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छत्तीसगढ़ में पुलिस कर्मियों के परिजनों की सरकार के खिलाफ बगावत और हड़ताल का असर दिखने लगा है. कई वर्षों बाद पुलिस कर्मियों के कल्याण और उन्हें उनका वाजिब हक़ दिलाने के लिए पुलिस मुख्यालय में आला पुलिस अफसरों की बैठक हुई.
हालांकि तमाम मामलों में बड़ी कंजूसी के साथ पुलिस मुख्यालय ने अपनी भूमिका अदा की, लेकिन जो भी हो....आला पुलिस अफसरों को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि आखिर क्यों उनका पुलिस बल सरकार के रवैये से नाखुश है.
रायपुर स्थित पुलिस मुख्यालय में छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद पहली बार बैठक आयोजित की गई. इस बैठक में एडीजीपी, आईजी और बड़ी संख्या में पुलिस अधीक्षकों समेत बटालियन के कमांडेट शामिल रहे. करीब चार घंटे तक चली मैराथन बैठक के बाद पुलिस कर्मियों को खुश करने के लिए चंद फैसले लिए गए, जो इस प्रकार हैं-
ये फैसले लिए गए
एडीजीपी संजय पिल्ले के मुताबिक दुर्ग और बिलासपुर में पुलिस कर्मियों के मनोरंजन के लिए सामुदायिक केंद्र बनाए जाएंगे. पुलिस कर्मियों की परोपकार निधी को 50 हजार से बढ़ाकर एक लाख किया गया. परोपकार निधि आमतौर पर पुलिस कर्मियों की सामान्य मौत के दौरान उनके परिजनों को दफन कफन के लिए दी जाती है, जबकि शहीद पुलिस कर्मियों के मामले में यह रकम एक लाख से बढाकर दो लाख की गई है.
इसके साथ ही शहीद पुलिस कर्मियों के परिवार को दी जाने वाली सहायता राशि चार लाख से बढाकर पांच लाख की गई है. प्राकृतिक आपदा और बीमारी के दौरान संकट निधि से दी जाने वाली रकम को चालीस हजार से बढ़ाकर एक लाख की गई है. पुलिस कर्मियों के बच्चो को दी जाने वाली शिक्षा निधि में भी तीन हजार से लेकर पच्चीस हजार तक की बढ़ोत्तरी की गई है. पुलिस कर्मियों की टोपी में बदलाव को लेकर भी चर्चा हुई है. सैद्धांतिक रूप से यह स्वीकार किया गया है कि ट्रैफिक में तैनात पुलिस कर्मियों की रैग्जीन की टोपी में बदलाव किया जाएगा.
अहम मुद्दों पर नहीं हुआ कोई फैसला
पुलिस कल्याण समिति और परामर्शदात्री परिषद की बैठक में उन ठोस मुद्दों पर कोई पुख्ता फैसला नहीं हुआ, जिसे लेकर पुलिस कर्मियों के परिजनों को सड़क में उतरना पड़ा. हाल ही में पुलिस कर्मियों के परिजनों के आंदोलन को कुचलने के लिए सरकार को कड़ी मशक्क्त करनी पड़ी थी. इस दौरान उठाए गए मुद्दों मसलन काम के घंटे और साप्ताहिक अवकाश पर पुलिस मुख्यालय ने कोई ऐलान नहीं किया. अब तक पुलिस कर्मियों के काम के घंटे नहीं तय हो पाए हैं और न ही उनके साप्ताहिक अवकाश पर कोई गौर फरमाया गया है.
पुलिस कर्मियों के वेतन भत्ते में बढ़ोत्तरी की मांग सिर्फ जुबानी जमा खर्च रकम की तरह रही. इस पर बैठक में सामान्य बातचीत हुई और इस संबध में प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजने का फैसला लिया गया. जबकि उम्मीद की जा रही थी कि पुलिस के आला अफसर वेतन-भत्तों में बढ़ोत्तरी का ब्योरा लेकर बैठेंगे, लेकिन वो बगैर तैयारी के इस बैठक में शामिल हुए. यही हाल पुलिस कर्मियों के मोबाइल, पेट्रोल, अलाउंस और किट को लेकर भी रहा.
नीतिगत फैसले नहीं हुए
इस बैठक में कोई भी नीतिगत फैसला नहीं हुआ. पुलिस कर्मियों की ढेरो शिकायतों के बावजूद जीर्ण और टूटे-फूटे मकानों का ब्योरा लेकर कोई भी अफसर बैठक में नहीं आया. सेना और केंद्रीय पुलिस कर्मियों को मुहैया होने वाली कैंटीन की तर्ज पर पुलिस कर्मियों को कैंटीन की सुविधा मुहैया कराने को लेकर भी बैठक में कोई चर्चा नहीं हुई, जबकि यह प्रस्ताव कई वर्षों से पुलिस मुख्यालय में विचाराधीन है.
कई पुलिस महानिरीक्षकों ने अपने रेंज में पुलिस कैंटीन की सुविधा मुहैया कराने का पूरा खाका भी खींच रखा है. इस मामले में पुलिस मुख्यालय को सिर्फ अपनी मुहर लगानी थी, लेकिन यह मामला चर्चा तक में शामिल नहीं किया गया. बताया जा रहा है कि पुलिस मुख्यालय में आयोजित यह बैठक महज खानापूर्ति के लिए थी. बगैर एजेंडा के आयोजित बैठक का जो हाल होता है, इसका भी वही हुआ.
बहरहाल, पुलिस मुख्यालय में आयोजित इस बैठक से पुलिस कर्मियों को जो मिला है, वो ऊंट में मुंह में जीरा के बराबर ही है. जैसे कि उम्मीद की जा रही थी कि पुलिस कर्मियों के परिजनों की आंदोलनकारी मांगों पर कोई ठोस विचार होगा. ऐसी किसी मांगों पर कोई फैसला नहीं होने से माना जा रहा है कि पुलिस कर्मियों और उनके परिजनों का आंदोलन फिर भड़क सकता है. फिलहाल इसको लेकर साफ तौर पर प्रतिक्रिया नहीं आई है.