
अगर विधानसभा चुनावों के नतीजों जैसे रूझान 2019 आम चुनाव तक भी जारी रहते हैं तो बीजेपी को राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीती 62 लोकसभा सीटों में से 32 को खोना पड़ सकता है.
हिन्दी बेल्ट के इन तीन राज्यों ने 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को भरपूर समर्थन दिया. इन तीन राज्यों में बीजेपी ने करीब-करीब सभी जगह बेहतरीन प्रदर्शन दिखाते हुए 65 में से 62 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाबी पाई थी.
2019 चुनाव में लड़ाई की तस्वीर
इंडिया टुडे की डेटा टीम ने हिन्दी बेल्ट की प्रत्येक विधानसभा सीट के रूझानों को लोकसभा सीटों की तस्वीर में ढाल कर देखा. ये जानने के लिए कि 2019 आम चुनाव में लड़ाई की तस्वीर कैसी रहेगी. अध्ययन से जो निष्कर्ष निकले वो बीजेपी समर्थकों के लिए सुनहरी तस्वीर पेश करने वाले नहीं है. हालांकि साथ ही यह तथ्य भी है कि ये विधानसभा चुनाव मोटे तौर पर स्थानीय मुद्दों पर लड़े गए और लोकसभा चुनाव में अहम मुद्दे काफी अलग हो सकते हैं.
यद्यपि विधानसभा चुनाव नतीजों के हिसाबी विश्लेषण से ये जानने में आसानी हो सकती है कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को किन चुनौतियों का सामना है.
इंडिया टुडे की गणना के मुताबिक 2019 लोकसभा चुनाव में इन तीन राज्यों से कांग्रेस की सीटें जो पिछले चुनाव में 3 थी, बढ़कर 35 तक पहुंच सकती हैं. वहीं बीजेपी की सीटों की संख्या 62 से घट कर 30 पर आ सकती है.
राजस्थान से बीजेपी को ज्यादा नुकसान
इसी डेटा का राज्यवार विश्लेषण किया जाए तो बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान राजस्थान में हो सकता है. यहां पार्टी ने 2014 में सभी 25 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी.
11 दिसंबर को मतगणना के नतीजों के मुताबिक बीजेपी को राजस्थान में अगले लोकसभा चुनाव में 13 सीटों पर ही जीत मिल सकती है. यानि बीजेपी को 12 लोकसभा सीटों का नुकसान अकेले राजस्थान में हो सकता है. इसके ये मायने भी लगाए जा सकते हैं कि कांग्रेस जो पिछले लोकसभा चुनाव में राजस्थान में खाता भी नहीं खोल पाई थी, 2019 आम चुनाव में 12 सीटों पर कामयाबी पा सकती है.
हिन्दी बेल्ट की जंग: बीजेपी
2014 लोकसभा | 2019 अनुमान | |
मध्य प्रदेश | 27 | 16 (-11) |
राजस्थान | 25 | 13 (-12) |
छत्तीसगढ़ | 10 | 1 (-9) |
कुल | 62 | 30 (-32) |
कांग्रेस जोधपुर, बाड़मेर, बीकानेर, चुरू, झुंझनूं, जयपुर देहात, अलवर, भरतपुर, करौली-धौलपुर, दौसा, टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा सीटों पर बढ़त हासिल किए दिखती है वहीं बीजेपी जालौर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा, झालावाड़ बारान में आगे दिखती है.
कम हो रहा बीजेपी का जमीनी आधार
मध्य प्रदेश में भी बीजेपी का जमीनी आधार कम होता दिख रहा है लेकिन राजस्थान जितना नहीं. 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने मध्य प्रदेश में 29 में से 27 सीटों पर जीत हासिल की थी. इंडिया टुडे की डेटा टीम की ओर से की गई गणना के मुताबिक बीजेपी मध्य प्रदेश में 11 लोकसभा सीटों से हाथ धो सकती है. बीजेपी ने 2014 में जो 27 लोकसभा सीटें जीती थीं, उनमें से अब 16 सीटें ही उसके हाथ अगले आम चुनाव में लग सकती हैं.
कांग्रेस को इस विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की 12 लोकसभा सीटों पर बढ़त हासिल हुई. इसका 2014 में मध्य प्रदेश में महज 2 सीटों पर ही कामयाबी पाने वाली कांग्रेस को अगले आम चुनाव में 10 और लोकसभा सीट का फायदा होने जा रहा है. कांग्रेस को मुरैना, भिंड, ग्वालियर, शहडोल, मांडला, छिंदवाड़ा, देवास, रतलाम, धार, खरगौन और बैतुल में बढ़त नजर आ रही है.
छत्तीसगढ़ में भी मुश्किल में बीजेपी
वहीं बीजेपी सागर, टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा, सीधी, बालाघाट, होशंगाबाद, विदिशा, भोपाल, उज्जैन, मंदसौर, इंदौर और खंडवा में बढ़त दिखाई देती है.
छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी को अगले आम चुनाव में मुश्किल लड़ाई का सामना करना पड़ सकता है. 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में से 10 पर जीत हासिल हुई थी. 11 दिसंबर को मतगणना वाले रूझान के मुताबिक 2019 लोकसभा चुनाव में तस्वीर उलट सकती है. बीजेपी महज 1 लोकसभा सीट ही हासिल कर सकती है तो कांग्रेस राज्य में 10 लोकसभा सीटों पर कामयाबी हासिल कर सकती है. बीजेपी के लिए छत्तीसगढ़ में बिलासपुर की सीट ही सुरक्षित नजर आ रही है.
हिन्दी बेल्ट की जंग: कांग्रेस
2014 लोकसभा | 2019 अनुमान | |
मध्य प्रदेश | 2 | 12 (+10) |
राजस्थान | 0 | 12 (+12) |
छत्तीसगढ़ | 1 | 10 (+9) |
कुल | 3 | 33 (+3) |
बीजेपी की बड़ी उम्मीद यही होगी कि विधानसभा चुनावों के नतीजे का लोकसभा चुनाव पर असर सीमित ही रहे हैं क्योंकि विधानसभा और लोकसभा चुनावों के परिदृश्य अलग हैं. छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकारों को तीन-तीन कार्यकाल की एंटी-इंक्मबेंसी (सत्ता विरोधी रूझान) का सामना था, जबकि मोदी सरकार केंद्र में एक कार्यकाल से ही सत्ता में है.
बीजेपी के रणनीतिकार तर्क देते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन मुख्यमंत्रियों से कहीं ज्यादा लोकप्रिय हैं जो मुख्यमंत्री अभी सत्ता से बाहर हुए. ये बात एक्सिस माई इंडिया की ओर से इंडिया टुडे ग्रुप के लिए किए गए पॉलिटिकल स्टॉक एक्सचेंज (PSE)से भी सामने आई.
मुख्यमंत्री से ज्यादा लोकप्रिय प्रधानमंत्री
राजस्थान में सितंबर के महीने में की गई ट्रैकिंग के मुताबिक सिर्फ 35% ही प्रतिभागी वसुंधरा राजे को राज्य की मुख्यमंत्री के तौर पर आगे भी देखना चाहते थे. वहीं दूसरी ओर 57% प्रतिभागियों का कहना था कि वे 2019 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को ही प्रधानमंत्री के तौर पर एक और कार्यकाल देने के पक्ष में हैं.
यहां तक कि मध्य प्रदेश जैसे राज्य में भी जहां मुख्यमंत्री खासे लोकप्रिय रहे, वहां भी प्रधानमंत्री की लोकप्रियता मुख्यमंत्री से ज्यादा है. 46% प्रतिभागियों ने शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री के तौर पर एक और कार्यकाल दिए जाने के पक्ष में राय जताई, वहीं नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर एक और कार्यकाल देने की हिमायत करने वाले प्रतिभागी 56% रहे.
छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री की लोकप्रियता और भी ज्यादा दिखी. वहां 59% प्रतिभागी नरेंद्र मोदी को ही अगले कार्यकाल में प्रधानमंत्री देखना चाहते हैं. वहीं डॉ. रमन सिंह को छत्तीसगढ़ का अगला मुख्यमंत्री देखने के पक्ष में राय जताने वाले 41% ही रहे.
इन राज्यों में मुख्यमंत्री पद के लिए बीजेपी के उम्मीदवार और प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में न्यूनतम अंतर 10% और अधिकतम 22% रहा. इसके मायने हैं कि प्रधानमंत्री की छवि और कामकाज बीजेपी को लोकसभा चुनाव में विधानसभा चुनाव की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करने में मदद करेंगे.
हिन्दी बेल्ट की जंग
2014 लोकसभा | 2019 अनुमान | |
बीजेपी | 62 | 30 (-32) |
कांग्रेस | 3 | 33 (+30) |
बीजेपी के लिए 2014 आम चुनाव के नतीजों ने नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के शिखर को दर्शाया था. वहीं 11 दिसंबर की मतगणना के नतीजे संकेत देते हैं कि 2019 में पार्टी का ग्राफ कितना नीचे आ सकता है. वास्तविक अर्थों में कहा जाए तो 2014 के शिखर को 5 साल तक सत्ता में रहने के बाद दोहराने की संभावना बहुत कम है. बीजेपी हिन्दी बेल्ट में अपने ग्राफ को नीचे जाने से किस हद तक रोक पाने में सक्षम रहती है, इसी पर निर्भर करेगा कि पार्टी अपने मजबूत गढ़ों से बाहर वाले क्षेत्रों में 2019 के लिए कितना उभार पा सकती है.