Advertisement

विपक्ष की एकजुटता क्या बनी रहेगी?

गठबंधन तो होगा मगर क्या टिकेगा भी?

सोनिया गांधी की डिनर डिप्लोमेसी सोनिया गांधी की डिनर डिप्लोमेसी
संध्या द्विवेदी/मंजीत ठाकुर
  • ,
  • 26 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 7:18 PM IST

भाजपा के विजय रथ में उपचुनावों के हिचकोले लगातार लग रहे हैं. ये हिचकोले भाजपा के लिए झटका तो विपक्षी दलों के लिए उम्मीद की किरण से कम नहीं. अब विपक्षी दल एकजुट होकर भाजपा को रोकने की तैयारी में हैं. उपचुनावों की हार के विश्लेषण जारी हैं.

इन हारों से वे दल भी उत्साहित हैं जिनकी पहचान क्षेत्रीय है. जैसे शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में गोरखपुर और फूलपुर की हार पर भाजपा की तीखी आलोचना करते हुए उसके एक संपादकिय में आगाह किया.'2019 में भाजपा की सीटें 280 नहीं रहेंगी और अब यह साफ है कि इनमें कम से कम 100 से 110 सीटों की कमी आएगी.गठबंधन बनता भी दिख रहा है.'

Advertisement

ऐसे में जाहिर है कि भाजपा को टक्कर देने के लिए गठबंधन तो बनना लगभग तय है. जैसे बिहार में महागठबंधन बना था. लेकिन जिस तरह से लालू और नीतीश अलग हुए, वो ऐसे गठबंधनों के भविष्य को लेकर बहुत मजबूत उम्मीद नहीं जगाती.

  सवाल उठता है कि क्या भाजपा के खिलाफ बनने को तैयार ये गठबंधन टिकाऊ है? अलग-अलग महत्वकांक्षाओं वाले दलों के इस कुनबे को जुटाने की पहल तो हो चुकी है लेकिन क्या इसे जुटाए रखना मुमकिन है..ऐसे में इस भानुमति के कुनबे के सदस्यों का सियासी विश्लेषण जरूरी है.

राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष

उनके अनुकूलः अखिल भारतीय पार्टी होने के कारण कांग्रेस का असर हर राज्य में. अखिलेश, तेजस्वी, शरद पवार को वे स्वीकार्य हैं.

उनके खिलाफः ममता को उनका नेतृत्व स्वीकार नहीं. टीआरएस, टीडीपी अलग.

Advertisement

ममता बनर्जी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री टीएमसी प्रमुख

उनके अनुकूलः पहले ही बीजेडी, टीआरएस, आप, डीएमके और शिवसेना व टीडीपी तक से संपर्क कर चुकी हैं.

उनके खिलाफः जनाधार पश्चिम बंगाल तक सीमित, सपा, बसपा की सीटें ज्यादा होंगी तो गणित बदलेगा.

चंद्रबाबू नायडू, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री टीडीपी प्रमुख

उनके अनुकूलः मोल-तोल में माहिर, तीसरे मोर्चे के ज्यादातर नेताओं को स्वीकार्य.

उनके खिलाफःकांग्रेस और एनसीपी को शायद उनका अस्थिर रवैया बर्दाश्त न हो.

अखिलेश यादव, उत्तर प्रदेश के सीएम और सपा प्रमुख

उनके अनुकूलः युवाओं में उनकी पकड़ और राहुल के साथ उनकी दोस्ती उन्हें सर्वमान्य उम्मीदवार बनाने में मददगार.

उनके खिलाफः मायावती नहीं चाहेंगी कि उनके धुर विरोधी को इतना बड़ा पद मिले.

मायावती, बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो

उनके अनुकूलः कुछ भी नहीं. उन्हें अभी बहुत ज्यादा चुनावी जमीन पुख्ता करनी है. सपा को समर्थन के बदले नेतृत्व मांग सकती हैं.

उनके खिलाफः ममता को स्वीकार्य नहीं. सपा भी उन्हें सीमा से ज्यादा जगह शायद नहीं देना चाहेगी.

शरद पवार, एनसीपी प्रमुख

उनके अनुकूलः वरिष्ठ नेता सर्वमान्य उम्मीदवार हो सकते हैं. राहुल के साथ-साथ ममता के साथ भी अच्छे संबंध.

उनके खिलाफः उनके पास संख्या बल नहीं है क्योंकि एनसीपी केवल महाराष्ट्र तक सीमित एक पार्टी है. यही है अड़चन.

Advertisement

फिलहाल एक बात साफ है गठबंधन बनता दिख रहा है. लेकिन ये टिकाऊ होगा इसकी उम्मीद कम ही नजर आ रही है.

***

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement