
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर अब राजनीतिक दल और उनके नेता अपने सारथी की तलाश में नए सियासी ठिकाने देख रहे हैं, जिससे राज्य में नए सियासी समीकरण भी बन रहे हैं. जेडीयू और एलजेपी में बढ़ती तल्खी के बीच बिहार में दलित चेहरा माने जाने वाले श्याम रजक ने सीएम नीतीश कुमार का साथ छोड़कर आरजेडी का दामन थाम लिया है. नीतीश कुमार अब डैमेज कन्ट्रोल में जुट गए हैं और वो रजक की विदाई से होने वाले नुकसान की भरपाई जीतनराम मांझी के जरिए करना चाहते हैं. ऐसे में मांझी महागठबंधन से नाता तोड़ जल्द ही जेडीयू के साथ हाथ मिला सकते हैं.
श्याम रजक बिहार के दलित समुदाय के दिग्गज नेताओं में से एक हैं. आरजेडी में शामिल होते ही श्याम रजक ने दलित कार्ड खेल दिया है. रजक ने कहा, 'मैंने 2 अप्रैल को दलित उत्पीड़न के खिलाफ विधानसभा में वेल में आकर प्रदर्शन किया था, तभी से मैं उनलोगों की नजर में खटकने लगा था. वे सोच रहे थे कि दलितों की बात करने वाला कैसे आगे बढ़ रहा है. बिहार का कोई ऐसा थाना नहीं है जहां दलितों के साथ हत्या, बलात्कार और छेड़खानी नहीं होती. दलित, पिछड़ा और मुस्लिमों के साथ हो रहे अत्याचार के चलते मैं तड़प रहा था.'
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श्याम रजक आरजेडी में जाकर नीतीश कुमार को दलित विरोधी करार दे रहे हैं. दलित नेता उदय नारायण चौधरी पहले ही जेडीयू से अलग हो चुके हैं. वहीं, एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान इन दिनों नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. ऐसे में दलित समुदाय की नाराजगी चुनाव में जेडीयू-बीजेपी के लिए भारी पड़ सकती है. लेकिन, नीतीश कुमार की रणनीति श्याम रजक और पासवान की काट के तौर पर जीतनराम मांझी को लाने की दिख रही है.
श्याम रजक ने मोर्चा खोला तो जीतनराम मांझी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ढाल बनकर सामने आए हैं. मांझी ने कहा कि नीतीश कुमार दलित विरोधी हैं तो श्याम रजक इतने दिनों तक उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी के रूप में कैसे काम करते रहे. चुनाव के समय जब वो आरजेडी में चले गए हैं और जेडीयू ने उन्हें मंत्रिमंडल एवं पार्टी से निकाल दिया है तब वे इस तरह की बाते कर रहें हैं जिसे सही नहीं कहा जा सकता है. मांझी ने कहा कि श्याम रजक मंत्रिमंडल में इतने दिनों तक लाभ लेने के बाद चुनाव के समय में नीतीश कुमार को दलित विरोधी कह रहें हैं, जिसे उचित नहीं ठहराया जा सकता है.
दरअसल, जीतनराम मांझी की घर वापसी को लेकर जेडीयू की तरफ से पिछले कई महीनों से कवायद हो रही है. जेडीयू चाहती है कि मांझी की पार्टी हम का पूरी तरह से जेडीयू में विलय हो जाए, लेकिन ऐसा नहीं होने की सूरत में मांझी की पार्टी के साथ कुछ सीटों पर समझौते का फॉर्मूला तय किया जा रहा है. माना जा रहा है कि 20 अगस्त को जीतन राम मांझी अपनी पार्टी के सियासी भविष्य को लेकर बड़ा फैसला लेने वाले हैं, क्योंकि उसी दिन उन्होंने अपनी पार्टी की कोर कमेटी की बैठक बुलाई है. 20 अगस्त को मांझी महागठबंधन से अलग और जेडीयू के साथ हाथ मिलाने पर फैसला ले सकते हैं.
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बिहार में अनुसूचित जाति (जिसे आम बोलचाल की भाषा में दलित वर्ग कहा जाता है) की जनसंख्या राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 16 प्रतिशत है. बिहार विधानसभा में कुल आरक्षित सीटें 38 हैं. 2015 में आरजेडी ने सबसे ज्यादा 14 दलित सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि, जेडीयू को 10, कांग्रेस को 5, बीजेपी को 5 और बाकी चार सीटें अन्य को मिली थी. इसमें 13 सीटें रविदास समुदाय के नेता जीते थे जबकि 11 पर पासवान समुदाय से आने वाले नेताओं ने कब्जा जमाया था.
बिहार में चुनाव के साथ ही दलित मतों को साधने की कवायद तेज हो गई है. श्याम रजक के जाने और चिराग पासवान के बगावती तेवर के बाद नीतीश दलित मतों को साधने के लिए मांझी की घर वापसी कराने की कवायद चला रहे हैं. ऐसे में जीतन राम मांझी महागठबंधन से नाता तोड़कर आते हैं तो आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन पर दलित वोट बैंक पर असर पड़ सकता है. महागठबंधन में दलित का चेहरा अभी तक केवल जीतन राम मांझी ही थे, लेकिन तेजस्वी ने श्याम रजक को साथ लाकर उसकी भरपाई करने की कोशिश की है. वहीं, नीतीश कुमार श्याम रजक की विदाई की भरपाई मांझी से करना चाहते हैं. इस दांव में कौन कितना कामयाब होगा यह तो चुनाव में ही पता चल सकेगा.