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चित्रकूट में जीत से उठा सवाल, क्या लौटेंगे कांग्रेस के अच्छे दिन?

2018 में मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले चित्रकूट उपचुनाव को शिवराज सिंह के लिटमस टेस्ट के तौर पर देखा जा रहा था. इस टेस्ट में बीजेपी को मिली हार और कांग्रेस की जीत को पार्टी के समर्थक राज्य में बदलाव के संकेत मान रहे हैं.

कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 13 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 2:02 PM IST

मध्य प्रदेश के चित्रकूट विधानसभा उपचुनाव की सियासी बाजी जीतने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूरी ताकत लगा दी थी, लेकिन नतीजा शून्य रहा. कांग्रेस ने बीजेपी और शिवराज सिंह चौहान के अरमानों पर पानी फेरते हुए इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा. बीजेपी की यह हार राज्य में पिछले 14 साल से सत्ता से दूर कांग्रेस के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है.

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बता दें कि 2018 में मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले चित्रकूट उपचुनाव को शिवराज सिंह के लिटमस टेस्ट के तौर पर देखा जा रहा था. इस टेस्ट में बीजेपी को मिली हार और कांग्रेस की जीत को पार्टी के समर्थक राज्य में बदलाव के संकेत मान रहे हैं.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस पिछले 14 साल से सत्ता का वनवास झेल रही है. पिछले तीन विधानसभा चुनाव में बीजेपी यहां से लगातार जीत हासिल करती आ रही है. मध्य प्रदेश में ठीक एक साल बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस को चित्रकूट में मिली जीत ने पस्त पड़े पार्टी कार्यकर्ताओं के हौसले को बढ़ा दिया है. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पार्टी की इस जीत को बदलाव का एक संकेत कहा है और लोगों की पार्टी में निष्ठा के लिए धन्यवाद जताया. सुरजेवाला ने ट्वीट किया कि हवा में बदलाव की बयार है.

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2013 के विधानसभा चुनाव में चित्रकूट सीट पर कांग्रेस को 45 हजार 913 वोट मिले थे, तो वहीं बीजेपी को 34 हजार 943 वोट मिले थे. इस तरह कांग्रेस ने बीजेपी को 10 हजार 970 वोटों से हराया था. चित्रकूट के उपचुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को इस बार और भी बड़े अंतर से हराया है. कांग्रेस उम्मीदवार नीलांश चतुर्वेदी को 66 हजार 810 वोट मिले वहीं बीजेपी ने शंकरदयाल त्रिपाठी को 52 हजार 477 वोट मिले. इस तरह कांग्रेस बीजेपी से 14333 वोट से जीती.

बता दें कि बीजेपी ने चित्रकूट उपचुनाव की सियासी जंग जीतने के लिए हरसंभव कोशिश की. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चित्रकूट के उपचुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर चल रहे थे. यही वजह है कि इसे शिवराज सिंह की निजी हार के तौर पर देखा जा रहा है. उन्होंने चित्रकूट सीट कांग्रेस से छीनने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी. मुख्यमंत्री खुद 3 दिन चित्रकूट में रहे और 60 से ज्यादा जनसभाएं कीं. अदिवासी प्रेम दिखाने के लिए एक रात कुर्रा गांव में एक अदिवासी के घर भी रुके, लेकिन कुर्रा गांव में भी बीजेपी को कांग्रेस के मुकाबले काफी कम वोट मिले. 

शिवराज ही नहीं बल्कि बीजेपी के एक दर्जन से ज्यादा मंत्री चित्रकूट में डेरा डाले रहे. इसमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर केशव मौर्या तक शामिल रहे. चित्रकूट उपचुनाव में प्रचार करने के साथ-साथ योगी ने चित्रकूट के कामदगिरी मंदिर की पांच किलोमीटर की परिक्रमा में भी हिस्सा लिया था. योगी ने छोटी दिवाली पर अयोध्या में तो रविवार को चित्रकूट में दीपोत्सव किया और मंदाकिनी किनारे महाआरती भी की. यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य ने तो कई चुनावी सभाएं लीं, लेकिन फिर भी राम की तपस्थली वे जीत नही पाए. इस हार को बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है.

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खास बात यह है कि प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान और शिवराज मंत्रिमंडल के कई सदस्यों ने मतगणना के 12 दौर के बाद ही हार मान ली थी. प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि वह जनता का आदेश सिर-माथे पर रखते हैं. चित्रकूट कांग्रेस का पुराना गढ़ है. इस हार से कोई फर्क नही पड़ेगा हम हार की समीक्षा करेंगे. सवाल उठता है कि चित्रकूट अगर कांग्रेस का गढ़ था तो फिर मुख्यमंत्री से लेकर एक दर्जन मंत्री क्यों दिन रात वहां डेरा जमाए हुए थे.

कांग्रेस की ओर से चित्रकूट में पूर्व केंद्रीय मंत्रियों कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मोर्चा संभाला था. इसके अलावा नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के लिए ये सीट प्रतिष्ठा का सबब बन गई थी, इसलिए उन्होंने भी यहां काफी वक्त दिया.  कांग्रेस को मिली इस जीत ने सिंधिया का राजनीतिक कद भी बढ़ा दिया है. कांग्रेस मध्य प्रदेश में सिंधिया को आगे बढ़ा रही है. .

बीजेपी के लिए खतरा अभी और है. बता दें कि शिवपुरी जिले के कोलारस विधानसभा और अशोकनगर जिले के मुंगावली विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव होने बाकी हैं. कांग्रेस विधायकों के निधन के कारण यहां उपचुनाव होना है. बीजेपी ने अगर चित्रकूट की हार से सबक नहीं लिया तो फिर आगे की सियासी राह कठिन हो सकती है.

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