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10 बातों से जानें, कितनों ने रद्द किया गवर्नर का फैसला और अरुणाचल कथा

अरुणाचल प्रदेश विधानसभा का सत्र एक माह पहले बुलाने का राज्यपाल का फैसला संविधान का उल्लंघन है और यह रद्द करने लायक है.

नबाम तुकी नबाम तुकी
लव रघुवंशी
  • नई दिल्ली,
  • 13 जुलाई 2016,
  • अपडेटेड 4:43 PM IST

उत्तराखंड की तरह एक बार फिर केंद्र सरकार को दो महीने के अंदर सुप्रीम कोर्ट से मुंह की खानी पड़ी है. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि केंद्र का अरुणाचल में हस्तक्षेप गलत था, जानें इस पूरे मामले के महत्वपूर्ण बिंदू...

SC का ये पंच

1. सभी पांच न्यायाधीशों ने राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा के फैसले को रद्द करने का निर्णय एकमत से लिया.

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2. विधानसभा की कार्यवाही के संचालन से जुड़ा राज्यपाल का निर्देश संविधान का उल्लंघन है.

3. अरुणाचल प्रदेश विधानसभा का सत्र एक माह पहले बुलाने का राज्यपाल का फैसला संविधान का उल्लंघन है और यह रद्द करने लायक है.

4. राज्यपाल के नौ दिसंबर, 2015 के आदेश की अनुपालना में विधानसभा द्वारा उठाए गए सभी कदम और फैसले लागू दरकिनार करने लायक हैं.

5. अरुणाचल प्रदेश में 15 दिसंबर 2015 से पहले वाली स्थिति कायम रखने के निर्देश दिए गए.

ऐसे शुरू हुआ बवाल

1. राज्य में संवैधानिक संकट की शुरुआत बीते साल तब हुई जब 60 सदस्यों वाली अरुणाचल विधानसभा में तब की कांग्रेस सरकार के 47 विधायकों में से 21 (इनमें दो निर्दलीय) विधायकों ने अपनी ही पार्टी और मुख्यमंत्री के खिलाफ बगावत कर दी.

2. इन 21 ने तुकी को हटाने की मांग की. मामला नबाम तुकी और उनके कट्टर प्रतिद्वंदी कलिखो पुल के बीच है. पुल चाहते थे कि तुकी की जगह उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाया जाए.

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3. प्रदेश में जारी खींचतान को देखते हुए केंद्र सरकार ने 24 जनवरी को राष्‍ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी. इसको फिर कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

4. 19 फरवरी को राज्‍यपाल ने पुल को प्रदेश के सीएम पद की शपथ दिला दी. पुल के साथ बीजेपी के 11 विधायक भी हैं.

5. अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद कलिखो पुल सरकार संकट में आ गई है.

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