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अब सिर्फ अपने स्मार्टफोन में देखिए और खुल जाएगा बैंक अकाउंट

अमेरिका और यूरोप में आई-स्कैनिंग टेक्नोलॉजी के चलते लाखों लोग सिर्फ अपने मोबाइल फोन में देखते हैं और अपने बैंक खाते से ट्रांजैक्शन कर लेते है. इस टेक्नोलॉजी की शुरुआत अब भारतीय बैंकों में जोरशोर से हो रही है.

अब बैंक आंख की पुतली से कंफर्म करेंगे आपकी आइडेंटिटी अब बैंक आंख की पुतली से कंफर्म करेंगे आपकी आइडेंटिटी
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 27 जनवरी 2017,
  • अपडेटेड 1:36 PM IST

अमेरिका और यूरोप में आई-स्कैनिंग टेक्नोलॉजी के चलते लाखों लोग सिर्फ अपने मोबाइल फोन में देखते हैं और अपने बैंक खाते से ट्रांजैक्शन कर लेते है. इस टेक्नोलॉजी की शुरुआत अब भारतीय बैंकों में जोरशोर से हो रही है. इसके लिए कुछ बैंकों ने आधार कार्ड का सहारा लेते हुए नए ग्राहकों के बैंक अकाउंट खोलने के लिए आई-स्कैनर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल शुरू कर दिया है.

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जानिए कैसे काम करेगा आंख से बैंक अकाउंट और कैसे बदल जाएगी बैंकिंग

1. कुछ समय पहले तक बैंक को अपने ग्राहकों की आइडेंटिटी साबित करने के लिए ग्राहकों के सिग्नेचर का सहारा लेना पड़ता था. बैंक से पैसा निकानले, चेक से पेमेंट करने और ड्राफ्ट बनवाने के लिए भरे जाने वाले फॉर्म पर ग्राहक के सिग्नेचर को बैंक अपने रिकॉर्ड से मिलान करता था. सिग्नेचर में मामुली हेरफेर पर बैंक आपको दुबारा सिग्नेचर करने के लिए कहता था. बैंक में सिग्नेचर मिलाने का यह काम उसी फॉर्म में किए सिग्नेचर से किया जाता था जिसे ग्राहक ने बैंक अकाउंट खुलवाते समय बैंक में जमा किया था.

2. बैंक में कंप्यूटराइजेशन के बाद आपके इसी सिग्नेचर को बैंक ने डिजिटलाइज करके अपनी सभी शाखाओं में पहुंचा दिया. जिसके चलते सभी बैंकों ने ग्राहकों को किसी भी ब्रांच में जाकर बैंकिंग करने की सुविधा दी. पहले मैन्युअल सिग्नेचर मिलान करने के काम को अब बैंक के नेटवर्क पर मौजूद आपका डिजिटल सिग्नेचर से किया जाता था और बैंक आश्वस्त होकर आपके बैंकिंग रिक्वेस्ट को पूरा कर देता था.

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3. कंप्यूटराइजेशन के बाद बैंक के एटीएम, डेबिट और क्रेडिट कार्ड के साथ-साथ इंटरनेट बैंकिंग की शुरुआत हुई. बैंकिंग के इस दौर में ग्राहकों की पहचान के लिए बैंकों ने पासवर्ड और पिन की शुरुआत की. पासवर्ड और पिन के इस्तेमाल से बैंक आश्वस्त रहते हैं कि किसी भी तरीके से बैंकिंग का सहारा लेना वाला ग्राहक अपना यूनिक पासवर्ड और पिन का इस्तेमाल कर सुरक्षित रहता है. हालांकि इनके हैकिंग का खतरा हमेशा बैंक और ग्राहक पर रहता है.

4. इसके बाद आप किसी की आइडेंटिटी को साबित करने के लिए फिंगरप्रिंट के इस्तेमाल से वाकिफ होंगे. अब दुनिया भर के बैंक आइडेंटिटी साबित करने के लिए फिंगरप्रिंट से एक कदम आगे निकलकर ग्राहकों के आंख की पुतली का सहारा लेने जा रहे है. हालांकि बैंक आंख की पुतली के सैंपल लॉग न करके आंख के सफेद भाग में दौड़ रही रक्त धमनियों का सहारा लेते हुए आपकी आइडेंटिटी को साबित करेंगे.

5. बैंक में ग्राहकों की आंख का आइरिस सैंपल पहुंचने के बाद ग्राहकों को अपने बैंक ऐप में वेरिफिकेशन विंडो पर कुछ सेकेंड तक देखने की जरूरत होगी. बैंक में मौजूद सैंपल और आपके ऐप के जरिए भेजे जा रहे सैंपल का मिलान होते ही बैंक का कंप्यूटर आपकी आइडेंटिटी को साबित कर लेगा और आपको ट्रांजैक्शन करने के लिए मान्य कर देगा. लिहाजा, आंख का सैंपल मिलान हो जाने के बाद आप अपने बैंक खाते में बैलेंस चेक करने, पैसा ट्रांसफर करने और किसी बिल के भुगतान करने का काम कर सकते हैं .

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6. बैंक ग्राहकों को आंख के जरिए आडेंटिटी प्रूफ देने के लिए आधार नंबर का सहारा लेकर बैंक अकाउंट खुलवाना होगा. अकाउंट खोलते वक्त बैंक एक बार फिर आपकी आंख का आइरिस सैंपल रिकॉर्ड करेगा और उसका आपके आधार नंबर के साथ मिलान करेगा. भारत में निजी क्षेत्र के बैंक डीसीबी ने अपने पाइलट प्रोग्राम के तहत छोटे शहर और ग्रामीण इलाकों में अपनी 10 शाखाओं में 200 बैंक खातों को इस आधार पर खोलने का काम पूरा कर लिया है. इसके साथ ही इसी बैंक ने देशभर में आधार नंबर पर आधारित एटीएम मशीन लगाना शुरू कर दिया है. फिलहाल इन एटीएम मशीनों से विड्रॉवल करने के लिए बैंक ग्राहक को अपना फिंगरप्रिंट देना पड़ता है.

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