
कांग्रेस ने गुजरात में अच्छा प्रदर्शन किया, राहुल गांधी के आक्रामक कैंपेन से बहुत फायदा हुआ. जातिगत समीकरण से भी फायदा हुआ. बीजेपी के गढ़ में सेंध भी लगाई. लेकिन सवाल फिर वही उठ जाता है कि हिमाचल प्रदेश में 5 साल की सत्ता विरोधी लहर के सामने घुटने टेक देने वाली कांग्रेस गुजरात में 22 साल की सत्ता विरोधी लहर का भी फायदा नहीं उठा पाई. ऊपर से हार्दिक पटेल जैसे कांग्रेस के साथी ईवीएम का बहाना लेकर आते हैं, तो ये कांग्रेस के अच्छे परफॉर्मेंस का भी मजाक उड़ाने से कम नहीं है.
दरअसल सोमवार सुबह 9 से साढ़े नौ बजे के बीच जैसे ही गुजरात के रुझानों में कांग्रेस आगे हुई. दिल्ली में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का सब्र टूट गया. बैनर-पोस्टर लेकर नारेबाज़ी करते कैमरे के सामने आ गए. लेकिन जब नतीजे एक बार फिर पलटे तो कई घंटे बाद यही नारेबाज़ी और पोस्टर में विलेन ईवीएम बन गई.
हार पर ईवीएम वाला नया बहाना गुजरात को लेकर भी दिखा. लेकिन कांग्रेस के लिए इस हार पर ईवीएम का बहाना बनाना मुश्किल हैं, क्योंकि कांटे की टक्कर ऐसी थी जिसमें कोई भी जीत सकता था. कांग्रेस हारी तो उसकी वजह उसे देखनी पड़ेंगी.
1. हार्दिक पटेल के ज़रिए पाटीदारों की नाराज़गी का पूरा फायदा उठाने में कांग्रेस चूक गई.
2. अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी भी कांग्रेस को बहुमत तक नहीं पहुंचा पाए.
3. पाटीदारों के बीजेपी के गढ़ में सेंध लगाई, लेकिन आदिवासी इलाकों को गंवा बैठे.
4. सत्ता विरोधी माहौल, व्यापारियों की नाराज़गी के बावजूद कांग्रेस उनका विकल्प नहीं बन सकी.
कांग्रेस ने पहले के मुकाबले अच्छा परफॉर्मेंस ज़रूर किया. लेकिन उसके अपने बड़े चेहरे ही अपने ही सीट नहीं बचा पाए. लीडरशिप की कमी कांग्रेस को भारी पड़ गई.
- कांग्रेस के प्रवक्ता और विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे शक्ति सिंह गोहिल कच्छ की मांडवी सीट से 9 हजार वोट से हार गए.
- गुजरात कांग्रेस के एक और बड़े नेता सिद्धार्थ पटेल डभोई सीट से चुनाव हार गए.
- पोरबंदर सीट से कांग्रेस के बड़े नेता अर्जुन मोढवाडिया चुनाव हार गए.
कांग्रेस को राहुल गांधी के आक्रामक कैंपेन से फायदा तो मिला. लेकिन वो फायदा जीत में नहीं बदल सका. जिस तिकड़ी को राहुल गांधी ने चुनावी अस्त्र बनाया था, वो भी सीमित प्रभाव वाली रही. ये अलग बात है कि चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में शामिल हुए ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर राधनपुर सीट से जीत गए. दलित नेता जिग्नेश मेवाणी वडगाम सीट पर कांग्रेस के समर्थन से चुनाव जीत गए. हार्दिक पटेल के साथी ललित वसोया कांग्रेस के टिकट पर धोराजी सीट से जीत गए.
लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस बीजेपी से पीछे रह गई, तो हार्दिक पटेल ईवीएम वाले बहाने के साथ सामने आ गए. अब भले ही हार्दिक पटेल अगला आंदोलन ईवीएम को लेकर करें. लेकिन इस बार वो राहुल गांधी के कैंपेन को पूरा फायदा पहुंचा नहीं पाए. कम से कम 5 साल के लिए कांग्रेस गुजरात में और सत्ता से दूर हो गई. दिलचस्प बात ये रही कि जिस तरह से गुजरात में नोटा के आंकड़े आए. उससे भी संकेत मिलते हैं कि बीजेपी के विकल्प को तौर पर कांग्रेस को गुजरात में खुद को स्थापित करने में बहुत समय लगेगा.
गुजरात में करीब 2 फीसदी वोट नोटा के पक्ष में पड़े हैं, जहां कांटे की टक्कर रही, वहां नोटा बहुत अहम हो गया. गुजरात में करीब 5 लाख 51 हजार वोट नोटा को पड़े. नोटा के साथ निर्दलीयों को भी करीब 13 लाख वोट मिले.
साफ है कि माहौल के बावजूद कांग्रेस गुजरात की सोच में सत्ता में आने के लिए फिट नहीं हुई, जबकि गुजरात सरकार के पांच बड़े मंत्री चुनाव हारे हैं. जिससे नाराज़गी साफ दिखती है.
- कैबिनेट मंत्री आत्माराम परमार और चिमनभाई सपारिया चुनाव हारे.
- मंत्री शंकर चौधरी, केशाजी चौहान और शब्दशरण तड़वी चुनाव हारे.
- पीएम मोदी के होमटाउन वडनगर की ऊंझा सीट कांग्रेस ने जीत ली.
गुजरात जीतने के ज़ोर में कांग्रेस हिमाचल प्रदेश भी बुरी तरह गंवा बैठी. हालांकि ये दिलचस्प रहा कि हिमाचल जीतने के बावजूद बीजेपी के सीएम कैंडिडेट प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए. अब बीजेपी को नया सीएम चुनना होगा. कांग्रेस के लिए यही कहा जा सकता है कि हिमाचल में उससे पांच साल का सत्ता विरोधी माहौल संभाला नहीं जा सका, जबकि 22 साल के सत्ता विरोधी माहौल के बावजूद बीजेपी ने गुजरात निकाल लिया. ये ज़रूर है कि गुजरात में कांग्रेस का परफॉर्मेंस आने वाले वक्त में विपक्ष में जान डालने वाला है.