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चुनाव सुधार और राजनीतिक कमाई पर लगाम से रुकेगा कालाधन!

ईडी ने इस बीच बहुजन समाज पार्टी के एक खाते में 104 करोड़  रुपये जमा होने और मायावती के भाई के बेनामी संपत्ति की जांच शुरू की है.

नोटबंदी नहीं राजनीतिक दलों की कमाई पर लगाम से रुकेगा कालाधन नोटबंदी नहीं राजनीतिक दलों की कमाई पर लगाम से रुकेगा कालाधन
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 27 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 12:16 PM IST

नोटबंदी से कालेधन पर लगाम लगेगी, इस उम्मीद पर बीते 48 दिनों से जारी कवायद पर सवाल उठ रहे हैं. देश में कालेधन का अंबार है तो इसका श्रोत सरकारी महकमा, सरकार कर्मचारी और देश के छोटे-बड़े कारोबारी हैं. इन सब को जोड़ने वाली कड़ी खुद देश के राजनेता और उनके राजनीतिक दल हैं. लिहाजा कालेधन पर लगाम लगाने के लिए है जरूरी है कि पहले राजनीतिक दलों की कमाई को नजरअंदाज करने वाले कानूनी प्रावधानों को रोकना होगा. ईडी ने इस बीच बहुजन समाज पार्टी के एक खाते में 104 करोड़  रुपये जमा होने और मायावती के भाई के बेनामी संपत्ति की जांच शुरू की है.

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- देश में नोटबंदी के जरिए कालेधन पर लगाम लगाने की कवायद के बीच चुनाव आयोग ने सरकार से मांग की है कि राजनीतिक दलों को चंदे में मिलने वाली रकम पर से पर्दा उठाने की जरूरत है. बिना इस कवायद के देश से कालेधन को खत्म करने की सभी कोशिश विफल होंगी.

- देश का कानून राजनीतिक दलों की हो रही कमाई पर इनकम टैक्स से पूरी तरह से छूट देता है. राजनीतिक दलों को दी गई इस छूट के पीछे इनकम टैक्स एक्ट 1961 का सेक्शन 13 ए है. इस कानून के मुताबिक राजनीतिक दलों को मकान और संपत्ति, धन-लाभ अथवा घोषित और गुमनाम चंदे से हुई कमाई पर टैक्स नहीं लगाया जाएगा.

- राजनीतिक दलों के लिए बना कानून रिप्रेजेंटशन ऑफ पीपुल एक्ट 1951 का सेक्शन 29सी राजनीतिक दलों को चंदे में मिलने वाली रकम पर महज आंशिक प्रतिबंध लगाता है. यह कानून कहता है कि किसी भी राजनीतिक दल को 20,000 रुपये से अधिक प्राप्त गुमनाम चंदे का विवरण चुनाव आयोग को देना होगा. इस रकम से कम प्राप्त हुआ चंदा राजनीतिक दलों के लिए महज अन्य आय ही रहेगी.

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- अब चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों द्वारा कालेधन के इस्तेमाल पर लगाम लगाने की नियत से अपील किया है कि किसी भी राजनीतिक दल को 2,000 रुपये से अधिक गुमनाम चंदा प्राप्त करने की इजाजत नहीं होनी चाहिए.

- चुनाव आयोग की यह पेशकश केन्द्र सरकार द्वारा लोकसभा को यह सूचना कि नोटबंदी के बाद किसी भी राजनीतिक दल को बैंक में जमा कराए गए 500 और 1000 रुपये की करेंसी की जांच नहीं होगी के बाद आया.

- अब मौजूदा कानून और नोटबंदी के बाद प्रतिबंधित 500 और 1000 रुपये की करेंसी को जमा कराने के लिए आए निर्देशों के मुताबिक कोई भी रजिस्टर्ड राजनीतिक दल आसानी से कितना भी पैसा चाहे बैंक में जमा करा सकते है.

- राजनीतिक दलों द्वारा जमा कराई गई प्रतिबंधित करेंसी यदि 20,000 रुपये से कम है तो उन्हें इसका ब्यौरा चुनाव आयोग को देने की जरूरत नहीं है. वहीं वह करोड़ों रुपये की रकम को भी यदि बतौर चंदा जमा कराते हैं तो उनपर टैक्स नहीं लगेगा. इनकम टैक्स कानून उनकी पूरी आय को टैक्स फ्री कर चुका है. यहीं राजनीतिक दलों का कालेधन से सीधा कनेक्शन होता है.

- नोटबंदी के ऐलान के बाद देश में जिसका भी कालाधन बैंक में नहीं पहुंच सकता है उनके लिए इसे राजनीतिक दलों को गुप्तदान देने का सबसे बहतर विकल्प है. वह चाहें तो इस चंदे के एवज में सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों से अपने हित में फैसला करा ले या फिर चंदे में दी गई रकम के बदले कुछ पैसे नई करेंसी में वापस ले लें.

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- राजनीतिक दलों को दी गई इस छूट के पीछे इनकम टैक्स एक्ट 1961 का सेक्शन 13 ए है. इस कानून के मुताबिक राजनीतिक दलों को मकान और संपत्ति, धन लाभ अथवा चंदे से हुई कमाई पर टैक्स नहीं लगाया जाता.

बीते 48 दिनों की नोटबंदी की कवायद से यह साफ है कि इससे राजनीतिक दलों को कोई नुकसान नहीं हुआ है. वह आज भी देश में कालेधन के श्रोत को छिपाने और उसे आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र हैं. अब चुनाव आयोग भी मान रहा है कि राजनीतिक दलों को मिली रही इस छूट में पारदर्शिता लाने की जरूरत है. क्या यह मोदी सरकार की चूक नहीं कि उसे नोटबंदी की कवायद शुरू करने से पहले अपने घर (राजनीतिक दलों) को दुरुस्त करने की जरूरत थी? क्या नोटबंदी से पहले राजनीतिक दलों द्वारा कालेधन को संचित करने के रास्तो को बंद करने की जरूरत नहीं थी?

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