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छत्तीसगढ़: 110 रुपये के राशन के लिए 110 KM का पैदल सफर करने को मजबूर लोग

छत्तीसगढ़ के बस्तर के दंतेवाड़ा के दर्जनों गांव के लोगों को सरकारी राशन के लिए 110 किलोमीटर तक का सफर तय करना पड़ता है. ये बीजेपी शासित छत्तीसगढ़ के वो गांव हैं, जहां पहुंचने के लिए आवागमन का कोई रास्ता तक नहीं है

राज्य मानवाधिकार आयोग की ओर से जारी नोटिस राज्य मानवाधिकार आयोग की ओर से जारी नोटिस
सुनील नामदेव
  • रायपुर,
  • 02 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 11:49 PM IST

छत्तीसगढ़ के बस्तर के दंतेवाड़ा के दर्जनों गांव के लोगों को सरकारी राशन के लिए 110 किलोमीटर तक का सफर तय करना पड़ता है. ये बीजेपी शासित छत्तीसगढ़ के वो गांव हैं, जहां पहुंचने के लिए आवागमन का कोई रास्ता तक नहीं है. लिहाजा ग्रामीण 110 रुपये के अनाज के लिए 110 किलोमीटर का सफर पदल ही तय करते हैं. इस पर NHRC ने राज्य सरकार को नोटिस दिया है और पूछा है कि सूबे में ऐसे कितने गांव हैं, जहां लोगों को राशन के लिए सैकड़ों किलोमीटर चलना होता है.

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NHRC ने मामले में चार हफ्ते में सरकार से जवाब मांगा है. ग्रामीणों को अनाज के लिए या तो जिला मुख्यालय या फिर ब्लॉक मुख्यालय तक जाना होता है, जहां आने-जाने के लिए करीब 110 किलोमीटर का लंबा सफर तय करना पड़ता है. ग्रामीणों ने इस मामले की शिकायत NHRC से की थी. इन ग्रामीणों को इतनी लंबी दूरी तय करने पर ही 35 किलो चावल 35 रुपये,  दो  किलो शक़्कर 26  रुपेय, दो लीटर मिट्टी तेल 36  रुपये, दो किलो नमक दो रुपये और एक किलो चना 11 रुपये में मिलता है.

इस तरह से PDS के जरिए कुल 110 रुपये का राशन मिलता है और इसके लिए ग्रामीणों को 110 किलोमीटर का सफर पैदल ही तय करना पड़ता है. यह कोई कहानी नहीं, बल्कि हकीकत है...छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा के चिरमुर, बारेकाकलेड़ और सेंड्रा समेत उन दर्जनों गांवों की, जहां सरकारी राशन के लिए आदिवासियों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती  है. सरकार इन आदिवासियों को PDS की दुकानों के जरिये रियायती दरों पर अनाज मुहैया कराती है, लेकिन इस अनाज को पाने के लिए आदिवासियों को अपना खून पसीना एक करना पड़ता है.

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अगर गांव के आस-पास ही सरकारी राशन दुकाने खुल जाए, तो इन आदिवासियों को काफी सुविधा हो सकती है. ग्रामीण कई बार सरकारी अफसरों का ध्यान इस ओर दिलाने की कोशिश भी कर चुके हैं, लेकिन आजतक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. आखिरकार तंग आकर ग्रामीणों ने NHRC से गुहार लगाई है. इसके बाद NHRC ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर ग्रामीणों की फरियाद सुनने के लिए कहा और यह भी कहा की चार हफ्ते के भीतर इसका जवाब दिया जाए. नोटिस में यह भी कहा गया है कि सूबे में और भी ऐसे न जाने कितने गांव हैं, जहां इस तरह के हालात हैं. उन्हें भी चिन्हित किया जाए.

ग्रामीणों को कभी चट्टानी मार्ग से तो कभी पहाड़ी चढ़कर और कभी मैदानी इलाके का सफर करके राशन दुकानों की ओर बढ़ना होता है. NHRC का नोटिस छत्तीसगढ़ सरकार को मिलने के बाद उन गांव की खोजबीन की जाएगी, जहां आज भी लोग सिर्फ 110 रुपये के राशन के लिए 110 किलोमीटर का पैदल सफर तय करते हैं. मामले में सूबे के खाद्य मंत्री की दलील है कि इसकी जल्द ही जांच कराई जाएगी.

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के एक बड़े हिस्से में नक्सलियों की हुकूमत चलती है. यहां सिर्फ शहर मुख्यालयों में ही सड़कें हैं. जंगलों के भीतर बसे दर्जनों गांव में आवागमन के लिए कोई पक्की सड़क नहीं है. ग्रामीणों को घंटों पैदल चलकर सफर करना पड़ता है. कई बार इन ग्रामीणों को शाम और रात होने पर जंगल की ही किसी सुरक्षित पुल-पुलिया में शरण लेनी पड़ती है, ताकि वो अपने अगले पड़ाव की ओर बढ़ सकें. उनका अगला पड़ाव सरकारी राशन दुकान या फिर गांव में अपना घर होता है.

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