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बंगाल में एक बार फिर नंबर-2 बनी BJP, 2014 के बाद बदल रहे हालात

महेश्ताला में 22 फीसदी मुस्लिम वोटर होने के बावजूद बीजेपी ने क्षेत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में कामयाबी हासिल की. बीजेपी को यहां 2011 में 3,689 वोट मिले थे जबकि 2016 में 14,909 वोट हासिल किए. लेकिन इस बार उसने शानदार प्रदर्शन कर दिखाया

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
सुरेंद्र कुमार वर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 31 मई 2018,
  • अपडेटेड 3:08 PM IST

परिणाम के लिहाज से देखा जाए तो महेश्ताला विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में कोई उलटफेर नहीं हुआ और उम्मीद के मुताबिक राज्य में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस ने जीत हासिल कर ली, लेकिन इसकी सबसे खास बात यह रही कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने यहां पर भी सीपीएम और कांग्रेस की जोड़ी को पछाड़ते हुए खुद को दूसरे स्थान पर पहुंचा दिया.

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महेश्ताला के परिणाम की बात करें तो बीजेपी ने यहां पर अप्रत्याशित तरीके से प्रदर्शन किया और सभी को चौंकाते हुए 41,993 वोट हासिल कर लिए.

सीपीएम के गढ़ में बीजेपी

वहीं एक समय महेश्ताला को सीपीएम का गढ़ कहा जाता था और उसे हरा पाना विपक्षी दलों के लिए आसान काम नहीं था. 2011 तक इस सीट पर सीपीएम का ही कब्जा रहा, जिसे पहली छिना तृणमूल कांग्रेस की कस्तूरी दास ने. कस्तूरी 7 साल पहले यहां से 2011 में 24,283 मतों के अंतर से जीत हासिल करने में कामयाब रहीं. इसके बाद 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में भी सीट पर कब्जा बनाए रखा.

लेकिन इस साल फरवरी में कस्तूरी दास के निधन के बाद यहां पर हुए उपचुनाव में कस्तूरी के पति दुलाल दास ने 1,04,818 वोट हासिल कर 62,896 मतों के अंतर से जीत अपने नाम कर ली. उनकी इस जीत से बड़ी बात बीजेपी का दूसरे नंबर पर आना रहा.

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क्षेत्र में 22 फीसदी मुस्लिम वोटर होने के बावजूद बीजेपी ने क्षेत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में कामयाबी हासिल की. बीजेपी को यहां 2011 में 3,689 वोट मिले थे जबकि 2016 में 14,909 वोट हासिल किए. लेकिन इस बार उसने शानदार प्रदर्शन कर दिखाया क्योंकि उसने सीपीएम-कांग्रेस के गठजोड़ को पीछे छोड़ते हुए पिछले साल की तुलना में पौने तीन गुना ज्यादा वोट (41,993) हासिल कर लिया.

सीपीएम-कांग्रेस की जोड़ी को किया फेल

सीपीएम-कांग्रेस की जोड़ी भी यहां भी नाकाम होती दिखी और उसके उम्मीदवार को 30,316 मत ही मिले. वोटिंग शेयर के लिहाज से देखें तो 2016 में बीजेपी को 7.7 फीसदी वोट मिले थे, जबकि वामदल को 42.2 फीसदी वोट मिले थे.

कहने को तो यह सिर्फ महेश्ताला की बात है, लेकिन हालिया परिणाम दर्शाता है कि राज्य में तृणमूल कांग्रेस के बाद बीजेपी दूसरे नंबर की पार्टी के रूप में अपनी स्थिति मजबूत करती जा रही है. राज्य में ममता बनर्जी की अगुवाई वाली टीएमसी की बादशाहत को चुनौती देना फिलहाल किसी के लिए संभव नहीं दिख रहा.

हालांकि यह बात भी साफ है कि बीजेपी राज्य में तेजी से अपने पांव पसार रही है. 2014 में आम चुनाव के बाद राज्य में बीजेपी का ग्रॉफ तेजी से ऊपर की ओर ही गया है. पिछले 4 सालों में भगवा पार्टी ने कमाल का प्रदर्शन किया है.

