
कांग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) को लेकर मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला है. पार्टी महासचिवों और प्रभारियों की बैठक में शनिवार को सोनिया गांधी ने कहा कि सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचाने की तैयारी में है.
किसानों और छोटे उद्यमियों के लिए मुसीबतसोनिया गांधी ने कहा कि सरकार 16 आसियान देशों के क्षेत्रीय मुक्त व्यापार (एफटीए) और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) पर हस्ताक्षर करके एक और झटका देने के लिए तैयार है. यह हमारे किसानों, दुकानदारों, छोटे और मध्यम उद्यमियों के लिए गंभीर नतीजों और मुसीबत का कारण बनेगा.
समाधान तलाशने के नहीं सुर्खियां बटोरने में वयस्त पीएम
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि एक नागरिक के रूप में यह मेरे लिए अत्यंत दुख की बात है कि आज भारतीय अर्थव्यवस्था अवरुद्ध है. इससे भी ज्यादा चिंता का विषय यह है कि सरकार इस सच्चाई को नकार रही है. मंदी की गंभीरता को स्वीकार करके व्यापक समाधान तलाशने की बजाय प्रधानमंत्री मोदी सुर्खियों में बने रहने और आयोजनों के प्रबंधन में व्यस्त हैं. इसकी कीमत किसी और को नहीं बल्कि करोड़ों भारतीयों, विशेषकर बेरोजगार युवकों, किसानों को चुकानी पड़ रही है.
सबसे ज्यादा बढ़ी बेरोजगारी
सोनिया गांधी ने कहा कि आर्थिक संकट दिन प्रतिदिन गंभीर होता जा रहा है, पहली तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद में सिर्फ 5 प्रतिशत वृद्धि रही है. यह सिर्फ पिछले 6 सालों का ही न्यूनतम स्तर नहीं है, बल्कि यह गहरे संकट को दर्शाता है. यह कमजोर मांग, कम खपत, शून्य निवेश का परिचायक है, जिसकी वजह से नौकरियां खत्म हो रही हैं. लगभग साढ़े आठ फीसदी पर बेरोजगारी की दर सर्वाधिक परेशानी का कारक है.
नौकरियों पर गहराया संकट
उन्होंने कहा कि नौकरियों के सृजन की बात तो दूर, हाल ही के अध्ययनों से पता चलता है कि नोटबंदी, जीएसटी और मोदी सरकार द्वारा लिए गए आर्थिक फैसलों के कारण पिछले 6 सालों के दौरान 90 लाख लोगों को अभूतपूर्व रुप से अपनी नौकरियां गंवानी पड़ीं.
किसानों की हुई दुर्दशा
सोनिया गांधी ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के किसी भी उचित मूल्यांकन के लिए हमें किसानों की दुर्दशा पर ध्यान देना जरूरी है. पहली तिमाही में भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था मुश्किल से 2 प्रतिशत की विकास दर के साथ लगभग तबाह हो गई है. उनसे ये वादा किया गया था कि उनकी आय अल्पावधि में ही दोगुनी हो जाएगी, लेकिन उन्हें कम होती हुई मजदूरी और बढ़ती हुई कीमतों से लड़ने के लिए अकेला छोड़ दिया गया है.