केंद्र और राज्य सरकार की किसान कर्जमाफी जैसी तमाम योजनाओं का बोझ भी उनके ही सिर आता है.

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