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‘सांप्रदायिक दंगे और उनका इलाज’, आज भी आईना है 90 साल पुराना भगत सिंह का ये लेख

आजादी की लड़ाई के वक्त जब जलियांवाला बाग कांड हुआ तो अंग्रेजी सरकार का जुल्म और बढ़ने लगा. इसी दौरान अंग्रेजी हुकूमत ने सांप्रदायिक बंटवारे की राजनीति तेज कर दी.

सांप्रदायिक दंगों पर भगत सिंह ने लिखा था लेख... सांप्रदायिक दंगों पर भगत सिंह ने लिखा था लेख...
मोहित ग्रोवर
  • नई दिल्ली,
  • 24 सितंबर 2019,
  • अपडेटेड 8:45 AM IST

  • 28 सितंबर, 1907 को हुआ था भगत सिंह का जन्म
  • जेल में रहकर लिखे थे कई खत-लेख
  • सांप्रदायिक दंगों पर दिखाया था आईना

आज के माहौल को देखकर अक्सर घर के बड़े कहते हैं कि पहले का माहौल बढ़िया था. लेकिन ये माहौल कभी बदला ही नहीं, आज़ादी के पहले या बाद में यही देखा जाता रहा है कि लोगों को धर्म, जाति के नाम पर लड़ाया जाता है. आजादी की लड़ाई के वक्त जब जलियांवाला बाग कांड हुआ तो अंग्रेजी सरकार का जुल्म और बढ़ने लगा. इसी दौरान अंग्रेजी हुकूमत ने सांप्रदायिक बंटवारे की राजनीति तेज कर दी.

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अंग्रेजों के इसी जुल्म के खिलाफ शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का एक लेख जून, 1928 में किरती अखबार में छपा था. उसी लेख का कुछ हिस्सा आज के समाज और राजनीति के लिए आईना है. लेख का कुछ अंश पढ़ें...

‘’भारत की दशा इस वक्त दयनीय है. एक धर्म के अनुयायी दूसरे धर्म के अनुयायियों के जानी दुश्मन हैं. अब तो एक धर्म ही दूसरे धर्म का कट्टर होने लगा है. यकीन न हो तो देख लें कि लाहौर में किस तरह मुसलमानों ने निर्दोष सिखों को मार दिया, दूसरी ओर सिखों ने भी कोई कमी नहीं छोड़ी. मारकाट इसलिए नहीं है कि कोई दोषी है, बल्कि इसलिए है क्यों वो हिंदू है या मुसलमान है. किसी व्यक्ति का हिंदू होना या मुसलमान होना एक-दूसरे को मारने के लिए पर्याप्त होता जा रहा है, अगर ऐसी स्थिति हो तो हिंदुस्तान का ईश्वर ही मालिक है.’’

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भगत सिंह आगे इस लेख में लिखते हैं...

‘’...हिंदुस्तान का भविष्य अंधकार में जाता नज़र आता है. इन धर्मों ने देश का बेड़ा गर्क कर दिया है. और पता नहीं ये धार्मिक दंगे कब भारतवर्ष का पीछा छोड़ेंगे. इन दंगों की वजह से ही भारत दुनियाभर में बदनाम हुआ है.’’

‘’….इन धार्मिक दंगों की जड़ खोजें तो आर्थिक ही नज़र आती है. असहयोग के दिनों में कई नेताओं और पत्रकारों ने कुर्बानी दे दी और उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ गई. असहयोग आंदोलन धीमा पड़ा तो नेताओं पर अंधविश्वास होने लगा, जिससे आजकल के बहुत-से सांप्रदायिक नेताओं के धंधे चौपट हो गए’’.

‘’… इस समय कुछ भारतीय नेता मैदान में उतरे हैं, जो धर्म की राजनीति से अलग रहना चाहते हैं. झगड़ा मिटाने का एक इलाज ये भी है और हम इसी का समर्थन करते हैं. अगर धर्म अलग कर दिया जाए, तो राजनीति पर हम सभी इकट्ठा हो सकते हैं. हमारा ख्याल है कि भारत के सच्चे हमदर्द हमारे बताए गए इलाज पर विचार करेंगे.’’ 

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(नोट: भगत सिंह के इस लेख को राहुल फाउंडेशन की किताब ‘भगत सिंह और उनके साथियों के संपूर्ण उपलब्ध दस्तावेज’ ने हिंदी में छापा है.) भगत सिंह से जुड़े कुछ ऐसे ही दिलचस्प किस्सों को आप अगले कुछ दिनों में aajtak.in पर पढ़ सकते हैं.

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