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UP के पीलीभीत में बिना नागरिकता, पासपोर्ट के सहारे 50 हजार शरणार्थी

लखनऊ, पीलीभीत, मथुरा, गाजियाबाद जैसे कई जिले ऐसे हैं जहां पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए हुए हिंदुओं की तादाद काफी है. लखनऊ में ज्यादातर सिंध प्रांत से आए लोग बसे हैं जिनमें से कइयों के पास आज भी नागरिकता नहीं है.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
कुमार अभिषेक
  • लखनऊ,
  • 08 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 12:22 PM IST

  • कुछ को आज भी वोट डालने का अधिकार नहीं
  • कुछ को आज भी घर और जमीन का मालिकाना हक नहीं मिला
  • बीड़ी, तंबाकू, चटाई, का काम लेकर मजदूरी करते हैं काम

लखनऊ में सिंध से आए शरणार्थी पाकिस्तानी पासपोर्ट के सहारे सालों से रह रहे हैं लेकिन उन्हें अभी नागरिकता नहीं मिली है. यही नहीं उत्तर प्रदेश के पीलीभीत के जंगल के किनारे हजारों की तादाद में नेपाल से प्रताड़ित और भगाए गए लोग बसे हुए हैं लेकिन आज तक न तो नागरिकता मिली है न ही कोई सुविधा.

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शरणार्थियों के नामों को सूचीबद्ध करने के निर्देश

सीएए के बाद लखीमपुरखीरी में 70 के दशक में आए 2 हिंदुओं ने नागरिकता के आवेदन कलेक्टर को सौंपे. योगी सरकार ने सीएएए के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए शरणार्थियों की पहचान का काम शुरू कर दिया है. सभी जिलों के जिलाधिकारियों को ऐसे नामों को सूचीबद्ध करने के निर्देश दिए गए हैं जो 2014 के पहले से उत्तर प्रदेश में रह रहे हैं.

जानकारी के मुताबिक लखनऊ, पीलीभीत, मथुरा, गाजियाबाद जैसे कई जिले ऐसे हैं जहां पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए हुए हिंदुओं की तादाद काफी है. लखनऊ में ज्यादातर सिंध प्रांत से आए लोग बसे हैं जिनमें से कइयों के पास आज भी नागरिकता नहीं है और वह अपने पाकिस्तानी पासपोर्ट की पहचान के सहारे ही यहां रह रहे हैं.

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शरणार्थी करते हैं मजदूरी का काम

यही नहीं, बताया जा रहा है कि लगभग 50 हजार पाकिस्तान, बांग्लादेश के मूल निवासी पीलीभीत में बिना नागरिकता के रह रहे हैं. इनमें से कुछ लोगों को आज भी वोट डालने का अधिकार नहीं है और कुछ लोगों को आज भी घर और जमीन का मालिकाना हक नहीं मिला है. इनमें से ज्यादातर लोग बीड़ी, तंबाकू,चटाई बनाने का काम सीखकर मजदूरी करते हैं.

पाकिस्तान के सिंध से भाग कर आए वासुराम 2004 से लखनऊ में है. चार भाइयों में से दो भाई सिंध से भागकर लखनऊ आए और तब से यहीं के हो गए. वासुराम लखनऊ के आलमबाग में पकौड़े का ठेला लगाते हैं लेकिन पाकिस्तान वापस नहीं जाना चाहते कहते हैं बहुत प्रताड़ना झेली है, यहां किसी तरह रोजी रोटी चला रहे हैं. परिवार पाल रहे हैं लेकिन पिछले 15 सालों से बिना नागरिकता के रह रहे हैं. अब खुश हैं कि वो भारत के नागरिक होंगे.

पाकिस्तानी पासपोर्ट के सहारे भारत में गुजरबसर

लखनऊ के आशियाना नगर में विभाजन के बाद से ही आए सैकड़ों सिंधी परिवार रहते हैं जिसमें से कई परिवार ऐसे हैं जिनके पास दिखाने के लिए सिर्फ पाकिस्तानी पासपोर्ट है. यह सभी लोग सालों से रह रहे हैं और हर 5 साल पर अपना पासपोर्ट रिन्यू कराते हैं. अपनी उम्मीद है कि नागरिकता इन्हें मिल जाएगी और यह पूरी तरीके से भारत में समाहित हो जाएंगे.

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वह सभी जिले जहां पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए हुए लोगों की तादाद बसी है. वहां के जिलाधिकारियों ने ऐसे लोगों की पहचान भी शुरू कर दी है. वैभव श्रीवास्तव जिलाधिकारी पीलीभीत ने बताया, 'प्राथमिक सर्वे हमने कराया है जो सिटिजन अमेंडमेंट एक्ट पारित हुआ है जिसके परिप्रेक्ष्य में बांग्लादेश से आए शरणार्थियों की प्राथमिक संख्या करीब 37000 निकल कर आई है. इनमें से जिनको नागरिकता दी जानी है, उस बारे में एक पत्र शासन को प्रेषित किया गया है.

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