
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी पीएम पद के लिए उनसे बेहतर उम्मीदवार थे लेकिन तब उनके पास कोई और विकल्प नहीं था. पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रणब दा को देश के सर्वोच्च पद के लिए नहीं चुने जाने के लिए शिकवा करने का पूरा हक है. पूर्व प्रधानमंत्री ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब 'द कोलिशन इयर्स' (1996-2012) के विमोचन कार्यक्रम में ये बातें कहीं. इस मौके पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी मौजूद थीं.
प्रधानमंत्री बनने का जिक्र करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा, 'कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मुझे प्रधानमंत्री के रूप में चुना और प्रणबजी मेरे बहुत ही प्रतिष्ठित सहयोगी थे. इनके (मुखर्जी) के पास यह शिकायत करने के सभी कारण थे कि मेरे प्रधानमंत्री बनने की तुलना में वह इस पद के लिए ज्यादा योग्य हैं. लेकिन वह इस बात को भी अच्छी तरह से जानते थे कि मेरे पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था'.
मैं इत्तेफाक से बना था नेता
पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने कहा कि प्रणब दा अपनी मर्जी से राजनेता बने थे, लेकिन मेरा राजनेता बनना एक इत्तेफाक था. उन्होंने आगे कहा कि प्रणब मुखर्जी राजनीति में मुझसे हर लिहाज से सीनियर थे, लेकिन मुझे चुना गया. उन्हें (प्रणब) यह बात पता थी कि मेरे पास कोई और विकल्प नहीं था.
पीएम पद को लेकर प्रणब मुखर्जी ने क्या कहा था?
इससे पहले इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में पूर्व राष्टपति प्रणब मुखर्जी ने मनमोहन को पीएम बनाए जाने के सोनिया गांधी के फैसले को सही ठहराया था. उन्होंने कहा था कि उस समय मनमोहन को प्रधानमंत्री बनना सोनिया गांधी की बेहतरीन पसंद थी. मुखर्जी ने माना कि सीटों की गड़बड़ी और गठबंधन की कमजोरी के चलते आम चुनाव में यूपीए को करारी हार का सामना करना पड़ा. इसमें साल 2012 में ममता बनर्जी द्वारा अचानक यूपीए से अलग होने का फैसला भी शामिल है.
जब प्रणब से पूछा गया कि जब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद के लिए मनमोहन सिंह का चुनाव किया, तो आपको कैसा लगा, तब उन्होंने कहा कि इससे मैं तनिक भी निराश नहीं हुआ. मुझे लगा कि उस समय मैं भारत का प्रधानमंत्री बनने के योग्य नहीं हूं.
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, 'मेरी इस अयोग्यता की सबसे बड़ी वजह यह भी थी कि मैं ज्यादा समय राज्य सभा का सदस्य रहा हूं. सिर्फ साल 2004 में लोकसभा सीट जीती थी. मैं हिंदी नहीं जानता था. ऐसे में बिना हिंदी जाने किसी को भारत का प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहिए.
इस किताब का प्रकाशन रूपा पब्लिकेशन्स ने किया है. इसमें मुखर्जी की 1996 से शुरू हुए सफर को ट्रैक किया गया है.