
अर्थशास्त्र के महान विद्वान आचार्य चाणक्य ने मानव जीवन को सुगम बनाने के लिए कई नीतियों का निर्माण किया. विष्णुगुप्त और कौटिल्य के नाम से मशहूर चाणक्य ने चाणक्य नीति में धन और लक्ष्मी के पसंदीदा जगह के बारे में भी उल्लेख किया है.
अपनी चाणक्य नीति के तीसरे अध्याय में वो इस बात का जिक्र करते हैं कि लक्ष्मी कैसे घरों में रहना पसंद करती हैं. वो इस अध्याय के 21वें श्लोक में इसका उल्लेख करते हैं.
मूर्खा यत्र न पुज्यन्ते धान्यं यत्र सुसञ्चितम् ।
दाम्पत्ये कलहो नास्ति तत्र श्रीः स्वयमागता ।।
इस श्लोक में चाणक्य ने कहा है कि लक्ष्मी जी ऐसे घर में नहीं रहती है जहां मुर्ख व्यक्ति का आदर-सम्मान होता हो. चाणक्य मानते हैं कि ऐसे लोग जो बिना स्थिति को देखे और समझे बोलते हैं, हर समय नकारात्मकता से भरे होते हैं और बहस करते हैं, वो मुर्ख होते हैं. ऐसे लोग जिस भी घर में होते हैं वहां लक्ष्मी का वास नहीं होता.
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इसके अलावा श्लोक में चाणक्य कहते हैं कि जिस घर में अन्न या अनाज का सम्मान होता है, लक्ष्मी वहां वास करती हैं. चाणक्य के मुताबिक अनाज का अच्छे से भंडारण किया जाना आवश्यक है, यह लक्ष्मी जी को भी भाता है. जिस घर में खाने चीजों का भंडारण नहीं किया जाता इस तरह के घर से लक्ष्मी जी हमेशा दूर ही रहती हैं.
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पति-पत्नी आपस में लड़ाई भी लक्ष्मी जी को पसंद नहीं है. जिस घर में महिला का सम्मान नहीं होता वहां भी लक्ष्मी वास नहीं करती हैं. जो पति-पत्नी प्रेम, त्याग के साथ एक दूसरे की इज्जत करते हैं वहां लक्ष्मी जी स्वयं चली आती हैं. वहीं, क्लेश वाले घरों से वो दूर ही रहती हैं.