
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ हाई कोर्ट में दाखिल एक अवमानना याचिका पर सोमवार को सुनवाई होगी. अशोक गहलोत सरकार पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने हाई कोर्ट के उस आदेश का पालन नहीं किया है जिसमें राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन मिलने वाली कुछ सुविधाओं में कटौती की बात कही थी. हाई कोर्ट इस मामले पर सोमवार को सुनवाई करेगा.
दरअसल, राजस्थान हाई कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को हाल ही में बड़ा झटका दिया था. 4 सितंबर के हाई कोर्ट के फैसले में जस्टिस प्रकाश गुप्ता ने राजस्थान मंत्री वेतन संशोधन अधिनियम 2017 को अवैध घोषित कर दिया था. इस अधिनियम के तहत पूर्व मुख्यमंत्रियों को राजस्थान में कई सुविधाओं का प्रावधान था, जिसमें आजीवन बंगला, टेलीफोन समेत कई सुविधाएं शामिल हैं.
किसने दायर की याचिका?
हाई कोर्ट का यह फैसला वरिष्ठ पत्रकार मिलापचंद डांडिया द्वारा दायर याचिका पर आया था जिसमें राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगला, कार, ड्राइवर, टेलीफोन सेवाएं और 10 कर्मचारी वाले स्टाफ जैसी सुविधा जिंदगी भर के लिए देने वाले कानून को चुनौती दी गई थी.
याचिकाकर्ता मिला चंद डांडिया का आरोप है कि आदेश आने के 2 महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी गहलोत सरकार ने कोर्ट के फैसले को इंप्लीमेंट नहीं किया है. राजस्थान उच्च न्यायालय के सितंबर माह में आए फैसले के बाद यह माना जा रहा था कि राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री जैसे कि वसुंधरा राजे, जगन्नाथ पहाड़िया को सरकारी बंगले एवं अन्य सुविधाएं आजीवन के लिए नहीं मिलेंगी.
क्या है पूरा मामला?
अवमानना याचिका दायर करने वाले 88 वर्षीय व्यक्ति मिलाप चंद डांडिया का कहना है कि उन्होंने अवमानना याचिका इसलिए दायर की क्योंकि सरकार ने मुख्य सचिव को भेजे गए पत्र का जवाब नहीं दिया. उन्होंने अदालत के आदेश को लागू करने की मांग की थी.
याचिकाकर्ता मिलाप चंद डांडिया के वकील विमल चौधरी ने इंडिया टुडे टीवी को बताया कि यह मामला राजस्थान उच्च न्यायालय में आज के लिए सूचीबद्ध दूसरा मामला है.
कोर्ट ने रोकी सुविधाएं
कोर्ट के फैसले के फैसले से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, जगन्नाथ पहाड़िया को बंगले समेत कई आजीवन सुविधाएं नहीं मिलने वाली थीं लेकिन याचिका में कहा गया कि सरकार ने कोर्ट के आदेश को लागू नहीं किया. यह फैसला मिलापचंद डांडिया एवं अन्य द्वारा लगाई गई याचिकाओं पर राजस्थान हाई कोर्ट ने दिया था.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही यूपी के मामले में इसे अवैध घोषित कर दिया था. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विमल चौधरी एवं योगेश डीलर ने पैरवी की थी.
वसुंधरा राजे ने पास कराया था विधानसभा में बिल
राजस्थान में वसुंधरा राजे की सरकार के दौरान लाए गए राजस्थान मंत्री वेतन संशोधन नियम 2017 के तहत बंगला टेलीफोन समेत कई सुविधाएं पूर्व मुख्यमंत्रियों को देने का बिल विधानसभा में पास करा लिया गया था जिसके बाद इस पर विरोध भी जताया गया था.
गौरतलब है कि पहले कार्यकाल में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान में नियम बनाया था कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगले की सुविधा होगी. बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश आने के बाद अशोक गहलोत ने वसुंधरा सरकार से चिट्ठी लिखकर पूछा था कि क्या मैं बंगला छोड़ दूं. मगर सत्ता में आने के बाद गहलोत सरकार ने भी विधेयक के पक्ष में कोर्ट में पैरवी की थी.