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कावेरी जल विवाद: SC ने कर्नाटक को दी थोड़ी राहत, कहा- 12 हजार क्यूसेक पानी ही छोड़ा जाए

सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी जल विवाद पर सोमवार को 5 सितंबर के अपने फैसले में संसोधन करते हुए कर्नाटक को थोड़ी राहत दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु के लिए कर्नाटक कावेरी नदी से अब 15 हजार क्यूसेक की जगह 12 हजार क्यूसेक ही पानी छोड़े.

सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी नदी को लेकर अपने फैसले में किया बदलाव सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी नदी को लेकर अपने फैसले में किया बदलाव
रोहित गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 12 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 11:16 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी जल विवाद पर सोमवार को 5 सितंबर के अपने फैसले में संसोधन करते हुए कर्नाटक को थोड़ी राहत दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु के लिए कर्नाटक कावेरी नदी से अब 15 हजार क्यूसेक की जगह 12 हजार क्यूसेक ही पानी छोड़े.

कनार्टक ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी कि उसे 15 हजार क्यूसेक की जगह 1 हजार क्यूसेक ही पानी छोड़ने का निर्देश दिया जाए, जिसे अदालत ने नहीं माना. सुप्रीम कोर्ट ने पहले कर्नाटक को तमिलनाडु के लिए 15 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश दिया था.

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सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को अपने फैसले में कहा कि लॉ एंड ऑर्डर की स्थ‍िति को अदालत का आदेश लागू न कराने के लिए आधार नहीं बनाया जा सकता.

जानें क्या है पूरा विवाद...

  1. कावेरी जल विवाद अंग्रेजों के समय से चला आ रहा है. 1924 में इन दोनों के बीच समझौता हुआ, लेकिन बाद में विवाद में केरल और पुडुचेरी भी शामिल हो गए जिससे यह और मुश्किल हो गया.
  2. 1972 में गठित एक कमेटी की रिपोर्ट के बाद 1976 में कावेरी जल विवाद के सभी चार दावेदारों के बीच एग्रीमेंट किया गया, जिसकी घोषणा संसद में हुई. इसके बावजूद विवाद जारी रहा.
  3. 1986 में तमिलनाडु ने अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम (1956) के तहत केंद्र सरकार से एक ट्रिब्यूनल की मांग की.
  4. 1990 में ट्रिब्यूनल का गठन हो गया. ट्रिब्यूनल ने फैसला किया कि कर्नाटक की ओर से कावेरी जल का तय हिस्सा तमिलनाडु को मिलेगा.
  5. कर्नाटक मानता है कि ब्रिटिश शासन के दौरान वह रियासत था जबकि तमिलनाडु ब्रिटिश का गुलाम, इसलिए 1924 का समझौता न्यायसंगत नहीं.
  6. कर्नाटक का कहना है कि तमिलनाडु की तुलना में वहां कृषि देर से शुरू हुआ. वह नदी के बहाव के रास्ते में पहले है, उसे उसपर पूरा अधिकार है.
  7. तमिलनाडु पुराने समझौतों को तर्कसंगत बताते हुए कहता है, 1924 के समझौते के अनुसार, जल का जो हिस्सा उसे मिलता था, अब भी वही मिले.
  8. केंद्र जून 1990 को न्यायाधिकरण का गठन किया और अब तक इस विवाद को सुलझाने की कोशिश चल रही है.

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