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हाई कोर्ट को इंटरनेट बताता है आरोपी के पास बीफ है या नहीं

'बीफ' एक ऐसा शब्द है, जिसके उच्चारण मात्र से मौजूदा वक्त में राजनीति और समाज की तमाम संवेदनाएं और उत्तेजना तंत्र सक्रिय हो जाते हैं, लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि देश की एक माननीय अदालत के पास इस ओर जांच के लिए लैब नहीं है.

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट
स्‍वपनल सोनल
  • नई दिल्ली,
  • 02 नवंबर 2015,
  • अपडेटेड 1:46 PM IST

'बीफ' एक ऐसा शब्द है, जिसके उच्चारण मात्र से मौजूदा वक्त में राजनीति और समाज की तमाम संवेदनाएं और उत्तेजना तंत्र सक्रिय हो जाते हैं, लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि देश की एक माननीय अदालत के पास इस ओर जांच के लिए लैब नहीं है. लाचार कानून व्यस्था की इससे बड़ी व्यथा और कुछ हो नहीं सकती कि कोई मांस का टुकड़ा बीफ है या नहीं, इसकी पुष्टि वह इंटरनेट पर रंग देखकर और लेख पढ़कर करती है.

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यकीनन यह जितना दिलचस्प है, उससे कहीं ज्यादा दुर्भाग्य. क्योंकि जिस कानून से न्याय की आस समाज और आम जनता को होती है, वहीं कानून तकनीक के अभाव में इंटरनेट के भरोसे फैसला सुनाने पर मजबूर है. मामला पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का है. जहां अदालत लैब नहीं होने की स्थि‍ति में बीफ रखने के अधि‍कतर आरोपी को इंटरनेट का संदर्भ देते हुए बरी कर देती है. हरियाणा और पंजाब में बीफ पर बैन लगा हुआ है.

बताया जाता है कि पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के जज अक्सर 1955 के पंजाब प्रोहिबिशन ऑफ काउ स्लॉटर एक्ट के तहत मामलों के फैसलों में इंटरनेट का जिक्र और संदर्भ देते हैं. कई बार निचली अदालतों द्वारा बीफ रखने या खाने के आरोपियों को छोड़ते समय जज इंटरनेट पर इस सिलसिले में दर्ज जानकारियों का संदर्भ देते हैं. हालांकि कई मामलों में जब आरोपियों के पास गाय की खाल और सिर बरामद होते हैं तो गोहत्या की पुष्टि‍साफ तौर पर हो जाती है. जबकि इस ओर पकड़े गए अधिकतर आरोपी लैब जांच की सुविधा नहीं होने के कारण छूट जाते हैं.

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इंटरनेट ने बताया, कैसा होता है बीफ का रंग
मई 2011 में एक ऐसे की मामले में आरोपी को बरी करते हुए जस्टिस आलोक सिंह ने इंटरनेट पर 'बीफ के सबसे अच्छे टुकड़ों को छांटना' सर्च किया. अपने फैसले में अदालत ने लिखा, 'बीफ के टुकड़ों में किनारे के आसपास का फैट सफेद से आइवरी यानी हाथी दांत के रंग जैसा होना चाहिए.'

अप्रैल 2015 में दिए गए एक फैसले में हाई कोर्ट ने एक आरोपी को बरी करते हुए लिखा, 'केवल मांस के एक टुकड़े को सामने दिखाए जाने से निष्कर्ष पर पहुंच जाना कि वह बीफ है और इस आधार पर सजा सुना देना गलत है.' इसी तरह मार्च 2009 में मेवात की एक कोर्ट ने इसुफ को 25 किलो बीफ रखने का दोषी मानकर सजा सुनाई. इसुफ को हाई कोर्ट ने यह कहते हुए रिहा कर दिया कि बरामद मांस असल में बीफ है या नहीं यह तय कर पाना मुश्कि‍ल है.

इसुफ के मामले में ट्रायल कोर्ट ने सजा सुनाते हुए विशेषज्ञों की सलाह का हवाला दिया था, जो जानवरों के डॉक्टर होते थे. डॉक्टरों ने तब कहा था, 'आरोपी के पास मिला मांस लाल, मुलायम है और इसके 2 फैट के बीच की मांसपेशि‍यों का रंग पीलापन लिए हुए है. यह साबित होता है कि यह मांस बीफ ही है.'

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दूसरी ओर, आरोपियों का कहना था कि बीफ में पाए जाने वाले वसा का रंग सफेद या फिर क्रीम कलर का होता है. हाई कोर्ट ने मामले में लैब नहीं होने की स्थि‍ति में इंटरनेट पर पढ़कर यह जानने की कोशि‍श की कि बीफ में पाए जाने वाले वसा का रंग कैसा होता और अंत में इसी का संदर्भ लेते हुए आरोपी को बरी कर दिया गया.

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