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पंचायत चुनाव में शानदार प्रदर्शन

इसी महीने पंचायत चुनाव में भी सीपीएम और कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए बीजेपी दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी. पंचायत चुनाव में टीएमसी ने 31,802 में से 20,848 सीटों पर कब्जा जमाया. जबकि बीजेपी ने 5,650 से ज्यादा सीटें अपने नाम करते हुए खुद को रनरअप के रूप में रखा. साथ ही बीजेपी पहली बार राज्य के सभी जिलों में जीत दर्ज करने में कामयाब हुई. पिछले साल स्थानीय निकाय चुनावों में भी वह दूसरे स्थान पर रही थी.

पंचायत चुनाव से पहले राज्य में हुए उपचुनावों में भी बीजेपी का प्रदर्शन शानदार रहा था. पश्चिम बंगाल की नवपाड़ा विधानसभा और उलुबेरिया लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी ने सीपीएम से ज्यादा वोट हासिल किए थे. जीत भले ही टीएमसी को हासिल हुई लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इन दोनों सीटों पर सीपीएम और कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए बीजेपी दूसरे स्थान पर काबिज हो गई.

ममता के बाद नंबर 2

ममता और सीपीएम की मौजूदगी वाले बंगाल की सियासत में बीजेपी अपनी जड़ें जमाने के लिए पुरजोर कोशिश में लगी हुए है. 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से लगातार उसका ग्राफ राज्य में बढ़ा है. भगवा पार्टी शुरू से ही राज्य में ममता बनर्जी को मुस्लिमपरस्त के तौर पर पेश करती रही है. बीजेपी आने वाले चुनाव में ममता की मुस्लिमपरस्ती की छवि को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश में लगी है.

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बीजेपी ने ममता सरकार के खिलाफ लगातार अभियान चला रखा है. पार्टी सड़क तक पर संघर्ष करती हुई नजर आ रही है. इतना ही नहीं उसने राज्य में खुद को मजबूत करने के लिए टीएमसी के दिग्गत नेता मुकुल राय को भी अपने साथ मिला. पार्टी राज्य में मुस्लिम मतों को देखते हुए उन्हें भी गले लगाने में जुटी है. इस सिलसिले में बीजेपी ने मुस्लिम सम्मेलन का आयोजन तक किया.

2014 के बाद आया उछाल

राज्य में सीपीएम और कांग्रेस का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है. दोनों लोकसभा, फिर विधानसभा, नगर निकाय और उपचुनाव के बाद अब पंचायत चुनाव में कमजोर साबित हुए. 3 दशक तक राज्य की सत्ता पर काबिज रही सीपीएम का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है और तीसरे स्थान पर खिसकती जा रही है.

2014 में हुए लोकसभा चुनाव में 17 फीसदी वोटों के साथ बीजेपी यहां से 2 सीट जीतने में कामयाब रही थी. सीपीएम को भी दो ही सीट मिली लेकिन सीपीएम को जहां 2009 की तुलना में 13 सीटों का नुकसान हुआ था तो वहीं बीजेपी को एक सीट का फायदा हुआ था.

इसके अलावा 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी की 6 फीसदी वोट की बढ़ोत्तरी हुई और पार्टी को 10 फीसदी मत मिले. बीजेपी 3 जगहों पर जीतने में कामयाब भी रही, जबकि उसके गठबंधन को 6 सीटें मिलीं. इससे पहले बीजेपी ने यहां से खाता तक नहीं खोला था.

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अब देखना होगा कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की अगुवाई में पार्टी अब 2019 में होने वाले आम चुनाव में खुद को कहां तक ले जा पाती है. अगले आम चुनाव में ज्यादा वक्त तो नहीं बचा है, लेकिन भगवा पार्टी की कोशिश रहेगी कि वह 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव में दमदार प्रदर्शन कर खुद को सत्ता के करीब ले जाए.

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